अपराध

बिना सच्चाई के ही झारखण्ड के DGP ने IFWJ के खिलाफ गोपनीय सर्कुलर करवाया जारी, देश भर के हजारों पत्रकार आहत

झारखण्ड के पुलिस महानिरीक्षक (अभियान) ने राज्य के सभी वरीय पुलिस अधीक्षकों एवं पुलिस अधीक्षकों को एक गोपनीय सर्कुलर जारी किया है। यह सर्कुलर झारखण्ड जर्नलिस्ट एसोसिएशन रांची द्वारा जारी पत्र के आधार पर किया गया है, जिसमें झारखण्ड जर्नलिस्ट एसोसिएशन ने इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट पर आरोप लगाया है कि वह आइएफडब्ल्यूजे के नाम का दुरुपयोग तथा धन उगाही कर रही है।

पुलिस महानिरीक्षक (अभियान) ने इस गोपनीय सर्कुलर पर अपना हस्ताक्षर इसी सप्ताह 16 जनवरी 20 को किया है तथा इसकी प्रति अपर पुलिस महानिदेशक अभियान, पुलिस महानिरीक्षक मानवाधिकार सह रांची प्रक्षेत्र, सभी क्षेत्रीय पुलिस उप महानिरीक्षक को सूचनार्थ एवं आवश्यक क्रियार्थ, प्रदेश अध्यक्ष झारखण्ड जर्नलिस्ट एसोसिएशन रांची को उनके प्रासंगिक पत्र के आलोक में सूचनार्थ तथा पुलिस महानिदेशक के पीएस को सूचनार्थ प्रेषित किया है।

मतलब साफ है कि झारखण्ड जर्नलिस्ट एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष ने एक पत्र 14 जनवरी को राज्य के मुख्य सचिव डी के तिवारी, पुलिस महानिदेशक कमल नयन चौबे एवं राज्य के सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के निदेशक राम लखन गुप्ता को संप्रेषित किया और ये सभी अधिकारी हिल गये, त्वरित एक्शन में भी आ गये, वह भी उस पत्र के लिए, जिसमें पता नहीं कितने छेद हैं?

त्वरित एक्शन के दौरान पुलिस महानिरीक्षक अभियान ने सभी पदाधिकारियों को अपने पत्र में बताया है कि “उपर्युक्त विषय के संदर्भ में निर्देशानुसार प्रासंगिक पत्र का स्मरण करें, जो आपको भी संबोधित है। उक्त पत्र के माध्यम से सूचित किया गया है कि इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट का मामला न्यायालय में लंबित होने के कारण विक्रम राव गुट की मान्यता रद्द कर दी गई है, परन्तु विक्रम राव द्वारा देश भर के विभिन्न राज्यों के पत्रकार संगठनों से संबद्धता के नाम पर करोड़ों रुपये की उगाही चार वर्षों से की जा रही है, जिस पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया है। सुलभ संदर्भ हेतु प्रासंगिक पत्र की छाया प्रति संलग्न की जा रही है। अतः उपरोक्त परिप्रेक्ष्य में निर्देश दिया जाता है कि प्रासंगिक पत्र में वर्णित तथ्यों के संबंध में गहराईपूर्वक जांच पड़ताल कर विधि सम्मत कार्रवाई करना सुनिश्चित करें।”

जिस पत्र के आधार पर ये सब किया गया है। जरा उस पत्र पर भी नजर डालिये। झारखण्ड जर्नलिस्ट एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष ने राज्य के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और आइपीआरडी के निदेशक राम लखन गुप्ता को भेजे पत्र में लिखा क्या है? उसने अपने पत्र में लिखा है कि भारतीय प्रेस परिषद् ने इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट का मामला न्यायालय में लंबित होने के कारण विक्रम राव गुट की मान्यता रद्द कर दी है, अब सवाल उठता है कि क्या देश के किसी भी परिषद् को या भारतीय प्रेस परिषद् को किसी भी संस्था की मान्यता को स्वीकृत या रद्द करने का अधिकार है? उत्तर है – नहीं, तो फिर इस पत्र के आधार पर पूरे राज्य के पुलिस अधिकारियों को गोपनीय सर्कुलर कैसे जारी कर दिया गया तथा विक्रम राव के सम्मान के साथ खेलने की जुर्रत किस अधिकारी ने की?

पत्र में यह भी लिखा है कि इस बाबत उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भी एक पत्र जारी किया गया है, अब सवाल उठता है कि वह उत्तर प्रदेश सरकार का पत्र कहां है? और अगर उत्तर प्रदेश सरकार ने पत्र जारी भी किया हैं तो क्या यहां की पुलिस उत्तर प्रदेश सरकार के इशारे पर काम करेगी या झारखण्ड सरकार के इशारे पर काम करेगी, आखिर झारखण्ड पुलिस, उत्तर प्रदेश पुलिस कब से बन गई, क्या ये बताने की कोशिश करेगी?

जेजेए ने लिखा है कि विक्रम राव चार वर्षों से करोड़ों रुपये की उगाही कर रहे है, तब तो ऐसे में झारखण्ड पुलिस ही बतायें कि उनके पास इस आरोप की पुष्टि के क्या आधार है? बस ये कि किसी ने विक्रम राव के बारे में पुलिस महानिदेशक को लिख दिया और पुलिस महानिदेशक ने विक्रम राव के सम्मान के साथ खेलने की पूरी व्यवस्था कर ली, अगर विक्रम राव इसे लेकर पुलिस महानिदेशक के खिलाफ मानहानि का मुकदमा कर दें कि वे बताएं कि उन्होंने कहां से ये आरोप लगा दिये और ये करोड़ों रुपये कहां है, तो ये पुलिस महानिदेशक क्या बतायेंगे?

और अब पुलिस महानिदेशक ही बताये कि जिनके इशारे पर इतना बड़ा गोपनीय सर्कुलर जारी किया, जिस संगठन पर किसी ने घिनौने आरोप लगाये और उस पर विधि सम्मत कार्रवाई की बात कर दी गई, उस संगठन का तो रजिस्ट्रेशन नंबर हैं, साथ ही रजिस्ट्रार के हस्ताक्षरित अधिकार प्रपत्र भी उनके पास मौजूद हैं, पर जिसने पुलिस महानिदेशक को पत्र लिखकर घिनौने आरोप लगाये, उसके उक्त पत्र में झारखण्ड जर्नलिस्ट एसोसिएशन का रजिस्ट्रेशन नंबर क्यों नहीं हैं और अगर हैं भी तो पुलिस महानिदेशक उससे पूछकर बताये कि आपके पत्र के आधार पर उन्होंने गोपनीय सर्कुलर जारी करवा दिया, पर आपका रजिस्ट्रेशन नंबर क्या है? आप का संगठन दूध से धूला हैं, उसका सर्टिफिकेट कहां हैं, रजिस्ट्रार का हस्ताक्षरित आपको प्रस्तुत वह प्रमाण पत्र कहां है?

दरअसल ये मामला कुछ भी नहीं, ये मामला दो संगठनों का एक दूसरे पर हावी होने के अलावा कुछ हैं ही नहीं, पर राज्य के पुलिस महानिदेशक और काबिल अधिकारियों ने बिना सच्चाई का पता लगाये, एक के पत्र के आधार पर दूसरे के सम्मान के साथ खेलने का सारा प्रबंध कर लिया, जिसकी जितनी निन्दा की जाय कम है।

दरअसल इसकी भूमिका उसी दिन तय हो गई थी, जब विक्रम राव ने झारखण्ड जर्नलिस्ट एसोसिएशन के संबंध में मिल रही शिकायतों को लेकर दो सदस्यीय जांच टीम बना दी तथा उस टीम ने जो रिपोर्ट दी, उस रिपोर्ट के आधार पर विक्रम राव ने एक्शन लेना शुरु किया और फिर यही से शुरु हुआ, झारखण्ड जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा विक्रम राव तथा उनके संगठन को नीचा दिखाने का काम, जिसमें इन लोगों ने राज्य के सभी वरीय प्रशासनिक अधिकारियों/पुलिस अधिकारियों को अपने पूर्व के पहचान के आधार पर ग्रिप में लेना शुरु किया और ये वरीय प्रशासनिक अधिकारी/पुलिस अधिकारी इनके गिरफ्त में चलते चले गये और दूसरे अच्छे लोग बदनाम किये जाने लगे, जिसका प्रमाण है पुलिस महानिरीक्षक अभियान का वह गोपनीय पत्र जो राज्य के सभी पुलिस अधीक्षकों/वरीय पुलिस अधीक्षकों को भेजा गया है।

हालांकि इस गोपनीय पत्र मिलने के बाद आइएफडब्ल्यूजे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मोहन कुमार ने राज्य के मुख्य सचिव से मिलकर अपनी बात रखी तथा इस पूरे प्रकरण पर राज्य के पुलिस अधिकारियों की कार्य शैली पर गंभीर सवाल उठाएं। उन्होंने विद्रोही24.कॉम से बातचीत में कहा कि झारखण्ड जर्नलिस्ट एसोसिएशन के पदाधिकारियों के संदिग्ध आचरण की जानकारी मिलने के बाद आइएफडब्ल्यूजे से इसकी मान्यता 2018 में ही रद्द कर दी गई, फिर भी ये आइएफडब्ल्यूजे के नाम का इस्तेमाल करते रहे। कड़ा विरोध के बाद ये अनाप-शनाप दुष्प्रचार करने लगे।

उन्होंने कहा कि मोहन कुमार के द्वारा जारी किये गये पत्र किन पदाधिकारियों को प्राप्त हुआ और उनके द्वारा उसकी सत्यता की जांच कैसे की गई? क्या झारखण्ड जर्नलिस्ट एसोसिएशन राज्य या केन्द्र सरकार से पंजीकृत संगठन है? क्या भारतीय प्रेस परिषद् या किसी सरकार अथवा न्यायालय के द्वारा जारी कोई आदेश का अवलोकन किया गया? आरोप लगानेवाले व्यक्ति या संगठन और उनके पदाधिकारियों की जांच, क्या पुलिस महानिदेशक ने करवाई? जिन पर आरोप लगाया गया, उनके बारे में भी पता लगाया गया? क्या राज्य के पुलिस महानिदेशक को नहीं मालूम कि आइएफडब्ल्यूजे एक राष्ट्रीय स्तर का संगठन है, क्या पुलिस महानिदेशक को पता है कि उनके इस कृत्य से कितने पत्रकार आहत हुए हैं? ऐसे कृत्य से फर्जी एवं दोहरे चरित्र के लोगों को बढ़ावा मिलेगा। आइएफडब्ल्यूजे ऐसे लोगों पर कार्रवाई करने की मांग करता है।

आइएफडब्ल्यूजे के बिहार प्रदेश अध्यक्ष डा. ध्रुव कुमार ने अपने संगठन पर लगे सारे आरोपों को बेबुनियाद बताया है। उनका कहना था कि हाल ही में राजस्थान के पुष्कर में आइएफडब्ल्यूजे का एक सम्मेलन हुआ। जिसमें देश के पांच सौ पत्रकारों ने भाग लिया। जिसमें उत्तर-प्रदेश, दिल्ली व बिहार सहित देश भर के तमाम पत्रकार शामिल थे, जिसमें पत्रकार सुरक्षा अधिनियम बनाने की मांग को लेकर चर्चा भी की गई थी। ध्रुव कुमार का कहना है कि झारखण्ड में उनके संगठन को जो बदनाम करने की कोशिश की जा रही हैं, उसे सुनकर उन्हें हैरानी हुई हैं, स्थानीय वरीय पुलिस अधिकारियों और राज्य सरकार को चाहिए कि मामले को गंभीरता से लें तथा दोषियों पर कार्रवाई करें।