अगर आप यहां की सरकार या पुलिस पर भरोसा करते हैं तो आप महामूर्ख हैं, आपको अपने बेटियों के सम्मान की रक्षा खुद करनी होगी
जिस राज्य में पुलिस थाने के पुलिसकर्मियों का तबादला रिश्वत व पैरवी के आधार पर होता है। जिस राज्य के थाने के थानेदार व पुलिसकर्मी बिना रिश्वत के प्राथमिकी तक दर्ज नहीं करते। जिस राज्य में सत्ता के इशारे पर किसी भी भलेमानस के खिलाफ केस दर्ज कर उसे परेशान किया जाता है। जिस राज्य के पुलिस थाने के थानेदार नागरिकों की सुरक्षा की जगह माल बटोरने, व आलीशान मकान पीटने, फ्लैटों की संख्या अपने नाम करने में ज्यादा दिमाग लगाते हो। वहां क्राइम कंट्रोल नहीं होता, बल्कि वहां क्राइम और बढ़ जाता है और इसका सबसे सुन्दर उदाहरण है – झारखण्ड।
यहां किसी भी लड़की या बच्ची का अपहरण हो जाना, उसका बलात्कार हो जाना, बलात्कार के बाद उसकी हत्या कर दिया जाना, किसी सामान्य व्यक्ति का लिंचिंग हो जाना सामान्य सी घटना हैं, पर न तो जिस इलाके में ऐसी घटना घटती हैं, उस थानेदार को शर्म आती हैं और न ही वहां के पुलिस अधीक्षक को, और रही बात सरकार की तो, वो तो पूछिये मत, कितनी काबिल है, वो तो आप देख ही रहे हैं।
कमाल है, कोई ऐसा महीना नहीं, या दिन नहीं, जिस दिन महिलाओं और छोटी-छोटी बच्चियों के साथ रेप की खबरें प्रमुखता से नहीं छपी हो। लेकिन क्या मजाल सरकार और यहां के पुलिस थाने के थानेदारों और पुलिस अधीक्षकों की वे इस शर्मनाक घटनाओं से कभी शर्मसार हुए हो।
जरा कभी सोचियेगा कि एक थानेदार,या इंस्पेक्टर या सब-इंस्पेक्टर या एसिस्टेंट सब इंस्पेक्टर या हवलदार/सिपाही या थाने के मुंशी को कितना वेतन मिलता है, पर यहां चले जाइये किसी भी थाने में तो आप पायेंगे कि मुंशी हवलदार से लेकर थानेदार तक ऐशो-आराम की जिंदगी जी रहे हैं, करोड़ों की प्रापर्टी इक्ट्ठी कर ली है, रोज हजारों के गाड़ी में तेल भराकर मस्ती काट रहे हैं, अब समझ में ये नहीं आता कि इन पुलिसकर्मियों को अलादीन का चिराग कहां से हाथ लग जाता है, जबकि अन्य विभागों में इनसे भी ज्यादा वेतन पानेवालों की हालत खराब है।
कमाल है, यह झारखण्ड के एक थाने के हालात नहीं हैं, सभी जगहों की यही बात हैं, उदाहरण देखिये – हाल ही में चुटिया के कृष्णापुरी में एक परिवार अपने घर में नहीं था और चोरों ने उनके घर के सारे सामानों पर हाथ साफ कर दिये, अब सवाल उठता है कि जब चुटिया थाने के पुलिसकर्मी आराम फरमायेंगे तो जनता तो लूटेगी ही न।
चिन्ता मत करिये, अभी तो पिपरवार में हुआ की, दो नाबालिग बच्चियों को अपराधियों ने हत्या कर दी, वह भी तब जब वे जंगल लकड़ियां चुनने गई थी। अब इसकी क्या गारंटी कि रांची के चुटिया में ऐसी घटनाएं न हो। क्योंकि पिपरवार जैसे हालात तो चुटिया में भी हैं, जहां शाम ढलते ही अंधेरा छा जाता है, और पियक्कड़ों, चिलमबाजों तथा अपराधियों का साम्राज्य छा जाता है, और ठीक इसी समय छोटी-छोटी बच्चियों के साथ इनके द्वारा ऐसी घटनाएं घट जायें तो इसके लिए कौन जिम्मेवार होगा?
जबकि चुटिया थाने की गाड़ी खुब इधर-उधर घुमती रहती हैं, अरे घूमने के बावजूद भी एक मच्छर इनसे नहीं पकड़ा जाता तो फिर किस काम के आप पुलिस, जब आपके पास सारे संसाधन मौजूद हैं और लोगों के चेहरे पर अपनी सुरक्षा के लिए भय का माहौल हैं तो आप किसलिए वर्दी धारण किये हो। यह मैंने एक उदाहरण दिया हैं, ऐसे ही हालात झारखण्ड में हर जगह हैं, जिस कारण आज किसी की भी बहूं-बेटियां सुरक्षित नहीं।
आप जिधर देखिये, अंधेरा होते ही, महफिलें सज जा रही हैं, रोड पर, तालाब के किनारे, घने जंगलों के बीच चिलम पार्टी, शराब की पार्टी सज जा रही हैं और फिर उसके बाद उन्हीं जगहों पर ऐसी घटनाएं घट जा रही है कि व्यक्ति शर्मिंदा होकर, आगबबूला होकर प्रदर्शन करने लग जाता है, क्योंकि उसके पास विकल्प नहीं।
स्थिति भयावह हैं, अगर आपके यहां बेटियां हैं, चाहे वह बालिग हो या नाबालिग, आपको उसकी खुद सुरक्षा करनी होगी, क्योंकि पुलिस तब आयेगी, जब आपके साथ घटना घट जायेगी, क्योंकि ये पुलिस बने हैं, आपकी सुरक्षा के लिए नहीं, बल्कि अपने परिवार और अपने बच्चों के लिए बेहतर व्यवस्था करने के लिए, जिसमें वे जब तक सेवा में रहेंगे, लगे रहेंगे, और बाद में स्वयं के द्वारा कमाई गई अवैध संपत्तियों पर राज करते हुए दांत निपोड़ कर उपर चले जायेंगे।