बाबू लाल की BJP में वापसी अर्थात् ‘पुनर्मूषिको भव’ कहानी की पुनरावृत्ति के अलावे यहां नया कुछ नहीं
14 वर्ष का वनवास क्या होता है? कभी आपने इसके बारे में जानने की कोशिश की है, अगर नहीं तो रामायण व महाभारत पढ़िये। जानने की कोशिश कीजिये। श्रीराम, लक्ष्मण एवं सीता और उधर पांडवों ने इन 14 वर्षों में अपने जीवन को कैसे बिताया? क्योंकि हर बात में तुकबंदी ठीक नहीं होती, इससे उन महान दिव्य आत्माओं को कष्ट पहुंचता है, जिन्होंने सचमुच इन 14 वर्षों के दौरान अपने जीवन को कष्टपूर्वक काटा और बाद में स्वयं को प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच स्वयं को सिद्ध कर प्रतिकूलता पर विजय पा ली।
इधर जिन लोगों ने बाबू लाल मरांडी की पार्टी झारखण्ड विकास मोर्चा का भारतीय जनता पार्टी में विलय की तुलना 14 वर्षों के वनवास से की है, जरा वे बतायेंगे कि बाबूलाल मरांडी या उनकी पार्टी ने इन 14 वर्षों में किन प्रतिकूल परिस्थितियों का खाक छाना? सच्चाई यह है कि इन्होंने इन 14 वर्षों में हर पार्टी का दरवाजा खटखटाया, मुख्यमंत्री बनने के लिए हर विकल्प को ढूंढा, पर हर जगह उन्हें हार मिली और अब कोई विकल्प नहीं मिला तो हारे को हरिनाम वाली लोकोक्ति के अनुसार बाबूलाल को भाजपा कह अपनी पार्टी का भाजपा में विलय करा दिया और अब इसका फायदा भाजपा को या बाबूलाल मरांडी को कितना मिलता है, वो तो वक्त बतायेगा, पर सच्चाई यह है कि बाबूलाल मरांडी के लिए यह समय परीक्षा की घड़ी है।
झारखण्ड विकास मोर्चा के अंदर ही भाजपा में विलय को लेकर तीन धड़ा हो गया है, एक धड़े का नेतृत्व यौन शोषण के आरोपी प्रदीप यादव तथा बंधु तिर्की कर रहे हैं तो दूसरे धड़े का नेतृत्व खुद बाबू लाल मरांडी कर रहे हैं, जबकि एक तीसरा धड़ा भी है, जो जनसंगठनों से जुड़ा हैं, जिसने कभी बाबू लाल मरांडी की आंखों में कुछ देखा था, आज वह खुद को सर्वाधिक ठगा महसूस कर रहा है, जिसमें दयामनि बारला जैसी शख्सियत भी शामिल है। फिलहाल सभी अपना अपना राग अलाप रहे हैं।
प्रदीप यादव व बंधु तिर्की को सोनिया गांधी व राहुल गांधी में ही अपना बेहतर भविष्य दिख रहा हैं, जबकि बाबू लाल मरांडी को लगता है कि बची खुची जिंदगी व राजनीति गर करनी है तो उसके लिए भाजपा ही बेहतर है, दूसरी तरफ भाजपा को लग रहा है कि झारखण्ड उसकी हाथों से निकल रहा है और जब तक बाबू लाल मरांडी जैसे लोगों उनके पास नहीं होंगे, वह बेहतर स्थिति में नहीं आ सकती। यानी जीव विज्ञान की सहजीविता के आधार पर झाविमो और भाजपा ने एक दूसरे को प्राणदान देने का संकल्प लिया और एक कार्यक्रम आज मुकर्रर हुआ, बाबू लाल फिर से भाजपा के हो गये।
अब जरा देखिये, इन चौदह वर्षों में बाबू लाल मरांडी ने क्या-क्या किया? कभी कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़े और अपनी पार्टी को बेहतर स्थिति में लाने के लिए ठोस प्रयास किया, ये वह वक्त था, जब बाबू लाल मरांडी दोनों राष्ट्रीय पार्टी भाजपा व कांग्रेस को झारखण्ड के लिए अहितकर बताया करते थे। कभी भाजपा में नहीं जाने का कसम खानेवाले बाबू लाल मरांडी को जैसे ही नीतीश कुमार द्वारा भाजपा के सहयोग से बिहार में गठबंधन कर सरकार बनाने का कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ, इन्होंने नीतीश कुमार की पार्टी से भी दूरियां बना ली।
हालांकि जब उन्होंने झारखण्ड विकास मोर्चा बनाया था, तब उनकी पार्टी में भाजपा के एक से एक धुरंधर जैसे रवीन्द्र राय, दीपक प्रकाश, संजय सेठ आदि भी जुड़े थे, जो एक-एक कर उनसे दूर होते गये। स्थिति ऐसी हुई कि जो लोग उनकी पार्टी से जुड़े, वे कोई न कोई बहाना बनाकर बाद में भाजपा से जुड़ते ही चले गये, चाहे भाजपा ने प्रलोभन दिया हो, या कुछ और बात हो। हाल-हाल तक तो इन्हीं बातों को लेकर वे केस भी लड़ते रहे। भाजपा वाले भी इन पर मानहानि का मुकदमा करने के लिए प्रेस कांफ्रेस तक भाजपा प्रदेश मुख्यालय में आयोजित कर दिया था। इसलिए यह कहना कि उन्होंने 14 वर्ष का वनवास काटा है, मूर्खता के सिवा कुछ नहीं।
आज सही मायनों में देखा जाये तो सबा अहमद जैसे झाविमो के नेता ज्यादा दुखी हैं, जिन्होंने बाबू लाल मरांडी और झाविमो में कुछ देखकर अपनी राजनीति जारी रखी थी, पर जिस प्रकार की आज की राजनीति चल रही है, उस राजनीति में सबा अहमद जैसे लोग फिट नहीं बैठेंगे। ऐसे भी आजकल तो कहा ही गया है कि चरित्र गया तेल लेने, जो जितनी बार और जितनी बड़ी पलटी मारा, वो उतना बड़ा नेता हो गया, प्रदेश भाजपा में ऐसे लोगों की संख्या अधिक है, उसमें बाबू लाल मरांडी भी शामिल हो गये, ठीक उसी प्रकार जैसे आपने वह साधु और चुहिया वाली कहानी पढ़ी होगी, और अगर नहीं पढ़ी हैं तो संस्कृत साहित्य में एक और कहानी इसी से मिलता जुलता है, नाम है – पुनर्मूषिको भव। पढ़ने की कोशिश कीजिये, बहुत ही आनन्द आयेगा, और भाजपा-झाविमो में कौन चुहा है और कौन साधु, आसानी से पता चल जायेगा।