ये विदेशी मुस्लिम बिहार और झारखण्ड में कर क्या रहे हैं? आखिर यहां की पुलिस कहां सोई हैं?
कल बिहार और आज झारखण्ड में जिस प्रकार से बड़ी संख्या में विदेशी मुस्लिम पकड़े गये हैं? उससे इन दोनों राज्यों में रह रहे लोगों के बीच एक बहुत बड़े संदेह ने जन्म ले लिया हैं, राज्य सरकार को चाहिए कि जितना जल्द हो इन संदेहों को खत्म करें, नहीं तो इसके उलटे परिणाम भी देखने को मिल सकते हैं।
सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में किर्गिस्तान, कजाकिस्तान व चीन से आये ये लोग यहां कर क्या रहे हैं? वे कौन लोग हैं, जो इनकी यहां मदद कर रहे हैं और उन्हें अपने ठिकानों पर जगह दे रहे हैं? आखिर इनका मकसद क्या है? ये इतने दिनों से यहां रह रहे हैं, तो पुलिस को इस बात की जानकारी क्यों नहीं? ये अब तक किन-किन जगहों पर गये? किससे-किससे मिले? क्या-क्या किया?
केन्द्र/राज्य सरकार को तो इस बात की जानकारी रहनी चाहिए, या बिहार और झारखण्ड को एक तरह से धर्मशाला ही बना दिया कि जो भी आये, जहां से आये, जितना दिन मन करें रह जाये और फिर जो कुछ उसके मन में हैं करके, यहां से घिसक जाये। ज्ञातव्य है कि कल बिहार की राजधानी पटना तो आज झारखण्ड के तमाड़ के रड़गांव से बड़ी संख्या में ये विदेशी मुस्लिम पकड़े गये हैं?
कहने को तो ये कह रहे हैं कि ये धर्म-प्रचार करने को आये हैं? तो फिर इनके यहां आने-रहने की सूचना स्थानीय पुलिस को क्यों नहीं थी? हांलाकि सभी के पास वीजा-पासपोर्ट हैं, पर वीजा-पासपोर्ट के आधार पर इनके मन के अंदर चल रही उथल-पुथल को नहीं समझा जा सकता, वह भी तब जब पूरा देश कोरोनावायरस के खतरों से जूझ रहा हैं और इस देश में जो कोरोनावायरस आया है, वह इन विदेशियों की ही कृपा है।
हालांकि इन विदेशियों को स्थानीय पुलिस प्रशासन ने क्वारनटाइन के लिए बनाये गये स्थल पर भेज दिया है? पर सवाल आज भी वहीं खड़ा है? कि क्या भारत सचमुच विदेशियों के लिए सैरगाह बन गया, जो जितना दिन करेगा, यहां रहेगा, और अपने मन का काम करके चला जायेगा तो फिर भारत की सरक्षा-व्यवस्था का क्या हाल होगा?
ये तो बधाई दीजिये, बिहार/झारखण्ड की जागरुक जनता को, जिन्हें इस बात की जैसे ही जानकारी हुई, स्थानीय पुलिस को सहारा लिया, तब जाकर पुलिस को जानकारी हुई और फिर स्थानीय पुलिस ने उचित निर्णय लिया, लेकिन इन सब के क्रम में ये जरुर पता चल गया कि बिहार और झारखण्ड की पुलिस सुरक्षा मानकों पर कहां खड़ी हैं?