देश के श्रमिकों, नेताओं-मीडियाकर्मिंयों के आगे आंसू मत बहाइये, अपने दर्द और आसूओं को फौलाद बनाइये, क्योंकि आप हैं तो भारत है
एक सवाल – अगर किसी को एक ही जगह जीने के लिए सारी सुख-सुविधा प्राप्त हो जाये, तो क्या वह दुसरी जगह जाना पसन्द करेगा? या वह कोई नई चीजों का अन्वेषण कर सकता है? उत्तर होगा – नहीं, क्योंकि दुनिया में वही व्यक्ति किसी चीज का खोज किया है, जिसे उक्त चीज ने अन्वेषण करने के लिए प्रेरित किया है।
दुनिया में कई कथाएं प्रचलित हैं, जो हमें प्रेरित करती है, समस्याओं से लड़ने को, क्योंकि जब तक हम समस्याओं से लड़ेंगे नहीं, हम असली सुख को प्राप्त नहीं कर सकते, ठीक उसी तरह जैसे दिन का मजा उसी ने लिया है, जिसने रात को जाना है, जिसने रात को जाना ही नहीं, वो दिन का क्या मजा लेगा?
इस बात को ऐसे समझिये, अगर राम जंगल नहीं गये होते तो क्या रावण मारा जाता, क्या जंगल में तप-साधना में लगे ऋषियों को त्राण मिलता, राम को यश व कीर्ति जो आज मिल रही हैं, वो मिल पाती, उत्तर होगा – नहीं, पर लगे हाथों यह भी समझिये कि ऐसा होने में अयोध्या और उनके राजा दशरथ को कितना बड़ा कष्ट झेलना पड़ा।
केवल राम वन गमन का समाचार सुन पुरी अयोध्या सुनसान हो गई, लोग कैकई को भला-बुरा कहने लगे थे, क्योंकि कैकई ने ही राम के वन गमन और भरत को राजगद्दी मिले, इस मांग को दशरथ के सामने उठा दिया था, जिसका परिणाम यह निकला कि राजा दशरथ का प्राणान्त हो गया।
यह घटना बताने के लिए काफी है कि अगर आप कोई बहुत बड़ी उपलब्धि प्राप्त करना चाहते हैं तो आपके जीवन में ऐसी भी घटनाएं घटेगी, जिसकी कल्पना भी आप नहीं कर सकतें और वो घटना घटेगी, और आप जैसे ही उस घटना पर विजय प्राप्त करेंगे, इतिहास रच देंगे, जैसा कि राम ने इतिहास रच दिया, मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए।
एक दुसरी घटना सुनाता हूं। जो मैंने बचपन में सुनी है। एक संत थे जो अपनी टीम के साथ इधर से उधर भटक रहे थे। एक बार वे एक ऐसे गांव में पहुंचे, जहां ज्यादातर लोग बदमाश थे। संत के उस गांव में पहुंचते ही, गांव वालों ने उस संत का कचूमर निकाल दिया। जमकर पिटाई कर दी। बेचारे संत क्या करते, मार खाते-खाते बचकर भाग निकले।
कुछ दूर जाने पर उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की कि हे ईश्वर, जिन्होंने हमें इतनी बुरी तरह पिटाई की है, उस गांववालों को सुख प्रदान कर, दुनिया की सारी खुशियां उन्हें दे दें। चूंकि संत पहुंचे हुए थे, ईश्वर से उनकी खुब बाते होती थी, भला संत की बात, ईश्वर कैसे नही मानते। जमकर उस गांव में धन की वर्षा कर दी। गांववाले सुखी हो गये।
इसके बाद संत आगे निकले और दुसरे गांव में पहुंचे। वहां के लोगों ने देखा कि संत आये हैं। वे बहुत खुश हुए। उन्होंने संत महाराज और उनकी टीम की खुब सेवा की। लगे हाथों चूंकि सेवा जमकर हो रही थी, संत महाराज और उनकी टीम जल्द ही स्वस्थ हो गई और फिर गांव में प्रवचन का दौर शुरु हो गया। गांववालों का मन भी रम गया था। सारे गांव में बहार आ गई थी।
चूंकि संत तो संत होते हैं। एक गांव में ज्यादा दिनों तक नहीं रह सकते। इसलिए संत ने गांववालों से कहा कि अब हम इस गांव से जाना चाहते है। गांव के मुखिया ने कहा कि संत महाराज हमलोगों से गलती हुई क्या? क्यों आप हमें छोड़कर जाना चाहते है? आप यही रहिये। संत के बार-बार अनुनय करने पर, गांववाले माने और संत को जाने दिया।
इधर जैसे ही संत गांव से बाहर निकले। उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की, कि हे ईश्वर जिस गांव से मैं अभी-अभी निकला हूं। उस गांव पर कहर बरसा दे, ऐसा कहर बरसा दें कि ये लोग गांव से छोड़ने को विवश हो जाये, पुरे परिवार के साथ यत्र-तत्र बिखर जाये। जब संत महाराज ने ईश्वर से ये दुआएं मांगी तो उनके टीम के कुछ सदस्य नाराज हो गये और संत महाराज को सबक सिखानी चाही।
तभी रात में टीम के एक सदस्य ने संत से बात की कि जिस गांव के लोगों ने हमें जमकर पीटा, उसके लिए आपने सुख की कामना और जिन लोगों ने हमें आनन्द दिया, उसके लिए आपने दुख की कामना क्यों की? संत ने कहा – कि चूंकि पहले गांव वाले बदमाश टाइप के लोग थे, वे जहा जाते गंदगी फैलाते और गंदगी एक जगह रहे तो ही ठीक है, इसलिए मैंने ईश्वर से प्रार्थना की, कि वो ऐसी व्यवस्था कर दें, कि ये बदमाश लोग गांव से बाहर ही नहीं निकल सके।
चूंकि दूसरे गांववाले सज्जन प्रवृत्ति के लोग थे, इनका एक जगह रहना, देश व काल दोनों के लिए खतरनाक है, इसलिए हमने ईश्वर से प्रार्थना की कि वो इस गांव में ऐसा कहर बरसा दें ताकि ये लोग इधर-उधर भटक कर अन्यत्र स्थानों पर फैल जाये, ताकि इनके प्रभाव से सभी लोग सज्जन बन जाये, अगर मैं ऐसा नहीं करता, तो ये लोग एक ही जगह बैठे रह जाते। संत के इस वाक्य को सुन सभी हतप्रभ रह गये।
हमने दो कहानियां सुनाई। ये दोनों कहानियां बहुत कुछ कह देती है। क्या कहती है? जरा इसको समझिये। अच्छा रहेगा कि कोरोना के इस संक्रमण काल के साथ तालमेल बैठाकर देखिये तो आपको हर समस्याओं का हल मिलेगा, नही तो जो आप या लोग कर रहे हैं, वो तो दिख ही रहा है।
इन दिनों जिसे देखिये, मजदूरों की दुर्दशा को लेकर दिये जा रहा है। ये वे लोग है, जिन्होंने कभी मजदूरों पर दया ही नहीं दिखाई। जो मजदूरों का हक लूटने में ही ज्यादा दिमाग लगाते है। जरा याद रखियेगा, ये मीडिया के लोग है, जो बेगैरत सरकार (चाहे किसी की भी सरकार क्यों न हो) के मंत्रियों/नेताओं के साथ पीआर बनाने में लगे रहते हैं और उसके बदले में खुद को अनुप्राणित करते हैं।
अपने बेटे-बेटियों को तो आराम से अपने घर बुलाने के लिए नेताओं-मंत्रियों से मिलकर व्यवस्था कर लेते हैं, पर जब मजदुरों की बात आती हैं तो ये सिर्फ और सिर्फ बहस करने लग जाते हैं। ये इन मजदुरों के इस गम को भी महोत्सव का रुप देते हैं। पीछे बैठे न्यूज प्रोड्यूसरों की मदद से एंकरिंग करते हुए फिल्म अभिनेताओं/अभिनेत्रियों तक को मात दे देते हैं।
ये वे लोग हैं, जो गिद्ध की भांति लाशों की ढेर का कामना करते हैं, और उस पर अपने विवेकानुसार प्रवचन देते हैं तथा लोगों को प्रवचन देने के लिए बुलाते भी हैं। ये नहीं बताते कि कैसे ये लोग इन मजदुरों की आशाओं व उनकी खुशियों में आग लगाते है। जरा पुछिये, इनसे कि देश की राजधानी दिल्ली या अन्य राज्यों में समय-समय पर या चुनाव के दिनों में कॉनक्लेव किसके पैसों से कराते हैं?
ये पैसे किनके होते हैं? किनके सपनों का खून कर ये पैसे इन चैनलों को प्राप्त होते हैं? ये आपको नहीं बतायेंगे, पर जब ये मजदुर रोजी-रोटी और अपने जीवन को सुचारु रुप से चलाने के लिए अपने घर की ओर रवाना हो रहे हैं तो देखिये कैसे बनावटी आंसुओं से लोगों को भरमाने की कोशिश करते हैं, क्या इनके दर्द को बढ़ाने में, इनके सपनों को लूटने में इन मीडियाकर्मियों का हाथ नहीं।
अब बात इन गरीब मजदुरों की, तो मजदुर भाइयों ये मौका है। आपको इस दर्द से एक नये इतिहास रचने का। आप अपने दर्द को मत बांटिये। इस दर्द को गले लगाइये। आपने हमेशा देश को शक्ति दी है। इन बेवकूफों के आगे अपना दीदा मत खोइये, क्योंकि इनके मगरमच्छवाली आंसुओं से भी आपको कुछ नहीं मिलेगा, क्योंकि जो भी प्राप्त होगा, आपके पुरुषार्थ से ही होगा।
आपने ही महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडू और केरल जैसे राज्यों को बेहतर बनाया है, और जब आप इन राज्यों को बेहतर बना सकते हैं तो आप अपने राज्य बिहार-झारखण्ड को बेहतर क्यों नहीं बना सकते? आप खुद देखिये। जब आप उन्हें बेहतर बनाने में लगे थे, तो उन्होंने कैसे आपका खून चुसा और जब कोरोना की मौत बरसने लगी तो आपको कैसे सड़क पर मरने के लिए छोड़ दिया।
आप खुद को समझने की कोशिश कीजिये। गरीब होना अभिशाप नहीं हैं, पर गरीबी को हमेशा के लिए गले लगाना अभिशाप है। आप आज ही संकल्प लीजिये, कि कुछ भी हो जाये, आप गांव नहीं छोड़ेगे, जंगल नहीं छोड़ेंगे, अपनी माय-मांटी को नहीं छोड़ेंगे, अपनी हक की लड़ाई नहीं छोड़ेंगे, जिस दिन आपने इसे गांठ बांध लिया, दुनिया की कोई ताकत आपको नहीं झुका सकती।
यह बिहार-झारखण्ड की मिट्टी कुछ आपसे मांग रही है। यह मिट्टी आवाज दे रही है। इस आवाज को समझिये। ये कोरोना कुछ कह रहा है। उसकी सुनिये। वो कह रहा है। बहुत हो चुका, जो तुम शहर-शहर की रट लगा रहे हो, शहर में कुछ नहीं है। आनेवाले समय में ये शहर के लोग तुम्हारी गांवों की तरफ भागेंगे, क्योंकि शहर अब रहनेलायक नहीं है, इसलिए आप अपने गांव को समृद्ध करिये।
अपने राज्य को समृद्ध करिये, खुद को समृद्ध करिये, जो नेता, मंत्री, मीडियाकर्मी आपके सपनों को लूटने की कोशिश करते हैं, उन्हें बताइये कि बहुत उनलोगों ने आपको उल्लू बनाया, अब उल्लू नहीं बनेंगे। अपने राज्य को समृद्ध बनायेंगे। अपने मेहनत का जादू यहां बिखरेंगे। अपने पुरखों की मिट्टी से सोना पैदा करेंगे। थोड़ा कोरोना की भी सुनिये, वो कह रहा है कि उसने शहरों में तबाही मचाई है।
उसने कहा है कि वो ऐसे देशों में तबाही मचाई है, जो खुद को बेहतर समझते थे, पर भारत की गांवों को छुआ नहीं। ऐसे भी भारत माता गांवों में बसती है। देश गांवों में बसता है। इसे बचाने की जिम्मेवारी आपकी है। कोई नेता या सरकार कहता है कि हम आपके साथ है, तो आप इस भूल में मत रहिये।
दुनिया में ईश्वर किसी को भेजा हैं तो उसके लिए वो सारी चीजें तैयार करके रख दी है, बस उसे पाने के लिए मेहनत की जरुरत होती है। एक साथ मिलकर चलिये, गांवों की किस्मत को चमकाइये, कोई भी मीडियाकर्मी या नेता आपके भावनाओं से खेलने की कोशिश करें, तो सीधे उसे अपने गांव से शहर जानेवाला रास्ता दिखाइये और कहिये कि बहुत हो चुका, हम अपनी किस्मत खुद चमकायेंगे।
ये कोरोना कुछ नहीं, अगर आप इसके आगे रोना-धोना शुरु कर देंगे, तो आप खत्म हो जायेंगे और जब आप इसे चुनौती के रुप में स्वीकारेंगे तो ये खुद ब खुद रास्ता ढुंढ लेगा। इस बात को समझिये कि दुनिया में किसी ने रोकर इतिहास नहीं रचा, सभी ने लड़कर इतिहास रचा। सोशल डिस्टेन्स अपनाइये। मास्क लगाने की जगह गमछा का प्रयोग करिये। साफ-सफाई का ध्यान रखिये।
अपने परिवार को देखिये और बस भारत को आत्मनिर्भर बनाने में लग जाइये। ये आप ही कर सकते हैं, कोई नेता नहीं कर सकता, अखबार या चैनल वाला नहीं कर सकता, क्योंकि इनमें अब नब्बे प्रतिशत बेइमानों नें इंट्री ले लिया है। मैं जानता हूं कि देश की सड़कों पर बिखरा ये दर्द बता रहा है कि देश करवट ले रहा है। मजदुरों का दर्द, इतिहास बनाने को मचल रहा है। यह अब जल्द ही दिखेगा।
भारत की अर्थव्यवस्था को कोई चुनौती नहीं दे सकता। जब गांवों में पहुंचे, ये मजदूर हल चलायेंगे, बेहतर माहौल बनायेंगे, तो गरीबी खुद ब खुद अपना रास्ता देख लेगी। हां, एक बात और, जरा सतर्क रहियेगा, क्योंकि आप जैसे ही आगे बढ़ेंगे, तो नौटंकी करनेवाले फिर आपको उल्लू बनाने के लिए आपके चौखट पर पहुंच जायेंगे, इसलिए कोरोना की चुनौती को स्वीकार कर अभी से लग जाइये और कहिये हम हैं तो भारत है।