अपनी बात

रांची प्रेस क्लब के लोगों ने खरखाई में लॉकडाउन का, घर में रहे, सुरक्षित रहे अभियान की धज्जियां उड़ाई

ये भारत देश है। जहां आलीशान महल व कार मैंटेंन करनेवाले लोगों को मुफ्त की चीजों को लेने के लिए लाइन लगाते हुए हमने देखा है। वह भी तब जब कई अखबारवाले एक महीने कुपन निकालकर, उन कुपनों को अपने केन्द्र पर एक अखबारी पृष्ठ पर सटवाकर मंगवाते हैं, तब ऐसे लोगों को इन केन्द्रों पर एक प्लास्टिक की कटोरी लेने के लिए लाइन लगाते हुए हमने देखा हैं, ये कोई नई बात नहीं हैं।

हमारे देश में आज भी ऐसे लोग हैं, जिनके बेटे-बेटियां केन्द्रीय/राजकीय सेवाओं में हैं, पर ऐसे बेटे-बेटियों ने अपने मां-पिता को अलग से लाल कार्ड तक बनवाकर रखा हैं, जन-धन योजना का पासबुक तक खुलवा कर रखा हैं, बीपीएल कार्ड तक बनवाकर रखी हैं, और इसमें इनका सहयोग उन वार्ड पार्षदों ने भी दे रखा हैं, जिनके वोटों से वे जीतते हैं।

जिस देश में ऐसी सोचवालों की बाढ़ हो, वहां प्राकृतिक आपदाएं आये और उसका महोत्सव न मनें, ये भला कैसे हो सकता है? लीजिये, कोरोना भारत में पदार्पण कर चुका है। किसी के लिए ये कोरोना जानलेवा साबित हो रहा हैं तो किसी के लिए यह महोत्सव से कम नहीं। जरा देखिये न, बिहार व यूपी छोड़कर, दिल्ली व अन्य राज्यों में रहनेवालों का समूह, जो इन राज्यों में ठेला चलानेवाले, खोमचा ढोनेवाले, कुली का काम करनेवाले, राजमिस्त्री का काम करनेवाले, कचरा ढोनेवाले, भीख तक मांगनेवाले हैं, ये दिल्ली छोड़कर अपने बिहार व यूपी के गांव जाने को बेताब हैं।

आश्चर्य है कि इन्हें किसी ने दिल्ली छोड़ने को नहीं कहा, पर पता नहीं किस अफवाह में आकर इन दिनों दिल्ली के विभिन्न सड़कों पर इनका जन-सैलाब उमड़ पड़ा हैं। ये वे लोग हैं, जिन्हें अपने यहां काम भी मिले, तो ये वहां काम करना नहीं चाहते, क्योंकि अपने यहां काम करने से उन्हें लगता है कि इज्जत चली जायेगी, इसलिए वे जिल्लत की जिंदगी दिल्ली में स्वीकार करेंगे, पर अपने यहां काम नहीं करेंगे। इसका कई प्रमाण भी मेरे पास मौजूद हैं।

कमाल यह भी है कि इन्हीं लोगों के कारण लोकसभा में भाजपा और दिल्ली की विधानसभा में आम आदमी पार्टी ने परचम लहराया, पर आम आदमी पार्टी सरकार को देखिये, इनके बेशर्म नेताओं को देखिये, कैसे इन भीड़ों पर अट्टहास कर रहे हैं, ट्विट कर रहे हैं, और ये अट्टहास करेंगे, क्यों नहीं, क्योंकि इन्होंने कभी इन्हें अपना समझा ही नहीं, इनके लिए तो ये वोट बैंक छोड़ दुसरा कुछ है ही नहीं।

सच्चाई यह भी हैं कि कोरोना के डर ने दिल्ली से बाहर जानेवालों के अंदर इतना कृत्रिम भय पैदा कर दिया है कि ये चाहकर भी दिल्ली में नहीं रुक सकते, और इसका सारा श्रेय जाता है, उन मीडियाकर्मियों को, जो कोरोना की सही खबर न पहुंचाकर, केवल दहशत फैला रहे हैं।इन मीडियाकर्मियों ने केन्द्र व राज्य सरकारों तथा उन संगठनों के नाक में भी दम कर दिया हैं, जो मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए सड़कों पर उतर गये हैं।

ये तो देश की बात है, अब थोड़ा रांची का भी रुख करें। जरा देखिये, रांची में क्या हो रहा है? रांची में भी कोरोना उत्सव का रुप ले लिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन सभी से कह रहे हैं कि घर में रहे, बाहर नहीं निकले, आपकी सेवा के लिए सरकार लगी हुई है।

हेमन्त सरकार ने तो खाने-पीने, दवा, गैस आदि की घर तक डिलीवरी के लिए अखबारों व सोशल साइट पर कान्ट्रेक्ट/व्हाट्सएप नंबर तक जारी कर दिये हैं। इसके बावजूद कुछ लोग या कुछ ऐसी संस्थाएं हैं, जो केन्द्र सरकार व राज्य सरकार के नाकों में दम कर रखी हैं, लगता है कि इन लोगों ने संकल्प कर लिया हैं कि वे केन्द्र व राज्य के इस अभियान की, कि लोग घर पर रहे, उसकी हवा निकाल कर रहेंगे।

जरा देखिये, रांची प्रेस क्लब को, आम तौर पर एक सामान्य आदमी भी कहेगा कि इस क्लब में बुद्धिजीवियों का समूह होगा, पर ये समूह कर क्या रहा हैं, ये अनाज की बोरियां बांट रहा हैं, अब सवाल उठता है कि अनाज की बोरियां जब आप प्रेस क्लब में बांटोंगे, तो इसका मतलब है कि इन बोरियों को लेने के लिए लोग घर से निकलेंगे, तो फिर घर में रहने का, कोरोना से लड़ने का अभियान का भट्ठा बैठेगा या नहीं।

ऐसे में तो जिनको अनाज की जरुरत हैं वे भी और जिनको अनाज की जरुरत नहीं है वे भी, यानी जमाखोरी करके, फिर उसे दुकान तक बेचनेवाले अपना कमाल दिखायेंगे या नहीं।ऐसे भी जिस दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि देश में लॉकडाउन होगा, उसके बाद से रांची के सारे गरीबों के घर से अचानक अनाज गायब हो गई थी क्या?

क्या लॉकडाउन की घोषणा के पहले किसी के घर में अनाज नहीं था? अरे भाई, आपको तो चाहिए था कि आप राज्य सरकार, जिला प्रशासन व पुलिस प्रशासन के सहयोग से ये सुनिश्चित कराते कि गांव, मुहल्ले, टोले आदि की जो दुकाने हैं, वो खुली रहे, वहां खाने-पीने की सामान की कालाबाजारी न हो, लोगों को सामान उचित दाम पर मिले, पर आपने क्या कर दिया? आपको भी नेता बनने की सुर चढ़ गई और आपने लोगों को घर से बुलवाकर, कोरोना को बढ़ाने में दिमाग लगा दिया, सोशल डिस्टेन्स की हवा निकाल दी और चल दिये अनाज की बोरियां बांटने।

जैसे लगता हो कि आप दानवीर कर्ण के खानदान से आते हो, जबकि आपके पास बिजली बिल देने के पैसे नहीं हैं, लोग बताते हैं कि आपके यहां राज्य सरकार का बिजली बिल बकाया करीब दस लाख रुपये हैं, आप इसका ब्याज भी, वो भी लगभग पचास हजार रुपये प्रतिमाह जमा कर रहे हैं, यानी अपने उपर ढो रहे बिजली बिल के बकाये के भुगतान पर आपका ध्यान नहीं हैं, लेकिन दानवीर कर्ण बनने में ज्यादा दिमाग लगा रहे हैं। आपके ही भाई-बंधु लाइब्रेरी के लिए पिछले दो सालों से आपको गुहार लगा रहे हैं, पर आपका उस ओर ध्यान ही नहीं हैं, जो आपकी प्राथमिकता होनी चाहिए।

आप होली में खुब खायेंगे-पीयेंगे-झूमेंगे, लेकिन पत्रकारों को बौद्धिक खुराक उपलब्ध कराने के लिए लाइब्रेरी नहीं देंगे। हद हो गई, आपके लोगों के पास हर साल 2100 रुपये सदस्यता शुल्क देने के पैसे नहीं हैं, आप उनके लिए 250 रुपये वार्षिक सदस्यता शुल्क कर देते हैं। आपका यह काम बताता है कि पत्रकारों के पास आर्थिक अभाव हमेशा से रहा हैं, तो फिर अचानक दानवीर कर्ण कैसे हो गये? आप किनके पैसों से ये सब कर रहे हैं? कौन लोग हैं वे? आप उनका नाम क्यों नहीं उजागर कर रहे हैं, ताकि लोग जाने कि आपको इतना सपोर्ट करनेवाले महान दानवीर रांची में कहां से आ गये और उन्हें रांची प्रेस क्लब क्या सुविधाएं मुहैया कराने का आश्वासन दिया है।

कमाल है, आप तो पॉलिटिशियन बनते जा रहे हैं, जैसे पॉलिटिशयन करते क्या है? वे जनता को अधिकार नहीं देते, उन्हें उचित चीजें उपलब्ध नहीं कराते, ताकि वे सशक्त हो, वे ताउम्र उन्हें भीखमंगा बनाये रखना चाहते हैं, ठीक आपने भी वहीं किया है, आप ज्ञान नहीं बांटेंगे, पर भोजन उपलब्ध करायेंगे, वह भी अपने पैसे से नहीं, बल्कि दुसरों से भीख मांगकर, वह भी रांची प्रेस क्लब के नाम पर, भाई ये सब करने के लिए दुसरे लोग हैं ही, आप क्यों ऐसा कर रहे हैं?

प्लीज, ऐसा मत करिये, भरपूर अनाज है देश में, लॉकडाउन के पहले भी लोगों के पास अनाज था, अनाज रहेगा, केन्द्र व राज्य सरकार इसके लिए दिमाग लगा रही है, कृपा कर आप अपना दिमाग, अपने पास रखें, उसे आप अपने घर के आलमारी में बंद करके सोने का ताला लगवा दिजिये। हां, एक बात और, इस आर्टिकल में उपर में जो फोटो का उपयोग हुआ है, उस फोटो को ध्यान से देखिये, अनाज की बोरी लेनेवाली एक महिला और उसे देने के लिए फोटो खिंचवाने के लिए खड़े सात लोग साफ बता रहे हैं कि हमारे यहां कोरोना उत्सव शुरु हो चुका हैं, सभी प्रसन्न होकर, इसका इन्ज्वाय कर रहे हैं, जो शर्मनाक है।

One thought on “रांची प्रेस क्लब के लोगों ने खरखाई में लॉकडाउन का, घर में रहे, सुरक्षित रहे अभियान की धज्जियां उड़ाई

  • राजेश कृष्ण

    👀एक बोरी फ़ोटो पर सात सात साथ …#आत्मघातक है ये,
    #Lockedown, #लोकतंत्र. #प्रेस #विवेक
    Kind attn
    . #Pm #cm #dc #sdm #ranchi
    Lock it now or u never.
    Win
    जल्द #कॅरोना

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