1000 दिन और खुद की सर्वश्रेष्ठता का घमंड कहीं CM रघुवर दास को भारी न पड़ जाये
झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास को इस बात का गुमान हैं कि जो काम उन्होनें 1000 दिन में पूरे कर लिये, वो 14 साल में भी नहीं हो सका, तो सवाल भी उन्हीं से है कि इन पिछले 14 सालों में किसकी सरकार थी? और उस सरकार में आपकी स्थिति क्या थी? अगर पिछली सरकार ने काम नहीं किया तो उसके लिए जिम्मेदार आप स्वयं भी हैं, इससे इनकार न करें, आपने कई मुख्यमंत्रियों के मंत्रिमंडल में शामिल होकर कभी श्रम मंत्रालय, तो कभी ऊर्जा मंत्रालय तो कभी उपमुख्यमंत्री का पद संभाला और इस दौरान आपकी कार्यपद्धति का विश्लेषण किया जाय तो आपने इस दौरान कुछ भी नहीं किया, इसे आप स्वीकार करें।
आपको घमंड हो गया है कि आपने स्थानीय नीति लागू किया, क्या आप बता सकते हैं कि आप ही के द्वारा लागू स्थानीय नीति के अनुसार स्थानीय लोगों को सर्टिफिकेट जारी करने में राज्य के पदाधिकारियों को पसीने क्यों छूट रहे हैं? आपको इन्हीं सभी कार्यों के लिए विज्ञापन क्यों छपवाना पड़ रहा हैं।
वह भी यह कहकर कि “क्यों लगाने सरकारी दफ्तरों के चक्कर जब आ रही है…सरकार आपके द्वार, घर बैठे बन रहे हैं जाति, आय और निवास प्रमाण पत्र” जब राज्य के मुख्यमंत्री को जिलों और अनुमंडल का चक्कर लगाना पड़ जाये, वह भी जाति, आय और निवास प्रमाण पत्र बनाने के लिए तो समझ लीजिये कि उस राज्य का सिस्टम पूरी तरह फेल है, और आपको यह मानना होगा कि राज्य में ऐसी बदतर स्थिति कम से कम कभी नहीं रही।
आपको शर्म आनी चाहिए कि आप ही के मंत्रिमंडल में शामिल मंत्री सरयू राय ने आपके विकास संबंधी निर्णयों पर अंगूली उठा दी है, और जो सवाल उन्होंने उठाये है, उस सवाल का जवाब आप देने की स्थिति में नहीं हैं। सरयू राय ने ठीक ही कहा कि सरकार उपलब्धियां गिना रही है, आप खामियां गिनाएं, इसमें गलत भी क्या है? उन्होंने ठीक ही कहा है कि निवेशक बुलाना और फैक्ट्रियां लगाना विकास का पैमाना नहीं है। सरयू राय ने ठीक ही कहा कि सिंगापुर की बातें अच्छी लगती है, लेकिन इसने कितने का अधिकार छीना? और अंत में सरयू राय का ये कहना कि राज्य के विभिन्न सरकारी अस्पतालों में बच्चों की हो रही मौत बता रही है कि बच्चे अस्पताल में स्वास्थ्य लाभ के लिए नहीं, बल्कि मोक्ष प्राप्त करने के लिए जा रहे हैं। ये कथन, ये संवाद किसी भी सरकार के गाल पर करारा तमाचा है, पर आपको इससे क्या? आप तो वहीं करेगें, जो कनफूंकवे कहेंगे।
आप जो सोच रहे हैं कि आप विज्ञापन के बल पर, राज्य के अखबार व चैनल मालिकों, संपादकों व आपकी आरती उतारनेवाले, जी-हुजूरी करनेवाले कुछ प्रधान संपादकों व पत्रकारों को उनके मनमुताबिक उपहारों व विज्ञापनों के कंठहार देकर आप जनता को अपनी ओर आकर्षित कर लेंगे तो आप मुगालते में हैं, क्योंकि जो पत्रकार या संपादक आज आपकी आरती उतार रहे हैं, कल दूसरे की सत्ता आयेगी तो आपको भी वे आनेवाले समय में नाक रगड़वा देंगे, ये बातें फिलहाल आज के विपक्ष के नेताओं को भी गिरह बांध लेना चाहिए, साथ ही वे पहचान लें, उन संपादकों और पत्रकारों को जो उनकी बातों को, जनता के समक्ष न रखकर, केवल सत्तापक्ष के आगे ठुमरी गा रहे हैं। ऐसा नहीं कि सत्ता जब आयी तो वे भी वहीं करने लगे, जो रघुवर दास और उनके कनफूंकवे कर रहे हैं।
राज्य की जनता को भी नहीं भूलना चाहिए कि इसी सरकार ने…
- हरमू नदी के सौंदर्यीकरण के नाम पर करोड़ों बहवा दिये गये, पर हरमू नदी का सौंदर्यीकरण तो नहीं हो सका, लेकिन हरमू, नदी से नाली जरुर बन गयी।
- सीएनटी-एसपीटी के नाम पर आदिवासियों को छलने का काम किया और जब राज्यपाल ने आंखे दिखाई, तो पूरा विधेयक ही विधानसभा से वापस ले लिया और इस सीएनटी-एसपीटी के नाम पर राज्य की संघर्ष कर रही जनता को बड़े-बड़े विज्ञापनों व होर्डिंग्स से यह कहकर चिढ़ाया कि – रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाय पर बचन न जाई।
- जरा रांची के पहाड़ी मंदिर जाकर देखिये, क्या राष्ट्रीय ध्वज दिखाई पड़ता है?
- उच्च शिक्षा एवं तकनीकी विकास के नाम पर मंत्री और अधिकारी विदेश टूर पर निकल गये और मौज मस्ती की, राज्य की जनता को तकनीकी विकास के नाम पर क्या मिला? बताये सरकार?
अरे सवाल तो कई है, जिसका जवाब न तो रघुवर सरकार के पास है और न उनके मंत्रियों और न अधिकारियों के पास। मगर कोई गलथेथरई पर उतर जाये तो उसकी बात ही अलग है।
एस एनटी/एसपीटी नहीं होगा मिश्रा जी,उसे सुधार दिजिये । सीएनटी/एसपीटी उसे कर दें।