रघुवर जबहिं “संजय कुमार” त्यागा। भयउ बिभव बिनु तबहिं अभागा।।
श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड में एक बहुत ही सुंदर चौपाई है, जो बताता है कि अहंकारी रावण का अंत कब सुनिश्चित हुआ? चौपाई है – रावन जबहिं बिभीषण त्यागा। भयउ बिभव बिनु तबहिं अभागा।। अर्थात् रावण ने जिस दिन बिभीषण (धर्म) का त्याग किया, उसी दिन वह भाग्यहीन हो गया और यह भी सुनिश्चित हो गया कि रावण का अंत सुनिश्चित है।
ठीक उसी प्रकार जिस दिन मूर्खों, कनफूंकवों व निर्लज्ज अधिकारियों के कहने पर राज्य के निवर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अपने ही प्रधान सचिव संजय कुमार का परित्याग कर दिया, उसी दिन सुनिश्चित हो गया कि रघुवर दास जल्द ही झारखण्ड से सदा के लिए मुक्त हो जायेंगे।
क्योंकि मुख्यमंत्री रघुवर दास के पास एक ही व्यक्ति संजय कुमार के रुप में था, जो बताता था कि क्या गलत है और क्या सही हैं, मुख्यमंत्री के रुप में उनके द्वारा किये जानेवाले कार्य में कहां आगे चलकर दिक्कत हो सकती हैं और कहां दिक्कत नहीं हो सकती, पर इस अहंकारी रघुवर को संजय कुमार की यही बात अच्छी नहीं लगती थी, उसे तो अच्छा लगता था कि उसके आस-पास के लोग जिस प्रकार उसकी हां में हां मिलाते हैं, वाह-वाह करते हैं, उसकी जी-हूजुरी करते हैं, आखिर संजय कुमार क्यों नहीं करते?
आखिर उन्हें मुख्यमंत्री का प्रधान सचिव कौन बनाया, रघुवर ने ही तो बनाया, इसलिए उनका काम है, सत्य छोड़, सदैव आरती उतारना और उनकी हां में हां मिलाना, जैसे कनफूंकवें व आलादर्जे के धूर्त अधिकारी करते हैं, और अपना उल्लू सीधा करते हैं। बेचारे संजय कुमार इन मूर्खों और आलादर्जे के धूर्त अधिकारियों में पीसे जा रहे थे, अंत में जब उन्होंने देखा कि यहां कुछ होनेवाला नहीं, तो उन्होंने सीधे बिहार का रुख किया और वहां वे स्वास्थ्य विभाग में कार्य करते हुए एक बेहतर बिहार बनाने में फिलहाल लगे हैं।
जबकि उनके जाने के बाद मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव खुद को कहलानेवाला सुनील कुमार बर्णवाल और सीएम रघुवर का परिक्रमा करनेवाले अधिकारियों और धूर्त नेताओं का दल सीएम रघुवर के साथ क्या किया? ये सत्ता गंवानेवाले निवर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास को अभी भी नहीं समझ में आ रहा तो ये उनकी बुद्धि की बलिहारी है।
ऐसे भी कहा जाता है कि जिसकी जैसी बुद्धि होती है, जैसा चरित्र होता है, लोग वैसे ही लोगों को अपना बनाते हैं, चूनते हैं और चल पड़ते हैं, जो लोग सुनील कुमार बर्णवाल को मीटिंग लेते हुए देखे हैं, या उन्हें अपने नीचे के अधिकारियो के साथ व्यवहार करते देखे हैं, उन्हें पता होगा कि ठीक इसी प्रकार का व्यवहार सीएम रघुवर दास का हैं, इसमें कोई किसी से उन्नीस या बीस नहीं, बल्कि दोनों बराबर है।
यही कारण है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा चलाई गई सारी योजनाएं धूल में मिल गई, और दोनों के बोल वचन ने जनता और मुख्यमंत्री के बीच ऐसी दूरियां बना दी कि रघुवर सरयू में ही विलीन हो गये। जरा लाखों डोभा बनवानेवाले सीएम रघुवर दास से पूछिये कि जो लाखों डोभा उनके कार्यकाल में जो कागज पर बनाये गये, वे कहां हैं? उनसे पूछिये कि डिजिटल झारखण्ड का क्या हुआ? नहीं बतायेंगे, पर उनकी कृपा पानेवाले मूर्खों का दल कितना लाभान्वित हुआ, ये नहीं भी बतायेंगे तो राज्य की जनता जानती है।
हमें याद है कि जब में आइपीआरडी में कार्य करता था, तो वहां मुझे कोई एप्वाइन्टमेंट लेटर नहीं दिया गया था, फिर भी मैं अवधेश कुमार पांडेय, निदेशक आइपीआरडी के कहने पर कार्य करता था, और वहां ऐसे-ऐसे कार्य किये हैं कि वैसा कार्य किसी जिंदगी में एक व्यक्ति, अकेले नहीं कर सकता, आप जो फिल्म नीति देख रहे हैं, वो अकेले मैंने ही बनाया, ये अलग बात है कि उसका श्रेय लेने के लिए बहुत लोग दौड़ पड़े।
इसके प्रमाण हमारे पास मौजूद है, पर मैंने देखा कि हमारे काम को नजरदांज कर, मुख्यमंत्री आवास में कनफूंकवों का दल मुझे विलेन बनाने में लगा था, एक दिन निवर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास के प्रधान सचिव संजय कुमार ने निदेशक अवधेश कुमार पांडेय से कहा कि वे मुझसे मिलना चाहते हैं, मैं उनके कार्यालय में जाकर मिला। मैं देखा कि वे मुझसे बहुत गुस्से में थे, पर जैसे ही वार्ता हुई, उन्हें सच्चाई पता लग गया और उन्होंने कहा कि मिश्राजी हमलोगों के साथ काम करेंगे।
पर मुख्यमंत्री सचिवालय में कार्यरत मूर्खों की संख्या हमें झेलने को तैयार नहीं थी, इसी बीच अवधेश कुमार पांडेय इन सारी घटनाओं को समझ चुके थे और उन्होंने दिल्ली जाने की तैयारी कर ली और इधर हाथी उड़ाने का अभियान चल पड़ा, मैंने सबसे पहले फेसबुक पर लिखा – हाथी नहीं उड़ता है, इसी बीच ईश्वरीय कृपा हुई।
राज्य के भ्रष्ट अधिकारियों का दल हाथी उड़ाने के लिए तैयार था, दिल्ली में बैठे प्रचार को लेकर बनी कंपनियां रघुवर सरकार को मूर्ख बनाकर राज्य की निर्धन जनता के पैसों को लूटने के लिए तैयार थी, काम शुरु हुआ और लीजिये हाथी उड़ाने का अभियान जोरों पर चलने लगा, अच्छा हुआ कि अवधेश कुमार पांडेय हाथी उड़ाने के अभियान के पहले ही दिल्ली चले गये, और मैं उनके दिल्ली जाने के पहले ही आइपीआरडी से सदा के लिए नाता तोड़ लिया।
हालांकि संजय कुमार चाहते थे कि मैं आइपीआरडी में काम करूं, पर मेरा दिल नहीं माना, मैने उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया और फिर कुछ महीनों के बाद मुख्यमंत्री रघुवर दास के अल्पज्ञान का इस्तेमाल धूर्त आइएएस अधिकारियों के दल ने जमकर उठाया, जो निवर्तमान मुख्यमंत्री के साथ कल तक चिपके थे, सत्ता का स्वाद लेने के लिए उनके घर के लोगों ने टिकट भी लिये, पर जनता ने उन्हें विधानसभा में इस बार भी पहुंचने नहीं दिया।
और उधर संजय कुमार को यहां से हटाने के लिए कुचक्र तेजी से चला, अंततः तीन वर्ष जैसे ही पूरा, संजय कुमार ने खुद को झारखण्ड से अलग करने का फैसला लिया, स्वयं को मुक्त करने का फाइल बढ़ाया, सीएम रघुवर ने फाइल पर दस्तखत कर दी, और लीजिए एक बेहद अच्छा इन्सान, जो सबकी मदद करने में विश्वास रखता था, जो झारखण्ड को बेहतर दिशा देने की मकसद से बिहार से चला था, बिना कुछ किये पुनः बिहार चल पड़ा।
जाते-जातेअंत में उन्होंने कहा था कि मिश्रा जी, इस झारखण्ड का कभी भला नहीं हो सकता, पर उन्हें यह नहीं पता था कि एक ब्राह्मण अपनी चुटिया खोल रखी हैं, और इस घननन्द रुपी रघुवर को सदा के लिए समाप्त करने का प्रण कर लिया है, आज घननन्द रुपी रघुवर सदा के लिए समाप्त है, उसकी धूर्त सेना गायब है, और एक नया युवा शासन संभाल रहा हैं, विश्वास रखिये, ये हेमन्त एक नया सवेरा झारखण्ड में लायेगा, क्योंकि हेमन्त सोरेन को किसी मीडिया या किसी की कृपा ने नहीं बनाया बल्कि जनता ने बनाया है।