अपनी आदत से लाचार बेशर्म कांग्रेसियों ने सेवा भाव छोड़ अपने विधायकों को मंत्री बनाने पर लगाया ज्यादा जोर, हेमन्त को मुश्किलों में डाला
यही सच्चाई है। अपनी आदत से लाचार बेशर्म कांग्रेसियों ने जनता की सेवा पर ध्यान न देने के बजाय, अपने विधायकों को कैसे ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं उपलब्ध कराई जाये। उन्हें मंत्री पद कैसे दिलवाई जाये। उन्हें ज्यादा से ज्यादा मलाईदार विभाग कैसे दिलाई जाये। इस पर ज्यादा जोर लगा दिया है। इस जोर लगाने की प्रवृत्ति में सभी लगे हैं। क्या सोनिया, क्या राहुल, क्या रामेश्वर, क्या इरफान, क्या आरपीएन सिंह यानी किसकी बात की जाय। सबको अपनी पड़ी है। देश-राज्य भाड़ में जाय। माल ज्यादातर घर पर आये का नारा कुछ ज्यादा ही बुलंद हो चला है।
ऐसे भी इन कांग्रेसियों की आदत रही हैं। ये गठबंधन करना तो जानते हैं, पर गठबंधन धर्म का पालन करना नहीं जानते। ये ज्यादा से ज्यादा पाने के चक्कर में पूर्व में भी ऐसी हरकतें कर चुके हैं और वर्तमान में बिहार-कर्नाटक का इन्हीं हरकतों के कारण हाथ से निकल जाना, महाराष्ट्र की भी कुछ कमोबेश स्थिति ऐसी ही है, कब महाराष्ट्र हाथ से निकल जाये और एक बार फिर भाजपा-शिवसेना मिलकर महाराष्ट्र में फिर से सत्ता हासिल कर लें, कुछ कहा नहीं जा सकता और अब जहां झारखण्ड में झामुमो-कांग्रेस व राजद को जनता ने सत्ता सौंपी है, कब राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन का दिमाग घुमे और कब हेमन्त इन कांग्रेसियों को औकात बता दें, कुछ कहा नहीं जा सकता।
राजनीतिक पंडित तो साफ कहते है कि शुरुआत में ही जिस प्रकार की बेशर्मी कांग्रेसियों ने झारखण्ड में दिखानी शुरु की है, वो बताता है कि ये राज्य की जनता की सेवा के लिए राजनीति नहीं कर रहे, बल्कि अपने खानदान को दुनिया की सारी सुख-सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए राजनीति शुरु कर दी हैं, नहीं तो अब तक राज्य में पूरी तरह सरकार का गठन हो चुका होता, इसलिए यहां सारी गड़बड़ियों की जड़, अगर कोई है, तो वह कांग्रेस ही हैं।
कमाल है, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा कांग्रेस को चार मंत्री पद देना चाहती है, पर कांग्रेस की लालच कुछ ज्यादा की है। कांग्रेस चाहती है कि उसे ज्यादा से ज्यादा मंत्रीपद मिले, ताकि उनके विधायकों के परिवारों को कोई दिक्कत न हो, आराम से एक बार में ही जीवन का परम सुख प्राप्त कर लें। स्थिति ऐसी है कि कांग्रेस की वश चले, तो वह अपने सोलहों विधायकों को मंत्री बनवा दें, पर राज्य की जनता ने उसे 16 पर लाकर ही पटक दिया, वह भी तब जब ये झामुमो के साथ मिलकर लड़े, अगर मिलकर नहीं लड़े होते तो इनकी भी स्थिति तीन से चार सीटों वाली झाविमो से ज्यादा कुछ नहीं होती।
राज्य में हिंसक घटनाएँ हो रही हो, सामाजिक वैमनस्यता फैल रही हो, साम्प्रदायिक सद्भाव बिगड़ रहे हो, इन सबसे इन कांग्रेसियों को कोई मतलब नहीं, जबकि ये सत्ता में शामिल है, पर ये इन सब को छोड़कर इनके नेता फिल्म देखने में ज्यादा समय बिता रहे हैं, अब सवाल उठता है कि झारखण्ड की जनता ने इन्हें फिल्म देखने और ऐश करने के लिए चुना है क्या?
बताया जा रहा है कि यौन-शोषण के मामले में कभी जेल में बंद रहे झाविमो के प्रदीप यादव को देख, कांग्रेस के झारखण्ड प्रभारी आरपीएन सिंह का मन और दिल दोनों बेचैन हो उठा है। लोग बताते है कि आरपीएन सिंह चाहते है कि कांग्रेस में भी भाजपा नेता एवं यौन शोषण के आरोपी ढुलू महतो की तरह प्रदीप यादव जैसे नेता शामिल हो, वे मंत्री बने, ताकि कांग्रेस का झारखण्ड में और विस्तार हो, क्योंकि आरपीएन सिंह का मानना है कि वर्तमान कांग्रेस में यौन शोषण के आरोपी टाइप के नेता जब तक शामिल नहीं होंगे, कांग्रेस का सम्मान नहीं बढ़ेगा।
अब सवाल उठता है कि जहां इस प्रकार की सोच के नेता हो, उन नेताओं और उन पार्टियों से ये आशा रखना कि ये हेमन्त सोरेन को ठीक से काम करने देंगे, हमें तो नहीं लगता, अब ऐसे कांग्रेस के नेता जो भी कुछ कहें, उनकी हरकतें तो यही बता रही हैं, वो कहावत है न, चाहे जो मजबूरी हो, हमारी मांगे पूरी हो। शायद कांग्रेस वाले भी यही कह रहे हैं, झारखण्ड भाड़ में जाये, मेरे विधायक मंत्री बन जाये।