छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी, नये दौर में लिखेंगे, रांची प्रेस क्लब की नई कहानी
जब रांची प्रेस क्लब बन रहा था। संयोग से उस वक्त मैं आइपीआरडी से जुड़ा था। मुझे अच्छी तरह याद है कि जब भी समय मिलता, तत्कालीन मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव संजय कुमार, आइपीआरडी के निदेशक अवधेश कुमार पांडेय को लेकर उस वक्त बन रहे प्रेस क्लब को देखने के लिए पहुंच जाते और वहां कार्यरत अभियंता और कान्ट्रेक्टर को दिशा-निर्देश दे दिया करते।
यह मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि दो-तीन बार मैं स्वयं उनके साथ यहां पर आ चुका था। उनका इस बात पर विशेष ध्यान रहता कि जो प्रेस क्लब बने, वह सुंदर होने के साथ-साथ बेहतरीन हो, तथा यहां आनेवाले पत्रकारों को कोई दिक्कत का सामना करना न पड़े। जब रांची प्रेस क्लब बनकर तैयार हुआ, तो इसे सौंपने की जिम्मेदारी पर चर्चा होने लगी, और देखते ही देखते, स्वयं को महान घोषित करनेवाले लोग सक्रिय हो उठे और राज्य सरकार ने भी उनकी स्वघोषित महानता को देखते हुए रांची प्रेस क्लब उन्हें सौंप दी।
फिर शुरु हुआ रांची प्रेस क्लब में लोकतंत्र की स्थापना की बात, कई बार मीटिंग हुई, इसी दौरान आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरु हुआ। एक-दो मीटिंग में संयोग से मैं भी था, और लीजिये आज से दो साल पहले दिसम्बर महीने में चुनाव हो गया। रांची प्रेस क्लब से जुड़े सभी सदस्यों ने स्वघोषित मठाधीशों को हराया और नये-नये लोग चुने गये। झारखण्ड जो आदिवासी बहुल क्षेत्र माना जाता है, उपाध्यक्ष के पद पर एकमात्र आदिवासी सुरेन्द्र लाल सोरेन जैसे-तैसे चुनाव जीते, जबकि कई लोगों ने तिकड़म का भी सहारा लिया और वे जीते भी।
लेकिन जो लोगों की सोच थी, कि रांची प्रेस क्लब आने से रांची प्रेस क्लब में लोकतंत्र स्थापित होगा, वह देखने को नहीं मिला, खुद अपने में ही अहं का टकराव, समय नहीं होने का रोना, रांची प्रेस क्लब से महीनों अलग रहना, कई सामान्य मीटिंगों से भी खुद को अलग रखना, अपने लोगों को सम्मान नहीं करना, तथा इन्हीं में से कई लोग ऐसे भी थे, जिन्हें बात करने की भी तमीज नहीं थी, जिसको लेकर कई लोगों ने रांची प्रेस क्लब से खुद को अलग करने की भी कोशिश की, जिसे रांची प्रेस क्लब के अध्यक्ष राजेश सिंह ने उक्त इस्तीफे को स्वीकार करने से मना कर दिया।
हमारा मानना है कि जब रांची प्रेस क्लब राज्य सरकार द्वारा पत्रकारों को दे दिया गया और जब आप चुनाव जीत गये, पदभार ग्रहण कर लिया और उसके बाद अगर आप कहते है कि हमारे पास रांची प्रेस क्लब के लिए समय नहीं हैं, तो आप एक नंबर के अपराधी है, क्योंकि आप ने रांची प्रेस क्लब से जुड़े लोगों के ख्वाबों को कुचलने का काम किया। ऐसे लोगों को चुनाव लड़ने का कोई हक नहीं, क्योंकि आप वहां कमाने तो जा नहीं रहे।
वहां तो आपको सिर्फ सेवा देना है, तो ऐसे में क्या आपको चुनाव लड़ने के समय इस बात की जानकारी नहीं थी कि रांची प्रेस क्लब का अधिकारी बनने पर आपके पास अपने और अपने परिवार के लिए समय नहीं होगा, इसलिए जो आज चुनाव लड़ रहे हैं वे समझ लें कि कल उनके पास भी ऐसी स्थिति आयेगी और अगर फिर वे भी वहीं बहाने बनायेंगे कि हमारे पास समय नहीं हैं तो यह रांची प्रेस क्लब के लिए दुर्भाग्य होगा।
इसमें कोई दो मत नहीं कि जिन लोगों ने पिछले दो सालों में यहां योगदान दिया है, उनमें से कुछ लोग यहां नियमित आते रहे और जिनके कारण रांची प्रेस क्लब ने बेहतर प्रदर्शन किया। सचमुच वे बधाई के पात्र हैं, उनका अभिनन्दन करना चाहिए, पर यह भी सच है कि इनमें से ज्यादातर गायब होनेवाले लोग थे। मेरा मानना है कि दाग उसी पर लगते हैं, जो काम करता है, जो सफेद कपड़ा पहनकर दिन-रात मखमली चादरों से अपने को लपेटे रहेगा, उस पर दाग क्या लगेगा?
ऐसे भी अगर कोई यह कहता है कि हम आयेंगे तो रांची प्रेस क्लब को आसमान की बूलंदियों तक ले जायेंगे तो वह झूठ बोलता है, क्योंकि विकास कोई बाजार में बिकनेवाली वस्तु नहीं, और न ही कुछ चीजों को पाकर कोई व्यक्ति संतुष्ट हुआ है, अगर संतुष्ट हो गया तो फिर वह तो कबीर हो गया, तब फिर कबीर को रांची प्रेस क्लब से क्या काम, वह तो झोपड़ी में भी बैठकर वो संतुष्टि प्राप्त कर लेगा, जिसकी उसे आवश्यकता है।
और अब बात इस चुनाव की, इसमें कोई दो मत नहीं कि जिन्हें पूर्व में लोगों ने भारी मतों से जीताया था, उन्होंने स्वयं पतली गली पकड़ ली, क्योंकि इस बार वे रिकार्ड मतों से हारते भी, लेकिन भविष्य की हार की अनुभूति होते ही पतली गली पकड़ लेना, कोई सामान्य बात नहीं। कुछ ऐसे भी हैं, जो पूर्व में भी चुनाव लड़े और फिर इस बार भी भाग्य आजमा रहे हैं, और इसमें हमें कहने में कोई दो मत नहीं कि इन लोगों के बारे में लोग कुछ भी भला-बुरा कहे, पर इन लोगों ने प्रेस क्लब को समय दिया और खुब दिया, हालांकि इन पर आरोप भी लगे, पर मैं इन सभी बातों को प्रश्रय नहीं देता।
इस बार खुशी की बात है कि नये युवा चेहरे खुब देखने को मिल रहे हैं। जिन पर हम भरोसा कर सकते है कि आनेवाले समय में ये रांची प्रेस क्लब में लोकतंत्र को स्थापित करेंगे, जो प्रेस क्लब का संविधान हैं, उसका अनुपालन करेंगे और करवायेंगे, जो पूर्व में काम लोग छोड़ गये हैं, उसे पूरा करने में समय बितायेंगे। हमारे पास समय नहीं हैं, इसका रोना नहीं रोयेंगे। सबका सम्मान बरकरार रहे, इसका विशेष ध्यान रखेंगे। व्यक्तिगत नाराजगी को कूड़ेदान पर डाल आयेंगे, तथा स्वयं से नाराज लोगों के लिए भी वहीं भाव रखेंगे, जिनका वे सर्वाधिक सम्मान करते हैं।
हमें यह जानकर दुख हुआ कि इस चुनाव में कुछ पुराने लोगों ने नये लोगों को चुनाव नहीं लड़ने देने के लिए एक से एक प्लान बनाये और उन प्लानों को जमीन पर उतारने की कोशिश की, पर वे कामयाब नहीं हुए, अगर वे कामयाब हो जाते तो फिर सही मायने में लोकतंत्र यहां सदा के लिए मिट जाता, पर एक भय है कि अगर इसी प्रकार चलता रहा तो आनेवाले समय में यह भयावह रुप लेगा, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।
सबसे बड़ी बात यह है कि जब रांची प्रेस क्लब में कोई मलाईदार पोस्ट है ही नहीं तो फिर इन सामान्य पदों के लिए हो रहे चुनाव के लिए अभी से ही इतनी दिमाग क्यों लगाई जा रही हैं, अगर आप चुनाव हार गये तो कौन सी आपकी इज्जत चली गई, जीत-हार यहां कब मायने रखने लगी, अरे सभी अपने तो हैं, आप अपने भाइयों से ही तो लड़ रहे हैं, जीतेगा भी तो भाई और हारेगा भी तो भाई, अरे जब कोई जीते तो उसे गले लगाइये और कहिये “छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी, नये दौर में लिखेंगे, रांची प्रेस क्लब की नई कहानी।”
सही,
लड़ना क्या,
चुनना है,जो हमसब के प्रेसक्लब को सम्मानित स्तर तक पहुंचा दें..❣️❣️जयजय नारायण❣️❣️