रांची के चुटिया थाना प्रभारी रवि ठाकुर को तो इस कार्य के लिए भारत रत्न दे देना चाहिए
भाई, जो व्यक्ति नशे में रहकर नौ लोगों को रौंद दें, जिसमें दो लोगों की मौत हो जाये और सात जीवन और मौत से झूलते नजर आये और कार चला रहे युवक को कोई थाना प्रभारी खड़े-खड़े जमानत दिलवा दें, तो इसका मतलब क्या हुआ? इसका मतलब हुआ कि जिस थाना प्रभारी ने ऐसे युवक को जमानत दिलवाई हैं, वो विशेष प्रकार की प्रतिभा से युक्त हैं, और उसकी इस प्रतिभा बताती है कि वह भारत रत्न पाने का असली हकदार है।
ऐसे भी हमसे कोई पुछे कि झारखण्ड पुलिस के बारे में क्या ख्याल है, तो मेरा जो ओपिनियन है, वह यह है कि भ्रष्टाचार का शीर्ष स्थान अगर कोई पाने का असली हकदार है, तो वह झारखण्ड पुलिस है, झारखण्ड पुलिस है, झारखण्ड पुलिस है, क्योंकि यहां अगर आपके पास पैसे हैं, तो आप आराम से किसी को भी मौत की नींद सुला दीजिये, थाना में बैठे मुंशी से लेकर थाना प्रभारी तक को या उपर के अधिकारियों को पैसे रुपी च्यवनप्राश एक-एक चम्मच खिलाते जाइये, आप आराम से बरी हो जायेंगे और पुलिस ही आपको आराम से बरी करवा देगी।
और संयोग से, आप गरीब है, या आपको ईमानदारी की कीड़ा काटे हुए हैं तो समझ लीजिये आपको ये मुंशी से लेकर थाना प्रभारी और उच्च पुलिस पदाधिकारी आपको जूते भी मारेंगे और आपको उलटा लटका भी देंगे, यह सच्चाई है, इसके कई उदाहरण है, जरा आप खुद देखिये, सुचित्रा मिश्रा हत्याकांड में क्या हुआ? जिसने खुद आरोप स्वीकार किया, वही साक्ष्य के अभाव में बरी हो गया, अब बताओ साक्ष्य उपलब्ध कराना किसका काम था?
बाघमारा की कमला की प्राथमिकी तक दर्ज नहीं होने दी, हाई कोर्ट के आदेश पर प्राथमिकी वह भी एक साल के बाद दर्ज हुआ और उसकी जांच भी शुरु नहीं हुई, हाई कोर्ट राज्य सरकार से इस प्रकरण पर अब तक की अद्यतन जांच रिपोर्ट मांग रही है। कतरास में ही एक लड़के को दुष्कर्म के आरोप में फंसा दिया गया, पुलिस को पता है कि जिस लड़के पर दुष्कर्म का आरोप है, वह निर्दोष हैं, क्योंकि जो दुष्कर्म की टाइमिंग और घटनास्थल बताया गया है, उस वक्त वह लड़का अपने घर में था, जिसका सीसीटीवी फूटेज भी उपलब्ध है, क्या हुआ? फिर भी पुलिस उसे ही दोषी मानकर उसे लटकाने का प्रबंध कर रही है।
और ये ताजा मामला चुटिया के महान थाना प्रभारी तथा भारत रत्न के प्रबल दावेदार रवि ठाकुर का है, जिन्होंने गजब ढा दिया, जिसने नशे में नौ लोगों को रौंद दिया, वह नशे में था या नहीं इसकी जांच तक नहीं कराई, गाड़ी का ब्रेक फेल था या नहीं इसकी भी जांच नहीं कराई गई और अदालत में उसे बेल दिलवाने का प्रयास कर दिया गया, जबकि पीड़ित पक्ष चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा था कि कार चालक नशे में है।
कल के इस कांड में अजय भोक्ता और बादल करमाली की मौत हो गई। सोनू करमाली, रोशन कुमार महतो, सुमित करमाली, दिलीप करमाली, मनीष करमाली, प्रदीप करमाली घायल है, पर चुटिया के थाना प्रभारी का इन पर दिल नहीं पसीजा, क्योंकि ये गरीब लोग हैं, थाना प्रभारी को इनसे क्या मिलता, केवल दुआएँ, और दुआओं से तो आलीशान महल नहीं बनते, आलीशान महल तो बनते है, जतिन जैसे नशे में गाड़ी चलानेवाले युवक को बचाने से, इसलिए उसने जतिन पर कृपा लूटा दी, क्योंकि जतिन रवि ठाकुर के लिए क्या नहीं कर सकता?
कमाल है भागने के क्रम में कार चालक ने घायलों को कुछ दूर तक घसीटा, पर क्या मजाल कि रवि ठाकुर जैसे लोगों को घायलों पर दया आती, या मरे लोगों के लिए इनके दिल में दया जगती, पर दया कहां जग रही थी, समझते रहिये, अब सवाल झारखण्ड पुलिस से क्या गरीब सिर्फ मरने के लिए ही पैदा होते हैं?
सड़क सुरक्षा पर काम कर रहे ऋषभ आनन्द लिखते है कि हमें आपकी मदद चाहिए। आरोपी जतिन को सजा दिलाने में, आम लोगों को न्याय दिलाने में। क्या ये खबर जो आज अखबारों के फ्रंट पेज पर है आम नागरिकों के लिए, क्या इस देश में यही न्याय है? हम अक्सर ही बातों ही बातों में न्याय व्यवस्था पर अंगुली उठाते हैं लेकिन, जब समाज के रसूखदार व्यक्ति गलत करने पर भी सही साबित हो रहे हों तो व्यवस्था पर सवाल करना लाजिमी है।
हमारा समाज इन दिनों पैसा ‘भगवान’ नहीं है, मगर पैसा भगवान से कम नहीं, कि नई परिपाटी पर चलने लगा है। कभी-कभी लगता है कि समाज की सोच को पतन की ओर ले जा रही इस परिपाटी को क्या हमारे न्याय तंत्र ने ही समय के साथ मजबूत नहीं किया है? इसमें कोई दो राय नहीं कि न्याय तंत्र की स्थापना समाज में होने वाले अपराधों को रोकने एवं अपराधियों को दंडित करने के लिए हुई है।
मगर, जब जब ऐसे हादसे होते हैं और आरापियों को बचाने की कोशिश हो रही होती है, तो मन सहज कह उठता है कि तुम क्यों परेशान होते हो, न्याय व्यवस्था में भगवान नहीं, समाज से जुड़े हुए लोग ही बैठे हैं, जिनकी आम आदमी की तरह बहुत सारी ख्वाहिशें हैं, जिनकी पूर्ति धन से होती है, जिन्हें रोजमर्रा के जीवन में आम आदमी की तरह अन्य विभागों से होकर गुजरना पड़ता है और जिनके पास अपनी जरूरतें भी हैं और परिवार भी।
रांची में अपनी तरह के पहले हिट एंड रन केस में दो मौतें हुईं, नौ लोग कुचले गए थे, लेकिन हैरानी की बात यह हुई कि आरोपी जतिन को एक रात भी जेल में नहीं बितानी पड़ी। मानों, सब कुछ एक योजनाबद्ध तरीके से हो रहा हो, जैसे फिल्मों में होता है। आम आदमी की मौत कुत्ते की तरह भुला दी गई और लोगों का क्या? वे तो नए साल के अपने जश्न में रमे हैं, उनका अपना कोई नही मरा। खैर जो रसूखदार आरोपी हैं, जो प्रथम दृष्टया दोषी हैं, जो बलशाली हैं, जो सबूतों को मिटाने की क्षमता रखते हैं, केसों को प्रभावित करने का दम रखते हैं, उनके लिए हवालात के दरवाजे सदैव बंद हैं।
पुलिस अधिकारी की ओर से बचकानी दलील दी गयी कि प्रथम दृष्टया आरोपी ने शराब नही पी थी। ऐसा प्रतीत होता था इसलिए शराब की जांच नही करवाई गई। काश कोई नए सिरे से इस मर्डर केस को खंगाले। जतिन अपने डायटों के साथ जहां शराब पी रहा था, वहां के सीसीटीवी को खंगाला जाए, तो आरोपी ने शराब पी थी या नही पता लगाया जा सकता है। जतिन के खून की जांच नही करने वाले पुलिस अधिकारियों को भी दंडित करने चाहिए। जमानत पर रिहा होने पर, अब तो गवाहों व सबूतों को प्रभावित करने की पूरी संभावना है।
दुःखद,,जैसे ससपेंड होना चाहिए..वो बेल दीलवा रहा,जांच होनी चाहिए