दलित बच्चों को कराटे ड्रेस दिया जा रहा था पर धनबाद के मीडिया हाउसों के लिए यह समाचार नहीं था
कल मैं धनबाद में था। अम्बेडकर स्कूल ऑफ मार्शल आर्टस के संस्थापक निदेशक अनिल बांसफोड़ ने मुझे अपने कार्यक्रम में आने को आमंत्रित किया था। अनिल बांसफोड़ एक दलित परिवार से आता है और उसने अपनी प्रतिभा के बल पर खुद व अन्य दलित बच्चों को भी उस मुकाम पर ले गया है, जहां जाने की हर की इच्छा रहती है, यही कारण है कि धनबाद के प्रबुद्ध लोग दिल खोलकर अनिल बांसफोड़ की मदद करते हैं।
चूंकि कल यानी 19 जनवरी को अम्बेडकर स्कूल ऑफ मार्शल आर्ट्स के द्वारा नर्सिंग स्कूल जगजीवन नगर के छात्राओं को कराटे का ड्रेस प्रदान किया जाना था, इसलिए इस कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि गोपाल सिंह, अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक, सीसीएल, रांची, विशिष्ट अतिथि के रुप में पी एम प्रसाद, अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक, बीसीसीएल धनबाद, आर एस महापात्रा, कार्मिक निदेशक बीसीसीएल धनबाद, ललन चौबे, महामंत्री इंटक, वरिष्ठ पत्रकार सुशील भारती, वरिष्ठ समाजसेवी राम इकबाल सिंह, पूर्व सीएमएस डा. संजीव घोषाल, समाजसेवी अदनान मुस्तफा कुदूसी प्रमुख रुप से मौजूद थे।
हमें उस वक्त अच्छा लग रहा था, जब छोटी-छोटी बच्चियां सीसीएल के सीएमडी गोपाल सिंह के हाथों जब कराटे ड्रेस ले रही थी, तब उनके चेहरे को पढ़ना हमें बहुत अच्छा लग रहा था। जो दे रहे थे यानी सीसीएल के सीएमडी गोपाल सिंह और जो ले रहे थे यानी नर्सिंग स्कूल की छात्राएं सभी प्रफुल्लित थे, कहा भी जाता है कि जब दोनों पक्ष प्रसन्न हो तो कार्यक्रम की शोभा देखते बनती है।
आम-तौर पर मैं इन सारी कार्यक्रमों से दूर रहने की कोशिश करता हूं, क्योंकि मुझे मंच पर बैठना अच्छा नहीं लगता है, पर अनिल बांसफोड़ मुझे तीन बार अब तक अपने मंच पर बैठा चुका है। एक उस वक्त जब मैं ईटीवी धनबाद में कार्यरत था तब, और दो बार जब मैं कही नहीं हूं तब। पता नहीं क्यों, ये हमें इतना क्यों चाहता हैं, पर सच्चाई यह है कि मैंने उसके लिए कुछ भी नहीं किया, पर वो सबको बताता है कि मैंने उसके लिए बहुत कुछ किया, जबकि सच्चाई यह है कि पत्रकारिता के दौरान हम जो भी कुछ दिखाते हैं, वो हमारी ड्यूटी हैं, कर्तव्य है, उससे किसी का भला हो जाय, उसमें हमारा क्या योगदान, ये तो मुझे करना ही चाहिए, और अगर हम नहीं ऐसा करते हैं तो हम खुद के साथ अन्याय कर रहे हैं, ये हमारा मानना है।
कल हमने पहली बार देखा कि सीसीएल के सीएमडी गोपाल सिंह स्वयं बच्चों के इस कार्यक्रम में रुचि ले रहे थे। आम तौर पर ऐसे कार्यक्रम में बड़े अधिकारी भाग तो लेते हैं, पर अनमने ढंग से समय देकर भागन की कोशिश में लगे रहते हैं, पर मैंने देखा कि सीसीएल सीएमडी गोपाल सिंह में ऐसी कोई बात नहीं थी, वे खुद सपत्नीक पहुंचे और उनकी पत्नी ने भी इस कार्यक्रम में खुब दिलचस्पी दिखाई।
गोपाल सिंह ने इस दौरान अपना संस्मरण सुनाते हुए कहा कि उन्होंने अपने सेवा कार्य के दौरान पाया है कि राज्य में प्रतिभाओं की कमी नहीं हैं, जहां भी अवसर मिला है, ऐसे-ऐसे बच्चों ने ऐसी करतबें दिखाई है कि लोग मंत्र-मुग्ध हुए हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने जब अनिल बांसफोड़ से पूछा कि ये कराटे की ड्रेस जो तुम इन बच्चियों को देने जा रहे हो, ये कराटे के ड्रेस कहां से आये, तो उसने बताया कि ये कराटे की ड्रेस की व्यवस्था उसने स्वयं की है।
यानी एक ऐसा युवक जो स्वयं को समाज के लिए झोक दिया हैं, ऐसा विरले ही देखने को मिलता है। उन्होंने बच्चियों को हौसलाअफजाई करते हुए कहा कि आप स्वयं को कभी कमजोर नहीं समझे। खुद को ताकतवर बनाये, क्योंकि आप ही कभी मां, बहन, बेटी, मित्र बनकर पुरुषों व समाज को सबल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देती है।
इंटक नेता ललन चौबे ने पूरे प्रकरण में इन दलित बच्चों के योगदान की सराहना की, तथा बीसीसीएल व सीसीएल के सीएमडी को संबोधित करते हुए कहा कि वे इन बच्चों पर इतना जरुर कृपा करें कि जो मूलभूत सुविधाएं जो आप दे सकते हैं, उन्हें जल्दी प्रदान करें, क्योंकि जहां ये बच्चे रहते हैं, वहां शौचालय तथा पेयजल तक की व्यवस्था नहीं।
वरिष्ठ पत्रकार सुशील भारती ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि अनिल बांसफोड़ और उसकी संस्था द्वारा किये जा रहे सामाजिक प्रयास की जितनी प्रशंसा की जाय कम है, यहां के बच्चों ने समाज को बेहतर बनाने में बड़ी भूमिकाओं का निर्वहण किया है, वह भी तब जब इन्हे समाज से अपेक्षित सहयोग नहीं मिला।
अंत में बदमाशी देखिये, धनबाद से निकलनेवाली खुद को बड़ी-बड़ी संस्थान कहलानेवाली अखबारों-चैनलों का। दैनिक जागरण ने अपने यहां इस समाचार को स्थान ही नहीं दिया है। दैनिक भास्कर व हिन्दुस्तान ने चार लाइन की खबर बना दी है। प्रभात खबर तो नहीं ही समाचार देता तो अच्छा रहता, क्योंकि उसने समाचार की ऐसी-तैसी कर दी है, उसने ऐसा क्यों किया हैं, मैं जानता हूं।
बाकी के राष्ट्रीय व क्षेत्रीय चैनलों के लिए तो ये समाचार है नहीं, क्योंकि दलितों के बच्चें, सफाईकर्मियों के बच्चें बेहतर करें तो उनकी नजर में उससे समाज को क्या लाभ। यहां तो पूंजीपतियों के घरों के बच्चे और उनकी पत्नियों, आइएएस/आइपीएस की पत्नियों और बच्चों के समाचारों को स्थान देने का फैशन चल पड़ा हैं और ये तब तक चलेगा, जब तक मीडिया हाउसों में दलितों/आदिवासियों के घरों से निकले बच्चे संपादक या इन संस्थानों के मालिक नहीं बनेंगे, इसलिए दलितों/आदिवासियों को चाहिए कि वे इस ओर सोचें, नहीं तो जिंदगी भर ये अपने समाचार को अखबारों/चैनलों में स्थान दिलाने के लिए तरसते रहेंगे।
अनिल बांसफोड़ और उनके जैसे दलितों/आदिवासियों को चाहिए कि वे पत्रकारिता के क्षेत्र में आगे बढ़े। कोई जरुरत नहीं, अखबार-चैनलों की। सोशल साइट पर ही मुहिम चलाएं, देखना सफलता मिलेगी, और इसे हासिल किये बिना चैन नहीं लेने का संकल्प आज ही लेना होगा।
आज मैंने धनबाद से प्रकाशित सारे अखबारों-चैनलों को देख लिया किसी ने भी मर्यादा का पालन नहीं किया, सभी ने दलितों के आवाज को बंद करने में ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मैं अकेले ही, ऐसे अखबारों-चैनलों की निन्दा करता हूं, जो इन दलितों के कार्यक्रमों को बेहतर ढंग से अपने अखबारों-चैनलों में जगह नहीं दी।
शुभ कार्यों का श्रेय सब को नहीं मिलता..विद्रोही ने छापा और वह भी जब आप खुद साक्षी रहें..और क्या चाहिए..अनिल जी को धन्यवाद,शुभकामनाएं..