आप हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते, प्रशासन हमारी मुट्ठी में हैं, आपको किताब तभी मिलेगी, जब आप स्टेशनरी भी लेंगे
आप कुछ भी रहे, आपका कुछ भी रहना, हमारे उपर कोई असर नहीं डालता, क्योंकि हमारे खानदान में आपसे भी बड़ा व्यक्ति उच्च पदाधिकारी रह चुका है, उसके एक इशारे पर हमें सारी फैसिलिटी उपलब्ध हो जाती है, जो आपको किसी जिंदगी में नहीं मिलेगी। अब देखिये न, इस कोरोना के हाहाकार में भी जहां किसी को गाड़ी का पास नहीं मिलता, हमें तो एक गाड़ी का पास भी मिल गया, जिस गाड़ी से हम डोर-टू-डोर बच्चों की किताबें उनके घर तक पहुंचा रहे हैं, जिसका अलग से हम सुविधा शुल्क भी ले रहे हैं, आपको भी सुविधा शुल्क देना होगा, यानी किताब तभी मिलेगा, जब आप हमारे यहां से स्टेशनरी के सामान भी लेंगे, समझे।
हां एक बात और सुन लीजिये, मैं फिर कह रहा हूं, दिमाग मत लगाइये, आपसे ज्यादा लोग दिमाग लगाये और उनकी दिमाग की बत्ती सदा के लिए बुझ गई, क्योंकि यहां के सारे के सारे अच्छे स्कूलों के बच्चों की किताबें हम ही सप्लाई करते हैं, ऐसे में आपके बच्चे का भविष्य भी हमारे हाथों में हैं। क्या समझे, साल में एक बार किताब लीजियेगा,और हमारा आदेश का पालन नहीं करियेगा, ये कैसे संभव है?
अब आप कहेंगे कि ये सब लिखने की आवश्यकता क्यों पड़ गई, वो इसलिए पड़ गई कि रांची में जहां भी हाई-फाई स्कूल हैं, जिनके बच्चे आइसीएसई पैटर्न से शिक्षा प्राप्त करते हैं, वे अपनी स्कूली किताब के लिए रोस्पा टावर स्थित एक बुक सेन्टर से सम्पर्क करते हैं।फिलहाल चूंकि कोरोना को लेकर सारी दुकानें बंद है, तो ये भी बंद हैं, लेकिन जो यहां से किताब बेचते हैं, वे अब हिनू से किताबों को विद् स्टेशनरी घर तक पहुंचा रहे हैं, वह भी तब, जब उन परिवारों को स्टेशनरी लेने के लिए बाध्य किया जा रहा हैं।
ऐसे में कुछ लोग जिन्हें पैसे की कोई कमी नहीं, जो दो नंबर के काम को भी प्रेम से स्वीकार करते हैं, वे तो आराम से उनके आगे झूक कर उनकी जय-जयकर, किताबे अपने घर प्राप्त कर रहे हैं, पर जो ईमानदार हैं, जिन्होंने कभी बेईमानी के कामों को आश्रय नहीं दिया, वे दबी जुबां से इसका विरोध कर रहे हैं, पर उनके विरोध का स्तर उस प्रकार का नहीं है, जिसका प्रभाव इस किताब के धंधे में लगे लोगों पर पड़ें, ज्यादातर लोग इसलिए डरे हुए है कि कही ऐसा नहीं कि विद्यालय उनके बच्चों को हिट-लिस्ट में डाल दें और उनके बच्चों के भविष्य को प्रभावित कर दें।
आम तौर पर विद्यालय किसी भी बच्चों को स्टेशनरी लेने का दबाव नहीं डालता, बच्चों को इतनी सूचना अवश्य उपलब्ध करा देता है कि उनका किताब रोस्पा टावर में स्थित एक खास दुकान में मिलेगा, लेकिन इस कोरोना महामारी में भी दया की जगह, अपने कारोबार को ही प्रमुखता देनेवाले, तथा लोगों से स्टेशनरी के नाम पर मनमाना रकम वसूलनेवालों का दिल नहीं पसीज रहा, आश्चर्य है कि जिला प्रशासन भी ऐसे लोगों को दिल से मदद कर रहा है, सूत्र बता रहे है कि सत्ता व विपक्ष में बैठे कई नेताओं के खानदानों को उक्त जगह से बैठे-बिठाए वो सारी किताबें बिना किसी इक्स्ट्रा पैसे दिये उपलब्ध हो चुके हैं, लेकिन सामान्य जनता के लिए तो स्थिति बद से बदतर हैं।
अब सवाल उठता है कि जिला प्रशासन बताए कि किसके कहने पर, 1.डोर-टू-डोर किताबे उपलब्ध कराने के लिए गाड़ी का पास निर्गत कर दिया गया? 2. जब सारे स्कूल ऑनलाइन क्लास ले रहे हैं, तो उसमें स्टेशनरी की इतनी जरुरत कैसे और क्यों? 3. क्या जिला प्रशासन का यह कर्तव्य नहीं कि ऐसे लोगों पर कार्रवाई करें, जो इस कोरोना में भी अपने बिजनेस को बेहतर बनाने के लिए पास लेने के लिए अपनी पद-प्रतिष्ठा का दुरुपयोग करते हैं? 4. जब किताब की बिजनेस चलाने के लिए गाड़ी का पास मिल सकता हैं, तो फिर और बिजनेस के लिए 20 अप्रैल की आवश्यकता क्यों? 5. आखिर कौन वो स्कूल हैं, जिसने ऐसे लोगों को बच्चों के कान्टेक्ट नंबर तक उपलब्ध करा दिये, कि वे किताबें जल्द ले लें, और स्टेशनरी भी लें. जबकि ऑनलाइन चल रही पढ़ाई में बच्चे पुरानी किताबों से भी काम चला रहे हैं?
लूट लो लूट लो..
तुम भी लूटोगे..