महिला दिवस के दिन नौटंकी करने से अच्छा है कि अन्नी जैसी महिलाओं को दिल से सम्मान किया जाये
ये अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं के प्रति सम्मान का जो ढोंग करते हो न, सच पूछो तो वो हमें अच्छा नहीं लगता, क्योंकि मैंने तुम्हारे इस ढोंग को करीब से देखा है। सच्चाई यही है कि किसी भी अखबार या चैनल में महिलाओं को वो सम्मान नहीं मिलता, जिसकी वो हकदार है। इसके लिए कुछ जगहों पर महिलाएं, तो कुछ जगहों पर प्रबंधन व तथाकथित पुरुष पत्रकारों के अंदर महिलाओं के प्रति उनकी घटिया सोच जिम्मेवार हैं, जो पता नहीं कब बदलेगी?
ईश्वरीय कृपा ही मैं कहूंगा कि मैंने अपने पत्रकारीय जीवन में अनेक संस्थानों में कार्य किया, इस दौरान नाना प्रकार के लोग मिले और जो भी मिले, उनमें ज्यादातर लोगों की सोच घटिया ही थी। मतलब वे महिलाओं को शो-पीस के अलावे कुछ अधिक समझा ही नहीं, जबकि मैंने कई जगहों पर देखा कि कुछ महिलाएं ऐसी भी थी, जिन्होंने अपने कार्य के दौरान अपनी प्रतिभा के बल पर अलग पहचान बनाई।
लोगों की महिला पत्रकारों या महिला उद्घोषकों या कही भी जहां महिलाएं काम कर रही हैं, उनके प्रति लोगों की क्या सोच होती हैं, उस सोच को 1985 में फिल्म ‘आखिर क्यों’ में बहुत ही खुबसूरत ढंग से दिखाया गया था। अगर आपको मौका मिले तो जरुर देखिये, जिसमें एक दृश्य है, एक कार्यक्रम को प्रस्तुत कर रही स्मिता पाटिल से एक श्रोता बदतमीजी से पेश आता है, जिस पर राजेश खन्ना उसे उसकी बदतमीजी की उसी वक्त सजा देते हैं, जिस पर राजेश खन्ना को दूरदर्शन का एक अधिकारी मेमो थमा देता है, ये दृश्य बताने के लिए काफी है कि एक महिला होते हुए किसी भी स्थान पर अपने काम को गति देना कितना कठिन है।
आज देखिये, रांची में कई जगहों पर महिलाओं के सम्मान में कई कार्यक्रम आयोजित किये गये हैं, जहां महिलाओं को बुलाकर कहा जाता है कि सम्मान किया गया। कुछ जगहों के दृश्य देखकर, मैं भी आश्चर्यचकित था, कि महिलाओं का सम्मान वे लोग कर रहे थे, जिनके पास सम्मान की एक छोटी सी पूंजी भी नहीं, चूंकि अपने देश में सम्मान लेनेवाला और सम्मान देनेवाला खुद भी अपना परीक्षण नहीं कर पाता कि वो इस लायक हैं भी या नहीं, उक्त कार्यक्रम में पहुंच जाता है, और जमकर स्वयं को ही प्रतिष्ठित करा लेता है।
खैर, यहां अब न तो कोई रवीन्द्र नाथ ठाकुर है और न ही कोई गांधी, ऐसे में समाज में जो लोग उपलब्ध होंगे, या जिनके पास जैसी आंखे होंगी, लोग वैसे ही लोगों को बुलायेंगे, सम्मान लेने-देने का कार्यक्रम का इतिश्री करेंगे। अब आप कहेंगे कि इसे लिखने की जरुरत क्यों पड़ गई? लिखने की जरुरत पड़ गई, इसलिए लिख रहा हूं। एक महिला पत्रकार है – अन्नी अमृता। जो जमशेदपुर में रहती है। कल ही यानी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर उसने न्यूज 18 से अपना नाता तोड़ लिया और इस्तीफा देकर न्यूज 11 ज्वाइन कर लिया। जिसकी जानकारी मुझे कल यानी 7 मार्च को मिली।
अब सवाल उठता है कि कोई लड़का या लड़की या महिला या पुरुष अगर पत्रकार हैं, तो वह न्यूज 18 छोड़कर न्यूज 11 ज्वाइन करेगा? उत्तर है – कभी नहीं। कारण कि यह प्रमोशन नहीं, एक तरह से डिमोशन है, पर अन्नी अमृता ने यह फैसला क्यों लिया? आखिर क्या वजह हुई कि ईटीवी बिहार से जुड़ी अन्नी अमृता, जो ईटीवी बिहार आज न्यूज 18 के नाम से जाना जाता है, उसे छोड़ने पर विवश हो गई।
आखिर न्यूज 18 वालों ने उसका स्थानान्तरण जमशेदपुर से रांची क्यों कर दिया? कहने को न्यूज 18 वाले यह भी कह सकते है कि वहां का ऑफिस ही बंद कर दिया गया, फिर भी जमशेदपुर जैसे शहर में एक रिपोर्टर तो वे रखेंगे ही, फिर अन्नी अमृता वहां फिट क्यों नहीं?जो लोग अन्नी अमृता को जानते हैं, वे यह भी जानते हैं कि वो समझौतावादी नहीं हैं, वह अपने आदर्शों का खून नहीं कर सकती, उसे कोई अपने पथ से डिगा नहीं सकता, हालांकि उसे अपने पथ से डिगाने के लिए बहुत लोगों ने दिमाग लगाया।
नाना प्रकार के कुचक्र रचे, पर सफलता नहीं मिल रही थी, लेकिन जैसे ही जमशेदपुर ऑफिस बंद करने की बात हुई, रांची से मुंबई तक बैठे और अन्नी अमृता से खार खाये लोगों की मुंह मांगी मुराद पूरी हो गई। सभी जानते थे, जैसे ही स्थानान्तरण का गाज गिरेगा, अन्नी अमृता नौकरी छोड़ने पर विवश हो जायेगी, लीजिये वहीं हुआ, अन्नी अमृता ने मेल से इस्तीफा दिया। रांची में बैठे लोगों ने उसका इस्तीफा स्वीकार किया और अन्नी जो कल तक न्यूज 18 से जुड़ी थी, आज न्यूज 11 की हो गई।
निःसंदेह यह एक महिला पत्रकार अन्नी अमृता का अपमान है, वह भी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन। अब समाज को देखिये, जिस समाज के लिए अन्नी अमृता ने इतना समय दिया। विपरीत परिस्थितियों में साथ निभाया, वह समाज भी मुंह बंद कर चुप रहा। जमशेदपुर में भी कई संस्थाओं ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस समारोह आयोजित किये, पर ऐसे लोगों ने उक्त संस्थान के मठाधीशों से यह नहीं पूछा कि आखिर अन्नी अमृता जैसी वरिष्ठ पत्रकार को न्यूज 18 छोड़ने को विवश करना, त्वरित इस्तीफा स्वीकृत करना, क्या अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन एक महिला पत्रकार का अपमान नहीं?
भाई, मैं तो पीतल के टूकड़े या रेशमी चादर या शॉल या कागज के टूकड़े पर लिखे काले या लाल अक्षरों को सम्मान नहीं मानता, सम्मान तो दिल से की जाती हैं और सम्मान कौन कर रहा हैं, उसकी हस्ती भी देखी जाती है कि आखिर उसमें कितने सद्गुणों का समावेश हैं, यहां तो चोर-उचक्के भी बहुत लोगों को पीतल और चादर हाथों में थमा देते हैं, उससे क्या हो जाता है?
मैं अन्नी अमृता दीदी को जानती हूं,कुछ समय के लिए ही सही पर उनके साथ बिताया हुआ समय काफी अच्छा और प्रेंन्नदायक रहा था।।और मैं तहे दिल से उनके और उनके फैसले का सम्मान करती हूं।