गिरिडीह मेयर चुनावः जब जाति प्रमाण पत्र गलत तो मेयर का चुनाव भी गलत, राज्य सरकार फैसले लेने को स्वतंत्र
जब राज्य निर्वाचन आयुक्त ने पंचायती राज विभाग को यह आदेश दे दिया कि गिरिडीह नगर निगम के मेयर सुनील कुमार पासवान को उनके पद से हटा दिया जाये, तो भाजपा के इस मेयर को बिना देर किये स्वयं मेयर पद से हट जाना चाहिए, क्योंकि राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा राज्य सरकार को इसके लिए अनुशंसा कर देना ही काफी है।
बताया जाता है कि सुनील कुमार पासवान ने मेयर पद के चुनाव के समय अपने जाति प्रमाण पत्र को लेकर गलत सूचना निर्वाचन आयोग को उपलब्ध कराई थी, जिसे पिछले साल ही रद्द कर दिया गया था। इधर सुनील कुमार पासवान ने दावा किया था कि आयोग को ऐसा करने का अधिकार ही नहीं।
सुनील कुमार पासवान के जाति संबंधी विवादों को लेकर पिछले दिनों सुनवाई हुई और राज्य निर्वाचन आयुक्त ने साफ कह दिया कि जब जाति प्रमाण पत्र ही गलत है तो मेयर का चुनाव भी रद्द होना चाहिए। इस मामले में राज्य सरकार कोई भी निर्णय लेने को स्वतंत्र है। राज्य निर्वाचन आयुक्त के इस आदेश के बाद यह भी तय है कि गिरिडीह के मेयर पद का चुनाव अब किसी भी समय रद्द हो सकता है तथा गिरिडीह के लोगों को फिर से एक नया मेयर चुनने का मौका मिलेगा।
ज्ञातव्य है कि गिरिडीह के भाजपा प्रत्याशी के रुप में मेयर बने सुनील कुमार पासवान के खिलाफ झारखण्ड मुक्ति मोर्चा ने ही मोर्चा खोल दिया था, तथा उन पर आरोप लगाया था कि सुनील कुमार पासवान ने गलत जाति प्रमाण पत्र के आधार पर जीत हासिल की है। चूंकि जिस वक्त मेयर का चुनाव हुआ था, राज्य में भाजपा की सरकार थी, और भाजपा के लोगों ने इस मामले को अपने ढंग से दबाने की कोशिश की, अब चूंकि राज्य में नई सरकार आ गई है तो अब सारी गड़बड़ियों को दुरुस्त करने का काम शुरु कर दिया गया है, जिसमें गिरिडीह के मेयर पद का चुनाव भी शामिल है।
झामुमो प्रत्याशी ने मेयर के चुनाव के दौरान ही गिरिडीह के उपायुक्त को इन गड़बड़ियों से संबंधित लिखित शिकायत दर्ज कराई थी। मामला चुनाव आयोग के पास भी गया। जिसकी जांच आदिवासी कल्याण आयुक्त को करने को कहा गया। आदिवासी कल्याण आयुक्त ने झामुमो प्रत्याशी के आरोप को सही ठहराया तथा सुनील कुमार पासवान के जाति प्रमाण पत्र को रद्द करने का आदेश जारी किया। जिसके आधार पर राज्य निर्वाचन आयुक्त ने गिरिडीह के मेयर सुनील कुमार पासवान के चुनाव को रद्द करने की अनुशंसा कर दी, अब गेंद राज्य सरकार के पाले में हैं कि वह क्या निर्णय लेती है।