भाजपा समर्थक पत्रकारों को हेमन्त सरकार के निर्णयों पर अंगूली उठाने के पूर्व अपना गिरेबां में थोड़ा झांक लेना चाहिए
इधर झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने कल राज्य के 35 आइपीएस अधिकारियों का स्थानान्तरण क्या कर दिया, पूरे राज्य में भाजपा समर्थक पत्रकारों व समर्थकों में भूचाल हैं। वे तरह-तरह के शिगूफे निकाल रहे हैं। वे सोशल साइट के माध्यम से लोगों को बरगला रहे हैं। जनता में गलत मैसेज दे रहे हैं, वे ऐसे-ऐसे तर्क दे रहे हैं, जिन तर्कों को देखकर कोई भी न्यूट्रल व्यक्ति आश्चर्यचकित हो सकता है।
सोशल साइट पर अफवाह फैलानेवाले ये कह रहे है कि राज्य सरकार ने 35 आइपीएस अधिकारियों का तबादला ऐसे समय पर किया, जब राज्य में कोरोना वायरस के संक्रमण का दौर है, ऐसे में क्या ऐसे अधिकारी जिन्हें स्थानान्तरित किया गया है, वे अपने-अपने क्षेत्र में क्वारेन्टाइन होंगे?
इस पर राज्य के वरीय अधिकारी ने विद्रोही24डॉट कॉम से बातचीत में कहा कि पहली बात सभी को समझ लेना चाहिए कि ये तबादला पूर्व से ही निर्धारित था, न कि कोरोना संक्रमण को देखते हुए किया गया। दूसरी बात क्वारेन्टाइन उन लोगों को किया जा रहा हैं, जो दूसरे राज्यों से आ रहे हैं, जो एक जिले से दूसरे जिलों में आ-जा रहे हैं, उन्हें क्वारेन्टाइन की बात कहां से आ रही है।
पूर्व में जिस मंत्री के आदेश पर जिन लोगों को एक जिले से दूसरे जिले ले जाया गया था, इस एक घटना को स्थानान्तरण से नहीं जोड़ा जा सकता, क्योंकि जिन्हें बस से ले जाया गया था, उनके बारे में किसी को ये जानकारी नहीं थी कि ये लोग किन-किन जगहों से आकर रांची में ठहरे हुए थे, ऐसे लोगों को क्वारेन्टाइन की आवश्यकता थी, पर एक आइपीएस के स्थानान्तरण में भी क्वारेन्टाइन की बात निःसंदेह लज्जाजनक है, क्योंकि सभी को पता है कि वह आइपीएस अधिकारी किस जिले से किस जिले में पहुंच रहा है।
उक्त वरीय अधिकारी का ये भी कहना था कि लोगों को समझना चाहिए कि कोरोना संक्रमण को फिलहाल पूरे राज्य में विभिन्न जिलों के उपायुक्त देख रहे हैं। ऐसे भी पूरे प्रदेश के सभी जिलों में कोरोना संक्रमण नहीं हैं, सर्वाधिक प्रभावित जिला रांची है, जहां के उपायुक्त और एसएसपी को स्थानान्तरित नहीं किया गया।
बाकी जिलों में जहां कोरोना संक्रमण हैं, वहां इक्के-दुक्के प्रभावित लोग दिखे हैं, उनमें से भी कई स्वस्थ हो चुके हैं, इसलिए बेवजह आइपीएस अधिकारियों के स्थानान्तरण को मुद्दा बनाना गैर जिम्मेदाराना है। ऐसे हर व्यक्ति कुछ भी कहने को किसी भी मुद्दे पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत बोल सकता है, जनता सर्वोपरि है, उसे सभी पता है कि कौन कब, कहां और किस परिस्थिति में बोलता है, इसलिए 35 आइपीएस के अधिकारियों पर जो भी लोग अंगूलिया उठा रहे हैं, वे थोड़ा अपना गिरेबां और समझदारी की ओर झांक लें, तो बेहतर होगा।