जीतेंगे तो सिर्फ शिबू सोरेन और दीपक प्रकाश ही, तो फिर शहजादा अनवर को खड़ाकर कांग्रेस किसे धोखा दे रही है?
झारखण्ड की दो राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव होने जा रही हैं, कांग्रेस ने अपनी ओर से शहजादा अनवर को मैदान में उतारा हैं, उसे मालूम है कि वो कुछ भी कर लें, जीतना तो भाजपा और झामुमो के प्रत्याशी को ही है, और उसकी किस्मत में हार के सिवा कुछ है ही नहीं, तो फिर कांग्रेस ने शहजादा अनवर को चुनावी मैदान में क्यों उतारा?
चूंकि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने रुठे अल्पसंख्यकों यानी मुस्लिमों से वायदे किये थे कि लोकसभा चुनाव में तो नहीं, पर राज्यसभा चुनाव में चाहेंगे कि एक मुस्लिम झारखण्ड से राज्यसभा में जाये, अब चूंकि स्थिति ऐसी हो गई है कि कांग्रेस के पास इतने विधायक नहीं कि वह अपने प्रत्याशी को राज्यसभा में भेज दें, इसलिए अब वो करें तो क्या करें?
अगर वो राज्यसभा में मुस्लिम कैंडिडेट नहीं देती हैं तो मुस्लिमों को लगेगा कि कांग्रेस ने उसे धोखा दे दिया, इसी दोष से स्वयं को मुक्त करने के लिए उसने ऐसे डमी कैंडिडेट को खड़ा कर दिया कि न तो वो कभी जीत सकता है और न ही उसकी जीत के लिए लोग जोर ही लगा सकते हैं, ऐसे में जनता से किया गया वायदा भी पूरा और कांग्रेस दोषमुक्त भी हो गई, यह कहकर कि हमारे पास उतने वोट ही नहीं, तो हम अपने लोगों को जीतायेंगे कैसे? फिर सवाल उठता है कि जब इतना ज्ञान है ही तो फिर अपना उम्मीदवार खड़ा क्यों किया?
हालांकि शहजादा अनवर को खड़ा कर दिये जाने से, कांग्रेसी विधायक इरफान अंसारी के तेवर गर्म है, जिसे देख झारखण्ड के कांग्रेस प्रभारी आरपीएन सिंह ने उन्हें चेतावनी भी दे डाली है, पर उनकी चेतावनी का असर इरफान या उनके पिता फुरकान अंसारी पर होगा, ऐसा देखने को नहीं मिलता। फुरकान अंसारी ने तो विद्रोही24.कॉम से कुछ दिन पहले बातचीत में कहा था कि वे सभी पर विश्वास कर सकते हैं पर कांग्रेसियों पर नहीं। वे तो आरपीएन सिंह पर गंभीर आरोप भी लगाते हैं।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो कांग्रेस भले ही शहजादा अनवर को खड़ा कर दें, पर सच्चाई यहीं है कि जनता को वो मूर्ख बनाने के लिए यह ड्रामा कर रही है, जो लोग राज्यसभा की गणित जानते हैं, वे यह अच्छी तरह जानते है कि शिबू सोरेन और दीपक प्रकाश ही चुनाव जीतेंगे, ऐसे में शहजादा अनवर को खड़ा करना, अपना चेहरा बचाने का एक असफल प्रयास ही है। अगर कांग्रेस फुरकान अंसारी को खड़ा करती, तो एक माहौल बनता, पर शहजादा अनवर को खड़ा कर देने से रहा सहा खेल भी बिगड़ गया।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो कांग्रेस अगर दूसरी सीट जीतने को रहती तो फिर शहजादा अनवर को भी टिकट नहीं मिलती, आरपीएन सिंह खुद ही दावेदार हो जाते, और उन्हें टिकट भी मिल जाती, पर कांग्रेस के पास पर्याप्त विधायकों के नहीं होने की दशा ने आरपीएन सिंह की महत्वाकांक्षा पर भी विराम लगा दिया, ऐसे में राज्यसभा चुनाव का परिणाम आनेवाले दिनों में कांग्रेस के लिए ठीक नहीं रहेगा।
अल्पसंख्यकों का विश्वास इससे डिगेगा और ये वोट झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की ओर खिसकेगा, अगर हेमन्त सोरेन ने बहुत ही चतुराई से राजनीतिक परिपक्वता दिखा दी तो हो सकता है कि आनेवाले समय में जब कभी विधानसभा चुनाव हो तो वो अकेले पूर्ण बहुमत को भी प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि अब उनके पास पूरा मैदान सामने हैं।