104 वर्ष योगदा सत्संग सोसाइटी के, जहां लोग पूर्ण ध्यान के दर्शन और जीवन के ज्ञान से होते हैं लाभान्वित
योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया (वाईएसएस) का 104 वां स्थापना दिवस 22 मार्च को है। इसी दिन परमहंस योगानन्द (1893 — 1952) ने 1917 में भारत में कई सहस्राब्दियों पूर्व अद्भुत हुए पवित्र आध्यात्मिक विज्ञान, क्रियायोग की सार्वभौमिक शिक्षा को उपलब्ध कराने के लिए योगदा सत्संग सोसाइटी की स्थापना की थी। इन धर्म-निरपेक्ष शिक्षाओं में, सर्वांगीण सफलता और समृद्धि के साथ-साथ, जीवन के अंतिम लक्ष्य – आत्मा का परमात्मा से मिलन – के लिए ध्यान की विधियों का एक पूर्ण दर्शन और जीवन शैली का ज्ञान सम्मिलित है।
परमहंस योगानन्दजी की शिक्षाएं “योगदा सत्संग पाठमाला” के माध्यम से उपलब्ध हैं, जैसा कि उन के जीवन काल में भी होता था। दुनिया भर में असंख्य लोगों द्वारा पढ़ी गई, स्वाध्याय के लिए बनी, इस विस्तृत पाठ श्रृंखला में क्रिया योग विज्ञान की सभी ध्यान प्रविधियों तथा परमहंस योगानन्द द्वारा सिखाए गए संतुलित आध्यात्मिक जीवन के कई अन्य पहलुओं पर भी जानकारी दी गई है।
परमहंस योगानन्दजी को आधुनिक काल की श्रेष्ठ आध्यात्मिक विभूतियों में से एक माना जाता है। परमहंस जी ने बंगाल स्थित दिहिका नामक स्थान पर बालकों के लिए योग विद्यालय की स्थापाना करते हुए अपने विश्वव्यापी मिशन का शुभारंभ किया। यही वह ऐतिहासिक पल था जब योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया का जन्म हुआ।
सर्वाधिक बिकने वाली आध्यात्मिक पुस्तक- “योगी कथामृत (ऑटोबायोग्राफ़ी ऑफ ए योगी)” के लेखक इस प्रिय जगद्गुरु ने लाखों पाठकों को दुर्लभ ज्ञान से परिचित कराया है। सन 1946 में प्रकाशित इस विलक्षण पुस्तक के प्रकाशन के 75 वर्ष हो गए। “योगी कथामृत” का देश-विदेश की 50 से अधिक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। यहां तक कि उर्दू और संस्कृत में भी। आज परमहंस योगानन्द पूरे संसार में “पश्चिम में योग के जनक” के रूप में जाने जाते हैं।
उन्होंने 1917 में वाईएसएस की स्थापना के बाद सन 1920 में अमेरिका के बॉस्टन शहर में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस ऑफ रिलीजियस लिबरल्स में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व करने पहुंचे। योगानन्दजी ने वहां सेल्फ-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप (एसआरएफ) की स्थापना की, जो आज भी श्री श्री स्वामी चिदानन्द गिरि के नेतृत्व में दुनिया-भर में उनकी आध्यात्मिक विरासत को आगे बढ़ा रही है। श्री श्री मृणालिनी माता के बाद, अब स्वामी चिदानन्दजी इन दोनों संस्थाओं के अध्यक्ष (पांचवें)हैं।
परमहंस योगानन्दजी ने अपनी शिक्षाओं के प्रचार और उनकी शुद्धता एवं संपूर्णता को आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखने के उद्देश्य से योगदा सत्संग सोसाइटी (वाईएसएस)/ सेल्फ़-रियलाइजे़शन फे़लोशिप (एसआरएफ़) की स्थापना की। वाईएसएस/एसआरएफ़ प्रकाशन परिषद के सदस्य इन निर्देशों का पवित्र आस्था के रूप में सम्मान करते हैं, जिससे कि इन जगद्गुरु का विश्वजनीन संदेश अपनी मूल शक्ति और प्रमाणिकता में बना रहे। इन संस्थाओं का नाम और उनका प्रतीक चिह्न परमहंस योगानन्दजी ने अपने विश्वव्यापी आध्यात्मिक और लोकोपकारी कार्य को चलाने के लिये स्थापित संस्था की पहचान के लिए बनाए थे।
परमहंस योगानन्दजी ने अपनी कक्षाओं एवं प्रवचनों में ध्यान एवं संतुलित आध्यात्मिक जीवन की कला पर जो शिक्षा दी थी, उसे उन्हीं के मार्गदर्शन के अनुसार योगदा सत्संग पाठमाला के रूप में संकलित किया गया था । योगदा साधक इन मुद्रित पाठों का अध्ययन घर बैठे कर सकते हैं । प्रारम्भ के कुछ पाठों के अध्ययन तथा उनमें सिखाई गईं मूलभूत ध्यान प्रविधियों के अभ्यास में कुछ समय लगाकर वे स्वयं को क्रियायोग अभ्यास के लिए शारीरिक, मानसिक, तथा आध्यात्मिक रूप से तैयार करते हैं ।
इस प्रारम्भिक अवधि में वे योगदा सत्संग साधना-पद्धति की तीन मुख्य प्रविधियां सीखते हैं: शक्ति संचार व्यायाम, एकाग्रता की प्रविधि और ओम प्रविधि। भारतीय उपमहाद्वीप में वाईएसएस की कई गतिविधियां और सेवाएं संक्षेप में निम्नलिखित हैं:
- परमहंस योगानन्दजी और उनके संन्यासी शिष्यों के लेखन, व्याख्यान और रिकार्डिंग को प्रकाशित करना।
- दुनिया भर में स्थित 600 से अधिक आश्रम, रिट्रीट और ध्यान केंद्रों का संचालन करना जहाँ सभी वर्गों के लोग सत्संग और साहचर्य की भावना से एकत्र हो सकें
- वाईएसएस आश्रमों में संन्यासी वर्ग का आध्यात्मिक प्रशिक्षण
- परमहंस योगानन्दजी की क्रियायोग की शिक्षाओं का प्रचार करने के लिए विभिन्न स्थानों पर कार्यक्रम, सत्संग, और कक्षाएँ आयोजित करना
- बच्चों के लिए ध्यान और आध्यात्मिक जीवन पर कार्यक्रम आयोजित करना
- पत्र एवं टेलीफोन द्वारा तथा व्यक्तिगत रूप से आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करना
- विभिन्न धर्मार्थ एवं कल्याणकारी गतिविधियों को आयोजित करना
- शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक सहायता तथा विश्व शांति और सद्भाव को बढ़ाने के लिए विश्वव्यापी प्रार्थना मण्डल, का संचालन करना जो ऐसे समूहों और व्यक्तियों का एक संघ है जो ऐसी प्रार्थनाएँ करने के लिए समर्पित हैं।
परमहंस योगानन्द ने गीता की व्याख्या- “गॉड टाक्स विथ अर्जुन (ईश्वर- अर्जुन संवाद)”, “सेकंड कमिंग ऑफ क्राइस्ट”, उमर खय्याम की रुबाइयों की व्याख्या की पुस्तक- “वाइन ऑफ द मिस्टिक” तो लिखी ही है, उनकी प्रवचन श्रृंखलाओं को भी कई पुस्तकों में समाहित किया गया है। उनमें से कुछ पुस्तकें हैं- “मैंस इटर्नल क्वेस्ट” (हिंदी में पुस्तक- मानव की निरंतर खोज), “डिवाइन रोमांस” और “जर्नी टू सेल्फ रियलाइजेशन” “साइंटिफिक हीलिंग एफर्मेशंस” (रोग निवारण के लिए प्रतिज्ञापन), “सांग्स ऑफ द सोल”, “कास्मिक चैंट्स”, “धर्म विज्ञान” आदि।
इसके अलावा वाईएसएस ने परमहंस योगानन्द के गुरु स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरि की लिखी विलक्षण पुस्तक- “होली साइंस” (हिंदी में पुस्तक- कैवल्य दर्शनम) प्रकाशित की है जिसमें वेद और बाइबिल की समानता को दर्शाया गया है। परमहंस जी की पुस्तकें का इलेक्ट्रानिक संस्करण भी आ चुका है, जो मुद्रित प्रतियों की तुलना में काफी कम दाम पर उपलब्ध किए गए हैं। अधिक जानकारी योगदा सत्संग सोसाइटी की वेबसाइट www.yssofindia.org पर उपलब्ध है।