भाई वाह, IPRD का निदेशक कौन होगा, अब रांची के अखबारों के संपादक और विज्ञापन प्रबंधक तय करेंगे?
जब से हेमन्त सोरेन मुख्यमंत्री बने हैं। सर्वाधिक परेशान अगर कोई हैं तो यहां के विभिन्न अखबारों के संपादक और विज्ञापन से जुड़े वे मठाधीश हैं, जिनका लगभग दो महीनों से मुंह सुखा हुआ है, क्योंकि आइपीआरडी यानी सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग से जो इन्हें मुंहमांगी रकम मिला करती थी, उस पर एक तरह से विराम लगा हुआ है। यह विराम कब समाप्त होगा, इसको लेकर ये नाना प्रकार के तरकीब तैयार कर रहे हैं, पर अफसोस कि उनकी सारी तरकीब फेल हो जा रही हैं।
हम आपको बता दें कि इस कार्य में वे संपादक और विज्ञापन प्रबंधक लगे हैं, जो पिछली सरकार में रघुवर भक्ति के सारे रिकार्ड तोड़ चुके हैं तथा हेमन्त सोरेन के खिलाफ जमकर अपना पेज भरा करते थे, पर इन दिनों यानी जब से हेमन्त सोरेन मुख्यमंत्री बने हैं, वे अखबार हेमन्त स्तुति गाने में लगे हैं। आश्चर्य है कि रघुवर सरकार में ऐसे-ऐसे अखबार भी रघुवर भक्ति में अनुप्राणित हुए हैं, जो कभी बाजार में दिखे ही नहीं,मतलब समझते रहिये और जो कुछ दिखते भी हैं तो वे सिर्फ इसलिए दिखते है ताकि इनके नाम पर उन संपादकों की मठाधीशी चलती रहे।
इधर आइपीआरडी में ही कार्यरत अधिकारी जिसे हाल ही में भारतीय प्रशासनिक सेवा में प्रोन्नत किया गया, उसे आइपीआरडी का डायरेक्टर बनाने में ये मठाधीश लग गये, ऐसी हवाबाजी करने लगे, जैसे लगा कि वो नया-नया प्रोन्नत बना आइएएस अधिकारी, डायरेक्टर बन ही गया, पर जैसे ही उक्त अधिकारी का तबादला कल्याण विभाग के संयुक्त सचिव पद पर हुआ। उन अखबारों के संपादकों-विज्ञापन प्रबंधकों के चेहरे लटक गये, ऐसा लगा कि उनके घरों में मातम छा गया हो।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो वे साफ कहते है कि कोई अधिकारी आइपीआरडी का डायरेक्टर बने, उसे अखबार के संपादकों और विज्ञापन प्रबंधकों को क्या मतलब? अरे सरकार के विज्ञापन जब जारी होंगे तो जिसको मिलना हैं, मिलेंगे, चाहे अधिकारी कोई भी हो, संपादकों और विज्ञापन प्रबंधकों के स्वभाव से मिलता जुलता अधिकारी डायरेक्टर क्यों बनेगा? आखिर उक्त व्यक्ति के प्रति उन संपादकों-विज्ञापन प्रबंधकों का इतना अनुराग क्यों?
हालांकि ऐसे व्यक्ति को डायरेक्टर बनाने के लिए जिस प्रकार रांची के कुछ अखबारों के संपादकों-विज्ञापन प्रबंधकों ने जो हरकतें की है, उन हरकतों से बुद्धिजीवियों में आक्रोश साफ दिख रहा है। इन बुद्धिजीवियों का कहना है कि ऐसे लोगों को जो इस प्रकार की हरकत करते हैं, उन्हें चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए।
बुद्धिजीवियों का कहना है कि राज्य सरकार को चाहिए, कि ऐसे संपादकों और विज्ञापन प्रबंधकों से दूर रहे, तथा स्वविवेकानुसार उसे जिसे लगे आइपीआरडी का डायेरक्टर बनाये, जिसे विशेष अनुभव प्राप्त हो, तथा जिस पर कोई दाग न हो, जो किसी पार्टी के खूंटे से न बंधा हो और न ही किसी संगठन में उसे ज्यादा दिलचस्पी हो तथा अपने काम के प्रति ईमानदार हो, न कि पूर्व मुख्य सचिव और पूर्व सरकार के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का रिकार्ड बनाने में लगा हो।