वैदिक परम्पराओं के नाम पर चलनेवाली डीएवी स्कूलों में क्रिसमस की धूम, अभिभावक पड़े चक्कर में
खूंटी के स्वामी श्रद्धानन्द डीएवी शताब्दी पब्लिक स्कूल द्वारा क्रिसमस की बधाई देने तथा बच्चों से क्रिसमस ट्री की डिमांड को लेकर यहां बवाल मचा है। अभिभावकों का कहना है कि डीएवी स्कूल जहां वैदिक परम्पराओं की बात होनी चाहिए, वहां से क्रिसमस ट्री की डिमांड एवं क्रिसमस की बधाई, समझ से परे हैं।
अभिभावकों का कहना है कि इस परम्परा की शुरुआत का मतलब है कि अपनी वैदिक परम्पराओं को छोड़ डीएवी पब्लिक स्कूल विशुद्ध वाणिज्यिक परम्परा की ओर प्रवृत्त हो चुकी है और इसका दुष्प्रभाव आनेवाले समय में खूंटी जैसे आदिवासी बहुल इलाकों में पड़ेगा।
अभिभावकों का कहना है कि कान्वेन्ट स्कूलों में आज तक उन्होंने रामनवमी या जन्माष्टमी मनाते नहीं देखा, देखने को तो डीएवी खूंटी में भी ये सब नहीं मनाते, लेकिन जरा क्रिसमस ट्री की डिमांड और उसकी बधाई को देखिये तो ये कितने रुचि ले रहे हैं, जो बताने के लिए काफी है कि ये धर्मनिरपेक्षता के नाम पर किस प्रकार अपने ही स्कूल में वैदिक धर्म को लहूलुहान कर रहे हैं।
जानकार बताते है कि डीएवी स्कूलों की स्थापना पूरे भारत में इसलिए की गई थी कि भारतीय वैदिक परम्पराओं को लोग आत्मसात करें, बच्चों को बचपन से ही उन्हें वैदिक संस्कारों के ढांचे में ढालकर, उसमें भारतीय परम्परा और उनके जीवन मूल्यों का बीजारोपण हो, पर जिस प्रकार से खूंटी में स्थापित वह भी स्वामी श्रद्धानन्द के नाम पर बना डीएवी पब्लिक स्कूल ने वैदिक मूल्यों की ही धज्जियां उड़ा दी, वो बर्दाश्त के बाहर है।
अभिभावकों ने विद्रोही24.कॉम को बताया कि इस स्कूल ने क्रिसमस पर्व पर अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट कर आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती का भी अपमान कर दिया, उनका कहना था कि जब हमें क्रिसमस ट्री या क्रिसमस का ही बधाई लेना और देना हैं तो हमें डीएवी में अपने बच्चों को पढ़ाने की क्या जरुरत? अच्छा रहता कान्वेंट में डाल देते, यहां बच्चों को देकर तो उन्होंने भारी गलतियां कर दी।
कुछ अभिभावकों ने इसकी शिकायत दिल्ली स्थित आर्य समाज मुख्यालय एवं डीएवी पब्लिक स्कूल के मुख्यालय को कर दी हैं, जहां लोग इस शिकायत को लेकर गंभीर है। हो सकता है कि संबंधित स्कूल के प्राचार्य पर कार्रवाई भी हो जाये। इसी बीच कई संस्थाओं ने स्वामी श्रद्धानन्द डीएवी पब्लिक स्कूल के इस कार्य की तीखी आलोचना की हैं तथा अपने रवैये में सुधार लाने को कहा है, ताकि भारतीय मूल्य एवं परम्पराएं पश्चिमी सभ्यता एवं संस्कृति के चक्कर में बर्बादी के कगार पर न पहुंच जाये।