एक सप्ताह से कई पत्रकारों के घर किलकारियां गूंजनी बंद हो रही थी और रांची प्रेस क्लब के अधिकारी कान में तेल डालकर सोए हुए थे
रांची में एक पत्रकार के साथ कल बहुत ही शर्मनाक घटना घटी है। ऐसी शर्मनाक घटना, जिसकी जितनी निन्दा की जाय कम है। इस घटना ने पत्रकारों के समूह को लेकर बनी विभिन्न संस्थाओं तक पर कालिख पोत दी है, लेकिन हम पत्रकार ऐसे हैं कि सच्चाई को जानकर भी, इस पूरी घटना के लिए व्यवस्था को दोषी ठहराकर स्वयं को बच जाने का असफल प्रयास कर रहे हैं, तो पहला सवाल यही है कि क्या हम व्यवस्था के अंग नहीं है, या हम कोई अपने लिए अलग से खुद के लिए दुनिया बना ली है।
जहां तक हमें जानकारी प्राप्त हुई है। रांची में कुछ पत्रकारों के घर इस कोरोना के संक्रमण काल में बच्चों की किलकारियां गुंजनेवाली थी, जिन लोगों को व्यवस्था की जानकारी थी, जो जुगाड़ टेक्नोलॉजी में आगे थे, उन्होंने तो इसका लाभ उठा लिया, पर जो जुगाड़ टेक्नोलॉजी में पीछे रहे, वे अपने घर किलकारी गूंजे, इसका प्रबन्ध करने से वंचित रहे, जिससे उनके घर में गम के माहौल ने अपना कब्जा जमा लिया।
उनमें से ही एक पत्रकार है विनय कुमार मुर्मू जिनका फेसबुक देखने से लगता है कि वे पायोनियर नामक अखबार से जुड़े हैं, उनके घर कल बहुत बड़ा हादसा हुआ है। वे अपनी पत्नी को लेकर एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल तक दौड़ते रहे, पर इलाज नहीं हुआ, और बच्चे की मौत हो गई, अगर उनकी पत्नी का समय पर इलाज हो गया होता, तो उनके भी घर में आज बच्चे की किलकारियां गूंज रही होती।
रांची से प्रकाशित प्रभात खबर ने इस खबर को प्रथम पृष्ठ पर स्थान दिया है, जबकि बाकी के अखबारों में यह समाचार नहीं है, अगर दिया भी होगा तो इसकी जानकारी हमें नहीं है, क्योंकि केवल प्रभात खबर की ही कटिंग सोशल साइट पर वायरल हो रही है। प्रभात खबर ने भी जिस प्रकार से हेडिंग दी है, उससे पता नहीं चलता कि ये घटना किसी पत्रकार या अखबार के छायाकार के साथ घटी है।
जब आप इस समाचार को अंदर पढ़ेंगे, तब जाकर पता चलेगा कि ये घटना पत्रकार विनय मुर्मू के साथ घटी है। जैसे ही यह समाचार आया। संवेदनशील लोगों ने सोशल साइट के माध्यम से अपने विचार रखने प्रारम्भ किये, जिसको जहां तक दिमाग था, उसने अपनी दिमाग दौड़ाई और अपने-अपने हिसाब से फेसबुक और टिवटर पर व्यवस्था को दोषी ठहरा दिया, पर वे सभी भूल गये कि कही न कही व्यवस्था में हम भी यानी पत्रकार भी शामिल है।
आश्चर्य यह भी है कि संवेदनशीलता के क्रम में सभी ने विनय कुमार मुर्मू को फोटो जर्नलिस्ट तो बताया, पर किसी ने यह नहीं लिखा कि वे किस अखबार से जुड़े है? पर व्यवस्था को दोषी ठहराने में सबसे आगे रहे। ये वही विनय कुमार मुर्मू है, जिनकी संवेदनशीलता के चर्चे अख्सर अच्छे पत्रकार किया करते हैं, चाहे कोरोना संक्रमण का काल रहा हो, अपने इलाके में इससे बचने का प्रयास के लिए जागरुकता फैलाने का काम हो, या गरीबों को भोजन कराने का काम, सभी में ये आगे रहे हैं, पर देखिये समय की क्रूरता, जब इन्हें अपने लोगों की जरुरत थी, तो कोई इनके साथ नहीं था, और ये समय के आगे हार गये, आज ये दुखी है, कि कल वे अपने होनेवाले बच्चे को बचा नहीं सके।
ठीक इसी प्रकार की एक और घटना किसी और अन्य पत्रकार के साथ भी घटी है, जिसकी जानकारी हमें पत्रकार सन्नी शारद के वाल से मिली। सन्नी शारद ने लिखा है कि “न्यूज विंग में कार्यरत एक पत्रकार प्रवीण कुमार का बच्चा भी 26 अप्रैल को मर गया। गर्भवती पत्नी का रेगुलर इलाज आरपीएस अस्पताल बरियातू में चल रहा था, लेकिन जब उनकी पत्नी के पेट में दर्द हुआ वो लेकर गए तो हॉस्पिटल ने हाथ खड़ा कर दिया। वो पत्नी को लेकर दौड़ते रहे और अंततः बच्चा पेट में ही मर गया।”
वरिष्ठ पत्रकार सुशील सिंह मंटू के वाल पर कमेन्ट्स में एक पत्रकार प्रभात रंजन जायसवाल ने भी अपनी व्यथा कुछ इस प्रकार लिखी है, उन्होंने लिखा है कि “अभी चार दिन पहले मेरा साथ भी यही हुआ था। रांची का गुरुनानक, सेंटेविटा, आस्था नर्सिंग, मां क्लीनिक, लोवाडीह, सेवन डेज बरियातू हॉस्पिटल समेत कई डाक्टरों के पास गर्भवती महिला को लेकर घूमते-घूमते थक गये, लेकिन किसी ने एक न सुनी। वो तो भला हो, कि एन वक्त में राज अस्पताल ने महिला को अपने अस्पताल में भर्ती किया और सुरक्षित डिलीवरी कराई।”
अब सवाल उठता है कि आज से एक सप्ताह पूर्व एक पत्रकार प्रवीण कुमार के साथ ऐसी घटना घट गई थी, जिसमें उनके बच्चे की मौत हो गई और दूसरा पत्रकार प्रभात रंजन जायसवाल के साथ चार दिन पहले ही ऐसी घटना घटी, लेकिन ईश्वर की कृपा रही कि उन्होंने नवजात को बचा लिया, घटित होने के बावजूद भी पत्रकारों की सर्वोच्च संस्था “रांची प्रेस क्लब” के अधिकारियों ने इस विषय पर क्यों नहीं ध्यान दिया?
जब रांची प्रेस क्लब के अधिकारी को विशेष लाभ इस संक्रमण के दौरान मिल सकता है तो फिर इन पत्रकारों का समूह उक्त सुविधा से वंचित कैसे रह गया? क्या माना जाय कि रांची प्रेस क्लब भी सिस्टम का शिकार हो गया, और जब रांची प्रेस क्लब भी सिस्टम का शिकार हो गया तो फिर हम रांची प्रेस क्लब से क्यों आशा रखे कि वो पत्रकारों की समस्याओं को लेकर मुखर होगा।
रांची प्रेस क्लब के अधिकारी ही बताए कि कोरोना संक्रमण के दौरान आपने खूब चावल-दाल बांटे, मास्क बांटे, सेनिटाइजर बांटे, आपसे ये कैसे चूक हो गई कि आपके परिवार के ही कई सदस्य अपने घर में आनेवाले नये मेहमान का मुंह तक नहीं देख सकें, क्या इसके लिए आप सभी को शर्म नहीं आनी चाहिए। आपके तो कान उसी वक्त खड़े हो जाने चाहिए थे, जब प्रवीण के साथ 26 अप्रैल को यह घटना घटी थी।
आपको तो कान उसी वक्त खड़े हो जाने चाहिए थी जब प्रभात रंजन जायसवाल के साथ चार दिन पहले ऐसी घटना घटने से होते-होते रह गई थी, आपने इस ओर ध्यान क्यों नहीं दिया? क्या आपने इसलिए ध्यान नहीं दिया कि वो अखबारों की सुर्खियां नहीं बनी थी, या ये लोग आप जैसे अधिकारी नहीं थे। आप जो हर बात में मुख्यमंत्री को टिवट कर हर बात के लिए सिस्टम को दोषी ठहराते है, तो कृपया बताएं आपके यहां सिस्टम की ये गाज क्यों नहीं गिरी, ये इनलोगों पर कैसे गिर गई? सवाल है, जरा जवाब दिजियेगा, ऐसा नहीं कि फिर स्तरहीन आलेख का ब्लैम लगा दिजियेगा, ऐसे आप जो भी ब्लेम हम पर लगाइये, पर हम तो सवाल उठायेंगे ही, आपसे जवाब मांगेंगे ही।
और जब पत्रकारों के समस्याओं को लेकर, आप सजग नहीं। आप उनके दुख-सुख में साथ नहीं तो फिर ऐसी संस्था व उसके अधिकारी रहे अथवा न रहे, क्या फर्क पड़ता है? शर्म करिये, कि पत्रकारों की सबसे बड़ी संस्था रांची प्रेस क्लब, उसके बड़े-बड़े अधिकारी, व कार्यकारिणी सदस्य जिनकी मुख्यमंत्री व राज्यपाल तक सीधी पहुंच हैं, वे अपने भाइयों के घर गूंजनेवाली किलकारियों के लिए कुछ नहीं कर सकें और दोष सिस्टम को ठहरा रहे, मैं तो कहूंगा कि इसके लिए रांची प्रेस क्लब भी दोषी है, क्योंकि एक सप्ताह से घट रही ऐसी घटनाओं पर इनके अधिकारियों ने ध्यान ही नहीं दिया।
जरा देश के केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा को देखिये, “दुखद और शर्मनाक” लिखकर अखबार की कटिंग डाल दी, और अपना काम पूरा हुआ, समझ लिया। जरा स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता को देखिये ट्विटर पर लिख दिया “ये एक दुखद घटना है, स्वास्थ्य सचिव को पत्र लिखकर मामले की जांच कर दोषियों पर कार्रवाई करने का निर्देश दिया हूं, साथ ही निर्देश दिया हूं कि कोविड के अलावे प्रसव समेत अन्य गंभीर रोगियों के समुचित इलाज की व्यवस्था कायम हो, रिपोर्ट के बाद इस मामले में दोषियों पर कार्रवाई होगी” अखबार का कटिंग डाल दिया और लीजिये इसने भी अपने काम को पूरा होना समझ लिया। इनके इस संवाद को पढ़ने के बाद यकीन मानिये कि कुछ होना नहीं है, होगा वही ढाक के तीन पात।
हमारे विचार से इसके लिए सबसे बड़ा दोषी रांची प्रेस क्लब के वे अधिकारी है, जो स्वयं पर तो ध्यान दे रहे हैं, पर अपने से नीचे के पत्रकारों के दुख-दर्द को समझने की कोशिश नहीं की, वे झूठे मान-सम्मान पाने के चक्कर में आलू व प्याज दान करने के काम को ही सबसे बड़ा काम मान लिया है और अपने ही पत्रकारों के घर गूंजनेवाली किलकारियों के प्रति अपनी संवेदना पर विराम लगा दिया, वह भी तब जब कि रांची में ऐसी घटना एक साथ नहीं, कई के साथ कोरोना संक्रमण में घट चुकी थी, तब ये सारे के सारे अधिकारी कान में तेल डालकर सोए पड़े थे।
कहने को रांची प्रेस क्लब के अधिकारी ये भी कहेंगे कि जब विनय कुमार मुर्मू के साथ घटना घट रही थी, तब हमलोग उनके साथ मौजूद थे, पर जनाब मौजूद रहने से क्या होगा, जब आपके मौजूद रहने के बाद भी उसे वो सहूलियत नहीं मिली, जिस पर उसका हक था। इस प्रकार की घटना एक सप्ताह पहले से घट रही थी, उस वक्त आपने इस प्रकार की घटना से बचाव के लिए कौन से उपाय किये थे? आप ये कहकर बच नहीं सकते कि हम विनय कुमार मुर्मू के साथ थे, आपको बताना होगा उन पत्रकारों को, कि एक सप्ताह पूर्व जब प्रवीण कुमार के साथ घटना घटी तो आपने उसी वक्त ऐसी घटना पर रोक लगाने के लिए कौन-कौन से काम किये?
एक बात और आपने जो मुख्यमंत्री को जो इस संबंध में ज्ञापन दिया है, उस ज्ञापने से भी आपका पाप धूलनेवाला नहीं है, क्योंकि इस ज्ञापन में भी आपने पाप कर डाले हैं, प्रवीण कुमार को तो न्यूज विंग का पत्रकार बताया है, पर विनय कुमार मुर्मू किस अखबार से जुड़ा है, आपने बताया ही नहीं। विनय कुमार मुर्मू को अपने ज्ञापन में एक अखबार का फोटो जर्नलिस्ट बताया है, कमाल है भाई, आपलोग तो सचमुच में महान है। आप इसी तरह काम करते रहिये, जब पत्रकारों के साथ घृणित घटना जाये, तो बस एक कागज उठाइये, कुछ शब्दों को उकेर दीजिये और मुख्यमंत्री या राज्यपाल तक पहुंचा दीजिये और लोगों को बता दीजिये कि हमने आपके लिए काम किया न, देखिये ज्ञापन दे डाला और क्या कर सकते हैं?
दुःखद,
Fir f i r
करो