अपनी बात

इस हाल का जिम्मेवार खुद रघुवर दास ही है, दूसरा कोई नहीं, जो उन्होंने किया हैं तो भोगना भी उन्हें ही हैं

रघुवर दास एक बार फिर चर्चा में हैं, जो कल तक दूसरे का टिकट काटते थे, जो कल तक दूसरे का भविष्य बनाते थे, आज उन्हीं के भविष्य पर प्रश्नचिह्न है, क्योंकि जनता ने उन्हें जमशेदपुर सीट से क्या हराया? आज कोई उन्हें पुछ तक नहीं रहा और लीजिए हालात ऐसे हो गये कि पार्टी ने उन्हें राज्यसभा के टिकट देने से भी इनकार कर दिया। इस बार भाजपा ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया और नये-नये पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बने दीपक प्रकाश को हाड़ में हरदी लगा दिया, यानी राज्यसभा का टिकट देकर राज्यसभा तक पहुंचा दिया, हालांकि ये इस टिकट के कितने योग्य हैं, वो पूरा झारखण्ड जानता हैं, और थोड़े दिनों के बाद जब राज्यसभा में चर्चाएं होंगी तो पूरा देश इन्हें जान लेगा।

ऐसे भी हमारे देश में, राज्यसभा इसलिए नहीं बनाई गई कि वहां योग्य लोगों को लाया जाये, बल्कि इसलिए बनाई गई, ताकि अपने काम आये लोगों को बतौर गिफ्ट दिया जाय, ताकि वे जब तक जिंदा रहे सत्ता का परम सुख प्राप्त कर सकें तथा अपनी आनेवाली पीढ़ियों को इसका सुंदर लाभ प्राप्त करवा सकें, यहीं कारण है कि राज्यसभा में कभी वो कीर्तिमान नहीं बना, जो भारतीय संसदीय इतिहास के शुरुआती क्षणों में बने।

जो लोग आज का अखबार पढ़े होंगे, उन्हें कुछ-कुछ पता चल ही गया होगा, पर जो कुछ बचा हैं, उसे हम इस आर्टिकल के द्वारा बता देना चाहेंगे। सच्चाई यह है कि रघुवर दास का राजनीतिक कैरियर ही अब सदा के लिए समाप्त हो गया हैं, ये अब चाहेंगे कि फिर से झारखण्ड की राजनीति में ध्रुवतारे की तरह चमकें तो यह अब कभी नहीं होगा, यह ध्रुव अटल सत्य है. और इस ध्रुव अटल सत्य को प्रतिष्ठापित भी रघुवर दास ने खुद किया है।

आज से पांच साल पहले जब झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास बने तो उन्होंने सबसे पहला काम यह किया कि उन्होंने अपने आजू-बाजू मूर्खों तथा कनफूंकवों की जमात को बिठा लिया। जिनका काम था, रघुवर दास की वाह-वाह करना और उसके बदले स्वयं को बम-बम करना तथा स्वयं से जुड़े लोगों को भी बम-बम कराना और जो लोग रघुवर दास को सही रास्ते दिखाते, रघुवर दास उसे किनारे करने में ज्यादा समय नहीं लगाते, जिसका परिणाम यह हुआ कि जिस रघुवर दास ने अपने हाथों से विधानसभा, हाईकोर्ट, प्रेसक्लब बनाये, वही व्यक्ति आज एक राज्यसभा के टिकट के लायक तक नहीं रह पाया।

जरा देखिये रघुवर दास ने सत्ता मिलते ही, जनता पर कितने अत्याचार किये, दलितों-आदिवासियों पर झूठे मुकदमें करवा दिये, यहीं नहीं कितने युवाओं को झूठे केस में फंसवाकर उसके भविष्य से यह व्यक्ति खेल गया। कमाल हैं, इसके शासनकाल में विभिन्न थाना प्रभारियों ने तत्कालीन कनफूंकवों के कहने पर कई झूठे मामले विभिन्न थाने में दर्ज कर, उन ईमानवालों के अदालतों के चक्कर कटवा दिये, अब ऐसे में इनकी आह कहां जायेगी, शायद रघुवर को मालूम नहीं।

यहीं नहीं जनसंवाद केन्द्र के नाम पर, जमकर लूट मची। सच्चाई यही है कि यह जनसंवाद केन्द्र में किसी समस्या का हल हुआ ही नहीं, उलटे यहां काम करनेवाली लड़कियों पर जूल्म बढ़ गये, और जब इस जूल्म की आवाज प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंची तो उस जूल्म की आग को इनके कनफूंकवों ने सत्ता के मद में बेदर्दी से कुचलवा दिया, जिस दिन ऐसी घटना घटी थी, मैंने उसी दिन कह दिया था कि बेटियों की आह इस रघुवर दास को ले डूबेगी, आज देखिये नतीजा सामने हैं।

मुख्यमंत्री रहा रघुवर दास, विधानसभा के चुनाव में अपने ही नेता से बुरी तरह चुनाव हारा। यही नहीं आज उसके इर्द-गिर्द घुमनेवाले कनफूंकवे भी कही के नहीं रहे, तो इन्हें क्या पूछेंगे? ईश्वर सबको उसको किये की सजा दे रहा हैं, पर पता तो उसे चलता है, जिसे ज्ञान होता है, मूर्खों और कनफूंकवों को कब से इसका ज्ञान होने लगा।

यही नहीं जिस कार्यकर्ता और जनता को यह ठोकरों पर रखता था, आज वही ठोकर उसे पड़ रहे हैं, कल तक जिस आजसू को वह आंख दिखाता था, आज वो उसे मदद करने से कतरा रहा हैं, जो रघुवर दास कभी दो-दो सीटें राज्यसभा की भाजपा को झोली में थमा दी थी, आज एक राज्यसभा की टिकट के लिए, अपनी राजनीतिक पहचान बनाये रखने के लिए संघर्ष कर रहा हैं, ये हैं भगवान की मार, पर समझ में आये तब न। ये समझेंगे कैसे, वो कहावत है न, रस्सी जल गई पर बल नहीं गया।