शर्मनाक, चीन पाक और नेपाल की सहायता से भारत की सीमा छोटा करने में लगा है और भारतीय मस्ती में डूबे हैं
जिस भस्मासुर चीन को भारतीय शासकों, व्यापारियों-पत्रकारों और यहां की जनता ने आर्थिक रुप से सशक्त किया, वहीं चीन भारतीय सैनिकों का मान-मर्दन एवं भारतीय सीमा को और छोटा करने के लिए दिमाग लगा रहा है और भारतीय कर क्या रहे हैं, तो हिन्दू-मुसलमान, पूजा और नमाज, लूट-खसोट, कौन कितना अनुशासनहीन हो सकता है, इसी में ज्यादा दिमाग खपा रहे हैं, ऐसे भी भारतीय इसके सिवा कर भी क्या सकते हैं, इनके पास विकल्प ही क्या है?
इन्हें आजादी के बाद संस्कार और चरित्र तो सिखाया ही नहीं गया, धर्मनिरपेक्षता की ऐसी जन्मघूंटी पिला दी गई कि इन्हें देश एक मिट्टी के टुकड़े से ज्यादा दिखाई ही नहीं पड़ा, राष्ट्रीय ध्वज इनके लिए एक कपड़े के टूकड़े से ज्यादा कुछ है ही नहीं, तभी तो नेपाल और पाकिस्तान जैसे पिद्दी देश चीन के इशारे पर भारत को आंखे दिखाते हैं और भारतीय चुपचाप दांत निपोर कर रह जाते हैं, और उधर चीन भारत की इस मनोदशा को देख भारतीयों पर हंसता है।
वो हंसता है कि उसने भारतीय पत्रकारों को मुंहमांगी रकम देकर, भारत के खिलाफ ही विषवमन करा रहा हैं, पर भारतीयों को इसका अंदाजा ही नहीं, वो ठहाके लगाकर हंसता है कि चीनी मूर्तियों को भारतीय गणेश-लक्ष्मी मानकर पूजते हैं और उससे अपनी आर्थिक समृद्धि की कामना करते हैं, चीन जानता है कि हर दिवाली के मौके पर भारतीय चीनी वस्तुओं का बहिष्कार करते हैं, पर हर दिवाली के दिन बड़े-बड़े भारतीय व्यापारी उसके यहां इलेक्ट्रानिक्स सामग्रियों की बड़ी खेप लेने को लालायित रहते हैं।
चीन जानता है कि भारतीय नेताओं की कोई औकात उसके आगे नहीं हैं, क्योंकि भारतीयों के पैसे से ही उसने अपनी इतनी आर्थिक ताकत बढ़ा ली कि आज वो उन्हीं पैसों से भारतीय सैनिकों के सीने पर बंदूक ताने खड़ा है। भारत में तो कुछ ऐसे राजनीतिक दल हैं, जिनकी राजनीति ही चीन से चलती है, वे बड़े गर्व से चीन के पक्ष में खड़े रहते हैं। इससे बड़े शर्म की बात और क्या हो सकती है, फिर भी भारतीयों को देखिये, वे आज भी अपने देश के बारे में सोचने को तैयार नहीं है।
देश भाड़ में जाये, इससे कोई मतलब नहीं, इन्हें तो इससे मतलब है कि उनकी बीवियां, उनकी प्रेमिकाएं, उनके डहंडल बेटे और बहूएं सात पुश्तों तक आराम से जी सकें, इसके लिए धन संग्रह कर ली जाये। ये भारतीय इतने बदमाश है कि वे भारतीय सैनिकों के मरने पर भारतीय सैनिकों के लिए अच्छी खासी रकम जमा कर देंगे, लेकिन इनसे यह कहा जाये कि देश के लिए कुछ करो, भारतीय वस्तुओं का उपयोग करो, अपनी समृद्धि के लिए भारतीयता के रंग में रंगों, अपने बेटे-बेटियों को देश के लिए जीना सीखाओ, वे नहीं करेंगे। वे हर बात में बातूनी बनेंगे, बाल का खाल निकालेंगे, पर अपने घर में भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, महात्मा गांधी, सुभाष आदि पैदा हो, ये सपने में भी नहीं सोचेंगे।
कमाल है, भारत और चीन दोनों पड़ोसी, चीन अमरीका जैसे महाशक्ति को चुनौती दे रहा है, और हम पाकिस्तान को जवाब देने में ही अपनी शक्ति को जाया कर रहे हैं, हम भूल रहे है कि आनेवाले समय में हमारा दुश्मन चीन का इरादा अपने देश को लेकर नेक नहीं है। ये वही चीन है, जिसने 1962 में हमारे बड़े भू-भाग को कब्जा कर लिया और आज तक उसे हम प्राप्त नहीं कर सके हैं, जबकि हमने संसद में इस बात का संकल्प लिया था कि हम किसी न किसी हाल में अपनी खोई जमीन वापस लेकर रहेंगे।
पर हमारे देश के राजनीतिज्ञों ने क्या किया? चुप्पी साध गये, चीन से व्यापार करने में दिमाग लगाया, व्यापार भी कैसा तो तुम अपना सामान लेकर भारत आओ, भारत में बेचो, मुनाफा कमाओ, अपनी समृद्धि बढ़ाओ और हमारे लोगों को बर्बाद कर दो तथा इन्हीं पैसों से भारतीय सैनिकों को उनकी औकात बताओ, भारत की छाती में हमेशा छुरा भोकते रहो। मैंने कई बार कहा है कि अरे भारतीयों, सरकार मजबूर है, तुम तो मजबूर नहीं, तुम तो देश से प्यार करो।
चीन अथवा चीन में निर्मित वस्तुओं का बहिष्कार करो, भारत की समृद्धि में अपना अमूल्य योगदान दो, लेकिन ये मानेंगे नहीं, ये तो कहेंगे कि अपने नेता ही बाजार खोले हैं, तो कुछ समझ कर ही खोले होंगे, अरे भारत में नेता है कहां, जो देश से प्यार करें, एक दो गिने-चुने नेता है भी, तो उनकी सुनता कौन है? सभी तो अपने बेटे-बेटियों से उपर उठ ही नहीं पायें, तभी तो देश पिछड़ता चला गया। ये बातें क्यों नहीं समझ आती।
झारखण्ड में ही एक मुख्यमंत्री हुआ – रघुवर दास, जो रांची में शंघाई टावर बनाना चाहता था, इसने तो यहां के आइएएस अधिकारियों और मंत्रियों का ग्रुप बनाकर चीन की यात्रा भी की थी, यही नहीं चीन से जो प्रतिनिधिमंडल आया तो उसका स्वागत भी भगवान की तरह उसने करवाया, जहां ऐसे नेता होंगे, वो देश क्या तरक्की करेगा?
इसी झारखण्ड में मैंने एक पत्रकार को देखा, जो अब बहुत बड़ा नेता हो गया, वो जब भी चीन जाता तो वहां से लौटने के बाद चीन की प्रशंसा करने में ज्यादा दिमाग लगाता, यहीं नहीं उसकी कलम चीन की जय-जयकार करने में ही ज्यादा दिमाग लगाती, पर भारत उसके कलम में कभी नहीं दिखा। मेरा मानना है कि यह इस देश का दुर्भाग्य है।
जरा इस देश का दुर्भाग्य हमारी नजरों से देखिये, चीन निर्मित कोरोना से पूरा विश्व बर्बादी के कगार पर हैं, जिसमें भारत भी शामिल है। चीन ने पाकिस्तान और नेपाल को भारत के खिलाफ उकसाने में सफलता हासिल कर ली है। उधर चीन लद्दाख में अपनी फौजों को अलर्ट कर दिया है। अमरीका ने तो भारत को संकेत दे दिये है कि चीन की नीयत ठीक नहीं है, पर हम भारतीय अपनी मूर्खता पर हंस रहे हैं।
कमाल यह भी है कि हमारा पड़ोसी बंगाल व ओड़िशा भयंकर तूफान से बर्बाद हो गया, इन दोनों राज्यों को राहत की जरुरत है, हौसला देने की जरुरत है और हम अपनी खुशियों में मस्त है, अपनी मौज में मस्त है, ऐसे में हम क्या भारतीय कहलाने लायक है। अरे भारतीयों, अब भी शर्म करो। जागो, देश देखो, सीमा खतरे में है, तुम्हारे टूकड़ों पर पलनेवाले देश आंखे दिखा रहे हैं, अब भी अपनी संतानों को देश के लिए जीना सीखाओ, क्योंकि आजादी के बाद सत्तर सालों में कांग्रेसियों ने तो जो किया, वो तो देश देख रहा है, हम आज भी अपनी सुरक्षा के लिए विदेशों पर आश्रित है।
जबकि हमारा पड़ोसी कहां से कहां निकल गया, ऐसा निकला कि वो अब पूरे विश्व को ही निगलने के लिए कोरोना पूरे विश्व को उपहार में दे दिया, इसलिए कब जगोगे, वक्त को पहचानो, वक्त साफ कह रहा है कि समय ठीक नहीं है, खुद को ताकतवर बनाओ, हौसले बुलंद करो, देश रहेगा तो तुम भी रहोगे, नहीं तो तुम्हारा गुलामी का लंबा इतिहास रहा है, फिर से गुलाम बनने का ठान ही लिया हैं तो फिर बनो गुलाम, कल अंग्रेजों के थे, उसके पहले मुगलों के थे, और अब पता नहीं किस-किसके बनोगे, क्योंकि हरकतें तुम्हारी तो साफ बता रही है, कि आप किस रास्ते जा रहे हो।