ए पत्रकार साहेब, इ जो कोरोना है न, ब्रिटेन के PM बोरिस जानसन और वहां के प्रिंस चार्ल्स तक को नहीं छोड़ा है
मत भूलिये कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और हेल्थ मिनिस्टर भी कोरोना पॉजिटिव मिले हैं, यह भी मत भूलिये कि 25 मार्च को प्रिंस चार्ल्स भी कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं और आप झारखण्ड के पत्रकार इन तीनों के आस-पास कहीं भी किसी रुप में भी नहीं भटक सकते, आप कोरोना की भयावहता को इसी से समझिये कि जब ये विश्व के टॉप की हस्तियां कोरोना से प्रभावित हो सकती हैं, तो ये कोरोना आप जैसे महानुभावों पर कैसे दया कर सकती हैं?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बार-बार लॉकडाउन की बात तथा सोशल डिस्टेन्स की बात कर रहे हैं, पर मैं देख रहा हूं कि आप सभी लॉकडाउन और सोशल डिस्टेन्स को मजाक बनाकर रख दे रहे हैं। ये मैं किसी और के लिए नहीं लिख रहा हूं, झारखण्ड के पत्रकारों को आगाह कर रहा हूं, उन्हें बता रहा हूं कि वे हालात को समझे, हालात को मजाक के रुप में न लें।
झारखण्ड के पत्रकारों को यह नहीं भूलना चाहिए कि 20 मार्च को मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के प्रेस कांफ्रेस में शामिल एक पत्रकार की बेटी भी कोरोना पॉजिटिव पाई गई थी, जिसको लेकर हड़कम्प मच गया था। उसकी बेटी के चलते, उक्त पत्रकार को भी कोरोना का संक्रमण हो गया था, जो उक्त प्रेस कांफ्रेस में पहुंचा था। ऐसे में कौन, कब, कहां कोरोना के संक्रमण का शिकार हो जायेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता।
खुशी इस बात की है कि रांची से प्रकाशित व संचालित कई अखबारें, न्यूज चैनल व न्यूज पोर्टल के प्रबंधकों ने अपने यहां कार्य कर रहे कई लोगों को घरों से पत्रकारिता करने की छूट दे रखी हैं, जिसकी वजह से अखबार के पृष्ठों की संख्या भी घट गई हैं, तथा उन सारे पन्नों में सिर्फ और सिर्फ कोरोना की खबरें ही रह गये हैं, इसके बावजूद भी अगर आप कोरोना को मजाक के रुप में लेते हैं, तो इस पर कहा या किया ही क्या जा सकता है।
मैं देख रहा हूं कि कई पत्रकार, नाना प्रकार की सेल्फियां ले रहे हैं, फोटो खींचवा रहे हैं, खुद के द्वारा की जा रही विभिन्न प्रकार की सेवाओं को सोशल साइट पर खुद ही उपलब्ध करवा रहे हैं और लोग उनकी वाह-वाही भी कर रहे हैं, ये हालात झारखण्ड के सभी प्रमुख शहरों के पत्रकारों की हैं, जहां से अखबार प्रकाशित हो रही हैं या चैनलों के प्रमुख काम कर रहे हैं, गर्व से वे यह भी लिख रहे हैं कि “बाहर निकलनेवालों से अपील, घर से बाहर मत निकलिये साहेब, हम आपको ही दुनिया दिखाने के लिए सड़क पर हैं, कृपया घर में ही रहिये, मत निकलिये…” और इसकी आड़ में ये कर क्या रहे हैं? खुद को दानवीर, खुद को हरिश्चन्द, खुद को कर्मवीर, खुद को अन्नदाता दिखाने में लगे हैं, यानी खुद कह रहे हैं कि आप घर में रहिये, हम आपको दुनिया दिखाने के लिए सड़कों पर हैं और कर रहे हैं वह काम, वह भी बिना इजाजत के, जो उन्हें नहीं करना चाहिए।
शायद वे समझ रहे हैं कि देश में बाढ़ या अकाल पड़ गया हैं कि लोगों को भोजन पहुंचाने में लग गये हैं, जबकि सच्चाई यह है कि विषाणुजनित यह संक्रमण किसी भी रुप में किसी को दबोच सकता हैं और फिर उसके बाद वह संक्रमण कब किसको पकड़ लें, ये दानवीरता या कर्मवीरता का प्रदर्शन करनेवालों को भी पता नहीं चलेगा।
हमारा विचार है कि जिसको जो काम हैं, उसी को वो साजता है। आप जहां रहते हैं, उस शहर में कई सामाजिक संस्था हैं, जो इस प्रकार के काम में ईमानदारी से लगे हैं, हो सके तो आप भोजन बांटने व कराने का काम उन्हीं को सौंप दें, अच्छा रहेगा उन तक वह सामग्रियां आप आराम से पहुंचा दें, जो आपके पास हैं, ताकि सबको उचित समय पर वो भोजन सामग्रियां मिल जायें, नहीं तो होगा ये कि एक ही के पास कई भोजन पैकेट मिलेंगे और कोई ऐसा भी होगा, जिसके पास भोजन के पैकेट का अभाव हो जायेगा या भोजन बर्बाद हो जायेगा।
अगर आपको मदद करना है तो आप उन सामाजिक/धार्मिक या सरकारी संगठनों तक अपनी बात पहुंचायें कि फलां जगह भोजन की आवश्यकता है, ताकि जो इस कार्य में लगे हैं, उन तक सुरक्षित तरीके से भोजन पहुंचा दें, क्योंकि आपके पास जो संसाधन हैं, वे भी कम खतरनाक नहीं हैं, वे भी विषाणु के संवाहक हैं।
कोशिश करिये कि आप सोशल साइट पर ज्ञान नहीं बांटे, ये ज्ञान चिकित्सकों के लिए छोड़ दें और ये जो सरकार की ओर से मीडिया पास, जिसे हम मंगलसूत्र कहते हैं, उसे धारण कर सुनसान सड़कों पर स्टाइल में खड़े होकर फोटोबाजी न करें, नहीं तो आपके इस स्टाइल को देखकर, कोई घर से बाहर आकर फोटोबाजी करने लगे, तो आपको कोई अधिकार भी नहीं होगा, यह कहने का कि वो घर से बाहर क्यों निकला? क्योंकि स्थानीय प्रशासन ने आपको समाचार संकलन करने के लिए पास जारी किये हैं, न कि समाज सेवा या सेल्फी लेने के लिए।
अगर इतना लिखने के बाद आपको समझ में नहीं आ रहा तो ऐसे समझिये, अगर डाक्टर भी अपना कार्य छोड़कर, लोगों को भोजन पैकेट बंटवाने पर ध्यान देने लगे तो क्या होगा? स्थानीय पुलिस प्रशासन वह लोगों की सुरक्षा और सरकारी योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने की सेवा छोड़कर, आपकी तरह सेल्फी लेने लगे तो क्या होगा? ये समझने की जरुरत हैं। आप सांसदों व विधायकों की तरह काम नहीं करें, जैसे सांसद/विधायक जनता के ही पैसे को, जिला प्रशासन के अधिकारियों को सौंप रहे हैं और दिखा रहे हैं कि वे अपने पैसे जन-सेवा में लगा रहे हैं, पर सच्चाई क्या हैं?
याद रखिये, आपको कुछ होगा तो कोई सरकार या जहां जिस संस्थान में काम कर रहे हैं, वो सिर्फ क्ववेरन्टाइन छोड़कर, आपकी जान बचाने के लिए नहीं आयेगा, वो तो सीधे यह भी कह देगा कि वो तो हमारे यहां काम ही नहीं करते थे, हमारे पास कई अखबारों के ऐसी हरकतों से जुड़ी घटनाएं आज भी याद हैं, जहां का कैमरामैन अपने अखबार के लिए जी-जान लगा दिया और जब वह मरा तो वो अखबार, उसके साथ खड़ा तक नहीं हुआ, अपने अखबार में समाचार देना तो बड़ी बात हैं। अरे मैंने इसी रांची में देखा कि एक राष्ट्रीय अखबार के संपादक का पिता मरा, और एक अखबार ने जब इस संबंध में समाचार छापा तो वह उक्त राष्ट्रीय अखबार के संपादक का नाम तक नहीं दिया, एक पत्रकार लिखकर काम चलाया, इससे बड़े शर्म की बात और क्या हो सकती है?
हमें तो याद हैं कि एक राष्ट्रीय अखबार में एक पत्रकार काम करता था। गुजरात में भूकम्प की घटना घटी। उक्त अखबार ने एक राहत कोष की स्थापना की। उक्त राष्ट्रीय अखबार में काम करनेवाले पत्रकार ने अपने वेतन का पच्चीस प्रतिशत उस अखबार के राहत कोष में दे दिया, पर उक्त अखबार ने जब उसका नाम प्रकाशित किया तो उसमें उक्त पत्रकार का नाम तो था, वह राशि भी अंकित थी, पर वह पत्रकार किस अखबार से जुड़ा हैं, उसका नाम नहीं था। मतलब समझिये, अगर इसके बाद भी नहीं समझते हैं, तो भगवान से यहीं प्रार्थना है कि आप पर वो दया करें।