कोटा व देश के अन्य राज्यों में फंसे झारखण्डियों को वापस घर बुलाने को लेकर कांग्रेस व भाजपा आमने-सामने
खुशी की बात है, कि देश में लॉकडाउन के बाद, अन्य राज्यों में फंसे विद्यार्थियों, युवाओं तथा मजदूरों को लेकर राज्य के राजनीतिक दल इन दिनों मुखर हुए हैं। कोई इसको लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना साध रहा हैं तो कोई इसको लेकर राज्य के मुख्यमंत्री से गुहार लगा रहा हैं, पर मुद्दा फिलहाल यही है। कल मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने सोशल साइट पर प्रधानमंत्री के समक्ष इसी प्रकार का सवाल खड़ा कर लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया था, जिसका परिणाम है कि कांग्रेस और भाजपा में इसको लेकर तीखी नोक-झोक शुरु हो गई है।
कांग्रेस की ओर से इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस के प्रवक्ता आलोक कुमार दूबे ने मोर्चा संभाला हैं, तो दूसरी ओर भाजपा की ओर से राज्य के विरोधी दल के नेता की मांग कर रहे बाबू लाल मरांडी शामिल है, बाबू लाल मरांडी ने फिर एक बार राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को चिट्ठी लिखी है।
झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता आलोक कुमार दूबे ने केंद्र सरकार से मांग की है कि कोरोना वायरस को लेकर देशभर में अचानक लॉकडाउन करने के फैसले के कारण विभिन्न हिस्सों में पढ़ने और परीक्षा की तैयारी करने को गये बच्चों को वापस लाने के लिए ठोस पहल की जाए।
आलोक कुमार दूबे ने कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में झारखंड का प्रतिनिधित्व कर रहे मंत्री और अन्य भाजपा नेताओं को भी इस संबंध में आवाज उठानी चाहिए, क्योंकि वे भी खुद एक पिता है और बच्चों की परेशानी को आसानी से समझ सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह वक्त राजनीति का नहीं है और न ही कांग्रेस पार्टी लोगों की मुश्किलों को हल करने के मसले को लेकर कोई श्रेय लेना चाहती है, इसलिए प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार से उम्मीद है कि वे कांग्रेस नेतृत्व के सुझाव को आलोचना के रूप में न लेते हुए समस्या के समाधान को लेकर आवश्यक सार्थक पहल करेंगे।
प्रदेश प्रवक्ता ने कहा कि जिस तरह से मध्य प्रदेश में भाजपा नेतृत्व वाली सरकार गठन को लेकर दस दिनों तक लॉकडाउन टाला गया, उसी तरह से यदि दूसरे राज्यों में पढ़ने वाले बच्चों को वापस अपने घर लौटने का दो-तीन का वक्त भी मिल जाता, तो आज स्थिति इतनी चिंताजनक नहीं होती। उन्होंने कहा कि अपने बच्चों को मुश्किलों में फंसे देखकर उनके अभिभावक धैयै खो रहे है, इसलिए केंद्र सरकार को इस संबंध में तुरंत निर्णय लेना चाहिए।
पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी द्वारा बाहर में फंसे प्रवासी श्रमिकों- छात्र-छात्राओं और इलाज कराने गये लोगों को वापस लाने की दिशा में मुख्यमंत्री से पहल करने को लिखे गये पत्र को प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता ने समाचारों की सुर्खियों में बने रहने के लिए सिर्फ राजनीतिक हथकंडा करार दिया। उन्होंने कहा कि भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़कर धनवार से जीतने वाले बाबूलाल मरांडी को यदि जनता की इतनी ही चिंता रहती, तो यह पत्र मुख्यमंत्री के बजाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा और मुख्तार अब्बास नकवी को पत्र लिखकर मदद की अपील करते थे।
उन्होंने कहा कि चूंकि यह अंतररार्ज्यीय विषय से जुड़ा मसला है, इसलिए केंद्र सरकार के गाइडलाइन का अनुपालन आवश्यक है। प्रदेश प्रवक्ता ने यह भी कहा कि जिस तरह से भाजपा के दो सांसद दिल्ली से झारखंड आ सकते है, उसी तरह से केंद्र सरकार झारखंड ही नहीं,बल्कि देशभर के विभिन्न राज्यों में फंसे लोगों को उनके पैतृक राज्य में पहुंचाने के काम में मदद करें।
और अब बात भाजपा नेता बाबू लाल मरांडी की, आज मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को लिखे पत्र में उन्होंने कहा है कि “आप अवगत हैं कि वैश्विक महामारी कोरोना के कारण देशव्यापी लाॅकडाउन लागू है। इसकी वजह से लाखों की संख्या में झारखंड प्रदेश के लोग देश के विभिन्न हिस्सों में बाहर फंसे हुए हैं। इस फेहरिस्त में राजस्थान प्रदेश के कोटा सहित देश के अन्य जगहों पर अध्ययनरत छात्र-छात्राओं की भी संख्या हजारों में है। लाॅकडाउन के लंबा खींचने की वजह से इनकी परेशानी काफी बढ़ती जा रही है।
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री ने राजस्थान के मुख्यमंत्री से बात कर कोटा में अध्ययनरत अपने राज्य के छात्र-छात्राओं को वापस ले आने का पुण्य काम किया है। एक ही स्थान पर पठन-पाठन कर रहे बच्चों में से दूसरे राज्य के बच्चों को इस संकट की घड़ी में अपने गृह राज्य वापस जाता देख वहां अध्ययनरत झारखंड के बच्चों और यहां बच्चों की चिंता कर रहे इनके परिजनों के मनोभाव को आसानी से समझा जा सकता है।
हमारा आपसे विनम्र अपील होगा कि आप भी अपनी तरफ से आवश्यक पहल कर झारखंड के बच्चों को सिर्फ कोटा से ही नहीं, बल्कि अन्य राज्यों में भी लाॅकडाउन के कारण फंसे हुए छात्र-छात्राओं को भी अविलम्ब वापस लाने की दिशा में अविलंब व त्वरित पहल करें। जरूरत हो तो यहां से बड़ी गाडियों के साथ जिम्मेवार अधिकारियों को भी वहां भेजें, जो उन बच्चों को लाॅकडाउन का पालन सुनिश्चित कराते हुए सुरक्षित तरीके से ले आयें।
बच्चों को लाने में कहीं भी तनिक परेशानी इसलिए नहीं होगी कि अन्य राज्यों के बच्चें सहजता से वहां से अपने राज्य वापस लाए जा रहे हैं और वहां की सरकार ने भी कहा है कि जो राज्य चाहें अपने बच्चों को वापस ले जा सकते हैं। ऐसी परिस्थिति में अपने राज्य की यह जिम्मेवारी बनती है कि उन बच्चों को कैसे और कितनी जल्दी ले आया जाय।
छात्र-छात्राओं के अलावा एक बड़ी संख्या उन लोगों की भी है जो वैल्लोर, मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद आदि जगहों पर इलाज के लिए गये थे और लाॅकडाउन के कारण वे वहीं फंस चुके हैं। इनमें से कितनों की हालत गंभीर रूप से नाजुक होगी। आपसे से यह भी आग्रह होगा कि इनकी भी सुध लेते हुए इन्हें झारखंड वापस बुलाने की दिशा में पहल प्रारंभ कर देनी चाहिए।
साथ ही राज्य से बाहर फंसे लाखों की संख्या में गरीब मजदूरों-श्रमिकों व रोजी-रोटी के लिए कमाने गए लोगों को भी धीरे-धीरे ही सही, परंतु उन्हें भी सुरक्षित तरीके से लाॅकडाउन नियमों का पालन कराते हुए कैसे वापस लाया जा सकता है ? इस पर भी विचार किया जाना नितांत आवश्यक है। झारखंड वापस लाने की दिशा में पहल प्रारंभ कर देनी चाहिए।
आशा है, आप उपरोक्त विषय को एक अति गंभीर मुद्दा मानकर इस पर त्वरित कदम उठायेंगे। कोटा सहित अन्य राज्यों के विभिन्न हिस्सों में फंसे छात्र-छात्राओं के अलावा मरीजों, श्रमिकों को भी सर्तकता के तमाम जरूरी अहर्ताओं का पालन करते हुए उन राज्यों से वापस झारखंड लाकर उनके गंतव्य तक पहुंचाने की समुचित व्यवस्था सुनिश्चित करना चाहेंगे। ताकि ये और इनके परिवार परेशानी से बच सकें। यही नहीं, इनके वापस आ जाने से राज्य सरकार को भी कई स्तर पर राहत होगी। ”