अपनी बात

हेमन्त जी, इस मामले को आप स्वयं देखे, सरायकेला के उपायुक्त ने पत्रकार वसंत को झूठे केस में फँसा, जेल में डाला है

मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन जी, हो सके तो इस मामले को आप स्वयं देखिये, नहीं तो ऐसे-ऐसे उपायुक्त आपको एवं आपकी सरकार को अपनी हरकतों से अलोकप्रिय बना देंगे, क्योंकि जिस प्रकार से सरायकेला-खरसावां के उपायुक्त ने एक पत्रकार वसन्त साहू के उपर जुल्म ढाया है, वह जुल्म बर्दाश्त से बाहर हैं, यह लोकतंत्र के साथ-साथ एक बेहतर झारखण्ड के लिए भी घातक है।

एक पत्रकार का अधिकार है कि उसके पास कोई जब समाचार आये तो उसकी पुष्टि के लिए संबंधित अधिकारी से सम्पर्क करें, ऐसे में संबंधित अधिकारी जिस प्रकार से पेश आये, उसकी हुबहू व्याख्या करने का अधिकार भी पत्रकार को हैं, ऐसे में अपनी खुद की गलतियों के लिए एक निर्दोष को कानून की जंजीरों में फंसाना, और यह दिखाना की हम बहुत ताकतवर हैं, वह बताता है कि राज्य गलत दिशा में जा रहा है।

क्या वसन्त साहू का यह पूछना कि सरायकेला में कोरोना संक्रमण का पहला मामला आया है? और उसका जवाव उपायुक्त का यह देना कि नहीं, कुछ नहीं है, चुपचाप जाकर सो जाओ और यही बात जनता के समक्ष कोई पत्रकार रख दें तो वह उसका जूर्म हो गया। वह उपायुक्त उक्त पत्रकार को सबक सिखाने के लिए अपने पद का दुरुपयोग करते हुए प्रखण्ड विकास पदाधिकारी से थाने में झूठा केस दर्ज करवायेगा और उसे देखते ही देखते जेल के अंदर डलवा देगा। वह भी झूठे आरोप मढ़कर कि उक्त पत्रकार कोरेन्टिन सेन्टर में घुसने का प्रयास कर रहा था। भाई ये तो शर्मनाक है।

इधर, इस घटना के खिलाफ पत्रकारों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है, संतोष कुमार नामक पत्रकार ने तो इस घटना के खिलाफ अपने नग्न बदन को ही बोर्ड बनाकर, कुछ सवाल कर डाले हैं, शायद जिसका जवाब किसी के पास नहीं है। संतोष ने ठीक ही पुछा है कि क्या कोई सरायकेला-खरसावां डीसी ए. दोड्डे (M No. 9431161940 ) से पूछेगा कि पत्रकार बसंत साहू के खिलाफ एफआईआर करने का आदेश उन्होंने क्यों दिया? बसंत साहू को जेल क्यों भेजा गया?

वैसे सूचना है कि कोरोना पॉजिटिव निकले एक मरीज के बारे में पुष्टि के लिए पत्रकार ने ‘हाकिम’ को फोन किया तो उन्होंने उसे सो जाने की सलाह दी थी। बाद में यह ‘सलाह’ वायरल हो गई थी। अब इसकी पुष्टि के लिए फिर कौन उन्हें फोन करे? कहीं उसे भी जेल की हवा न खानी पड़े? लेकिन जिस तरह पूर्व में सत्ता की नशे में डूबे हुए और अफसरों का हाल हुआ है । उसी तरह इनका होगा केवल समय का इंतेज़ार करे

वो दिन दूर नही है, अपने गलत निर्णय के कारण पब्लिक फिगर में आये इन महाशय के भी क्रियाकलापो एवम शुरू से अर्जित की गई सम्पति पर RTI गिरने भी लगे या हो सके कि कितने लोग एक्टिव भी हो चुके होंगे एवम भविष्य में कही वर्तमान में बसंत साहू के जगह ये भी नज़र नही आये। देश मे छाई महामारी के एक सवाल पर देश के चौथे स्तम्भ को दबाना शर्मनाक एवम निंदनीय है ।

हम बताते चलें कि यह आह केवल संतोष का नहीं, बल्कि संतोष जैसे सैकड़ों असहाय पत्रकारों के हैं, जो कभी-भी किसी के उपर गाज बनकर गिर सकते हैं, वो कहा गया है न – निर्बल को न सताइये, जाकी मोटी हाय। मरे मृग के छाल से लौह भस्म हो जाये।। अब जिस उपायुक्त ने सताया है, तो भाई वो भी तैयार रहे उक्त असहाय पत्रकार की आह लेने के लिए, आह तो समझते ही होंगे, डोड्डे साहेब, क्योंकि आइएएस हैं, पढ़े-लिखे तो होंगे ही।