अपनी बात

मुजफ्फरपुर स्टेशन पर मृत मां के शव से आंचल खींचता अबोध बच्चा, बिहार की असली तस्वीर लोगों के सामने रख दी

25 मई को मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन पर मृत महिला के शव पर पड़ी चादर को, आंचल समझ कर खींच रहा उस मृत मां का अबोध बच्चा का वायरल वीडियो यह बताने के लिए काफी है कि हम कितने गये-गुजरे हैं, यह दृश्य इतना मार्मिक और हृदय विदारक है, कि जो भी देखेगा, उसे खुद के मानव होने पर शर्म महसूस होगी, बिहारी और भारतीय कहलाना तो दूर की बात है।

सुना है कि इस वायरल विडियो और समाचार को देख पटना उच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लिया है और पूछा है कि महिला की मौत कैसे हुई? कोर्ट ने यह भी जानने की कोशिश की कि महिला का पोस्टमार्टम हुआ भी या नहीं अगर पोस्टमार्टम हुआ भी तो उसमें मौत का कारण क्या बताया गया? क्या महिला अकेले सफर कर रही थी या उसके साथ उसके परिजन भी थे, अगर उसके साथ परिजन थे तो वे कहां चले गये?

उस महिला का अंतिम संस्कार उसके धर्म के अनुसार हुआ या नहीं? मृत महिला के बच्चों का लालन पालन कैसे होगा? यह भी पता चला है कि अदालत ने केन्द्रीय आपदा प्रबंधन, रेलवे तथा राज्य सरकार के गृह, स्वास्थ्य, सामाजिक न्याय, आपदा प्रबंधन तथा आईजी पुलिस से जवाब तलब किया है, न्यायालय ने इसकी अगली सुनवाई तीन जून को तय की है।

कमाल है, कोरोना वायरस का जब से भारत में आगमन हुआ है, उसके बाद से सर्वाधिक अगर कोई राज्य प्रभावित हुआ है, तो वह है बिहार। विभिन्न प्रान्तों में मजदूरी-किसानी करनेवाले, ठेला-खोमचा से जिंदगी बसर करनेवाले, चाय-पकौड़े बेचनेवाले, विभिन्न घरों में पोछा का काम करनेवाले, छोटे से लेकर बड़े उदयोगों में बंधुआ मजदूरों की तरह जिंदगी काटनेवाले लोगों के उपर तो आफत ही आ गई। जो ये बिहारी मजदूर उनके लिए रोजमर्रा का काम आसान करते थे, उन बिहारियों पर ही लोगों ने गाज गिराना शुरु किया, देखते ही देखते, बिहारियों के लिए सिर्फ एक ही रास्ता सूझा कि अब उनके गांव छोड़कर दूसरे जगह रहना खतरे से खाली नहीं।

ट्रेन नहीं चल रही, बस नहीं चल रहा, घोड़ागाड़ी नहीं चल रहा, प्लेन तक बंद, ऐसी आफत कभी इन बिहारियों ने सोची नहीं और न देखी थी, पर अब करें तो क्या करें, वे पैदल ही चल पड़े अपने गांवों की ओर, बिहार की ओर, जो ठीक-ठाक थे, पैदल या साइकिल का सहारा लिया चलते गये, पहुंच गये और कई ऐसे थे, जो बीच में ही मर गये, परिवार का कंधा तक नहीं मिला, लाशें जिधर-तिधर सड़ गई।

इधर गांव में उनके परिवार के लोगों आशा देख रहे थे कि एक न एक दिन कोरोना का संक्रमण समाप्त होगा, फिर से घरों में खुशियां आयेगी, पर ये खुशियों पर अब उन्हें लग रहा है कि सदा के लिए विराम लग गया है। कमाल है गरीब मर रहे हैं, पर बिहार में ही अमीरों का एक तबका है, जो खुशहाल है, उसे इस कोरोना में भी कोई फर्क नहीं पड़ा है, क्योंकि उसे वो हर चीजें हासिल हैं, जो वह चाहता है, इनमें वे सब शामिल है, जैसे – नेता और नेता के चमचे, अभिनेता, पत्रकार, आइएएस/आइपीएस अधिकारी, और इन सब में जाति या धर्म पूछना बहुत बड़ी बेमानी है, क्योंकि ये सभी जाति व धर्म से उपर है, क्योंकि ये जानते है कि जाति व धर्म में अगर ये उलझे तो इनकी मस्ती भरी जिंदगी ही समाप्त हो जायेगी, इसलिए जिनको वे जाति व धर्म में उलझाया हैं, उनकी क्या हालत है, वो तो पूरा देश देख रहा हैं।

बिहार के लोगों को एक बात का खूब घमंड है, यह बिहार आइएएस बहुत ज्यादा प्रोडक्ट करता है, पर इन बिहारियों को इस बात के लिए लज्जा नहीं आती कि इन सबके बावजूद भारत के सभी राज्यों में दोयम दर्जे का काम बिहारी ही करते हैं, और उनके साथ बदसलूकी आम बात है। जहां भी देखिये, बिहारियों को लोग हेय दृष्टि से देखते हैं, वह भी तब जबकि आज से तीस साल पहले से लेकर अब तक बिहार में लोगों ने दो ही लोगों का शासन देखा है, एक लालू एंड फैमिली तो दूसरा नीतीश कुमार का, उसके बावजूद सबसे ज्यादा पलायन बिहार से, सबसे ज्यादा गालियां सुननेवाला, मार खानेवाला बिहार ही है।

जरा छाती पर हाथ धरकर यहां के नेता बोले और जो पत्रकार नीतीश में भगवान को ढूंढकर आज राज्यसभा के उपसभापति पद का परमानन्द प्राप्त कर रहे हैं, वे भी बताएं कि आखिर देश के विभिन्न राज्यों से श्रमिक स्पेशल एक्सप्रेस बिहार ही क्यों आ रही है? आखिर बिहार से मराठियों को लेकर कोई ट्रेन महाराष्ट्र क्यों नहीं जा रही?  या गुजरातियों को लेकर गुजरात क्यों नहीं जा रही? आखिर इन बिहारियों को दोयम दर्जे का नागरिक पूरे देश में किसने बनाया? क्या इसके लिए राज्य में सत्ता सुख भोग रहे नेता और उनके चमचे जिम्मेवार नहीं।

आखिर बिहार में ऐसा कोई अस्पताल क्यों नहीं बना, जहां दूसरे राज्यों से लोग आकर इलाज करा सकें आखिर बिहार के लोग अच्छी इलाज के लिए कोलकाता, दिल्ली, बेंगलूरु, चेन्नई या वेल्लोर क्यों भागते हैं? आखिर अच्छे एजूकेशन के लिए भी बिहार में अब तक माहौल क्यों नहीं बना, आखिर बिहार के बच्चे अच्छी शिक्षा के लिए दक्षिण भारत या दिल्ली या कोटा की सैर क्यो करते हैं? अरे तीस सालों से तो लालू और नीतीश को ही बारी-बारी से हम देख रहे हैं, क्या दिया इन नेताओं ने बिहार को। एक मामूली बारिश में तो पटना डूब जाता है, पटना नर्क हो जाता है, कैसा बना दिया पटना को? और कैसा बना दिया बिहार को?

आखिर बिहार में अमीर और गरीब का इतना फासला क्यों? आखिर बिहार में कोरोना के संक्रमण के शिकार अब तक नेता क्यों नहीं हुए, जबकि विदेशों में तो कई देशों के शासक में कोरोना संक्रमित हुए, आखिर बिहार में गरीबों पर ही कोई महामारी का जूल्म क्यों बढ़ जाता है? आखिर इनके हक का पैसा कौन लूट के ले जाता है? सवाल तो केन्द्र से भी हैं कि जब पीएम केयर फंड आपने बनाया, राज्य में मुख्यमंत्री राहत कोष है, उसके बावजूद भी दूसरे राज्यों से आनेवाले इन श्रमिकों को ट्रेन में भोजन क्यों नहीं मिल रहा, ट्रेन जाने के लिए कही और और पहुंच दूसरी ओर कैसे जा रही हैं? वह भी तब जबकि देश में रेल-सेवा पूरी तरह बंद है, ऐसी घटियास्तर का शासन तो लगता है कि विश्व के किसी देश में नहीं होगा? कि ट्रेन को जाना हैं, उत्तर और पहुंच जा रही हैं दक्षिण, जिस ट्रेन को 18 घंटे में अपने गंतव्य तक पहुंचना और उसे अपने गंतव्य तक पहुंचने में 72 घंटे लग जा रहे हैं, आखिर ये सब क्या है भाई?

सच पूछिये तो बिहारी नेताओं और उनके चमचों को चीन निर्मित-पोषित कोरोना ने नंगा कर दिया हैं, क्योंकि हमारे पास ऐसे कई सबूत है कि बिहारी नेताओं को कल तक चीन बहुत ही पसंद था, इन्होंने चीन की यात्रा भी की, चीन के स्तुति भी गाये, पर यह कभी नहीं देखा कि हम अपने बिहारवासियों के लिए और क्या बेहतर कर सकते हैं, और इन्हीं कारणों से अपनी बेहतरी के लिए बिहारियों से पलायन करना शुरु कर दिया, यह पलायन था – अच्छे स्वास्थ्य, अच्छी शिक्षा और अच्छी जिंदगी के लिए।

इन बिहारी नेताओं को शर्म नहीं आई, उस वक्त जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने साफ कहा कि बिहार से लोग पांच सौ रुपये का टिकट कटाकर ट्रेन से आते हैं और दिल्ली में बेहतर इलाज कराकर चले जाते हैं, क्या यही सब सुनने के लिए बिहारी बैठे हैं, आखिर प्रतिवर्ष जो करोड़ों का बजट बिहार विधानसभा से पारित होता हैं, वो किसके पेट में चला जाता है, आखिर उसके पेट कितने बड़े हैं, जो कभी भरता ही नहीं, बल्कि गरीबों को और गरीब बनाकर मार डालता है।

शर्म करो, बिहार के नेताओं, तुमने बिहार को क्या बना डाला? पूरा देश हंस रहा है, तुम्हारे उपर। कह रहा है कि पूरे देश से बिहारियों को ढोया जा रहा है, पर इसी कालखंड में किसी गुजराती या मराठी या दक्षिण के लोगों को नहीं ढोया गया और न ही कोई स्पेशल ट्रेन उनके लिए चलाई गई, ऐसा नहीं कि उनके लोग दूसरे राज्यों में नहीं रहते। रहते हैं, पर बिहारियों जैसे नहीं।

जाकर देखों बिहार में भी बहुत सारे मराठी-गुजराती रह रहे हैं, पर शान से रह रहे हैं, वो नहीं कर रहे, जो बिहारी दूसरे राज्यों में कर रहे हैं, आपने तो बिहार को सदा के लिए भूखा-नंगा बना दिया और भूखे-नंगे करेंगे क्या? जब भी इस प्रकार की विपदा आयेगी, इधर से उधर भटकेंगे, भगवान भरोसे घर आ गये तो ठीक, नहीं तो यमपुरी जाने से कौन रोक सकता है।

अगर आपमें थोड़ा सा भी शर्म हैं, तो सुधरिये, थोड़ा ईमानदारी दिखाइये, चले जाइये, दक्षिण भारत, सीखिये वहां किस प्रकार शासन चल रहा हैं, सीखिये कि आखिर महाराष्ट्र, गुजरात, दक्षिण भारत या पंजाब से ही लोगों का जत्था रोजी-रोटी के लिए बिहार क्यों नहीं आता? पर आप सीखेंगे हमें तो नहीं लगता? हमें तो लगता है कि आप इस कोरोना को भी कोरोना उत्सव का रुप देंगे और इसमें भी कोई न कोई घोटाला कर स्वयं और अपने परिवार को अनुप्राणित करेंगे, रही बात मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन जैसी घटना तो भाई गरीबों का क्या हैं, वे तो मरने के लिए ही बने हैं।