कहां राजा भोज यानी झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन और कहां गंगू तेली यानी IAS एपी सिंह
कमाल है एक राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन हैं, जो अपने लोगों को बचाने के लिए दिन-रात लगे हुए हैं और इसी राज्य का एक आइएएस एपी सिंह हैं, जो अपने ही लोगों को ट्रेन से कूद जाने की सलाह देता है। अब हम इसे, झारखण्ड के लिए सौभाग्य कहे या दुर्भाग्य, समझ नहीं आ रहा। आखिर ये राज्य कैसे आगे बढ़ेगा? वह भी तब जब यहां के आइएएस अधिकारियों के दिमाग में यहां के लोगों के प्रति इतनी गंदी विचारधारा ने जड़ जमा लिया है।
हमारे विचार से तो ऐसे लोगों को पहले विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता है, हमें तो यह भी आश्चर्य हो रहा हैं, जिन लोगों में सेवा की भावना ही नहीं हैं, ऐसे लोग भारतीय प्रशासनिक सेवा से कैसे जुड़ जाते हैं? आखिर कौन सी वो खामियां हैं, जिन खामियों को धत्ता बताते हुए, ऐसे लोग राज्य के उच्च पदों पर आसीन हैं, ऐसे लोगों पर हेमन्त सरकार को नकेल कसना ही होगा, नहीं तो यह राज्य हाथ से निकल जायेगा, और फिर सामंती प्रवृत्ति के लोगों का यहां कब्जा हो जायेगा, फिर उसके बाद वही होगा, जो उनकी सोच हैं, लोग भूखों मरेंगे या मार दिये जायेंगे।
जैसा कि ट्रेन में सवार एक प्रवासी मजदूर द्वारा अपना दुखड़ा रोने पर झारखण्ड के एक आइएएस एपी सिंह ने उसे ट्रेन से कूद जाने की सलाह दे डाली। कमाल इस बात की भी है, कि इस आइएएस के घृणास्पद बयान को किसी अखबार ने जगह नहीं दी, जबकि रांची से प्रकाशित अखबारों को देखिये तो गरीबों द्वारा किये गये जूर्म को तो बढ़ा-चढ़ाकर छाप देते हैं, पर इन आइएएस व धन्नासेठों के द्वारा किये गये कुकृत्यों को छुपा ही नहीं लेते, बल्कि उसे प्रकाशित भी नहीं करते।
ये तो सोशल साइट का युग है कि ऐसे आइएएस व धन्ना सेठों के कुकृत्य भी आम जनता के समक्ष आसानी से आ जा रहे हैं और ऐसे लोग जनता के सामने बेनकाब होते जा रहे हैं। कल की ही बात है कि लेह-लद्दाख में फंसे अपने झारखण्ड के भाई-बहन हेमन्त सरकार के प्रयास से विमान द्वारा रांची पहुंचे हैं, ये वो लोग हैं, जिन्होंने कल्पना भी नहीं की थी कि वे कभी विमान से यात्रा करेंगे, पर इस विपदा में कोई ऐसी भी सरकार आई है, जो सुविधा धन्ना सेठों को प्राप्त होती थी, अब वो मजदूरों को भी प्राप्त हो रही है।
कितनी खुशी की बात है कि एक राज्य का मुख्यमंत्री अपने हाथों से इन मजदूरों को भोजन करा रहा हैं, उनकी आवभगत में लगा है। राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के इस कार्य की सर्वत्र प्रशंसा हो रही है, साथ ही चर्चा इस बात की भी हो रही है, कि जिस राज्य में हेमन्त सोरेन जैसा मुख्यमंत्री है, वहां एक आइएएस की ऐसी जुर्रत कैसे हो गई कि एक मजदूर, जो भूख से लड़ रहा हैं, उसे सेवा उपलब्ध करने के बजाय, उसे यह कह दिया कि ट्रेन से कूद जाइये, क्या जब उसे भूख लगती हैं और उसे जब ट्रेन में भोजन नहीं मिलता हैं तो वह भी ट्रेन से कूद जाया करता है क्या?
ऐसा बोलते हुए, उसे लज्जा नहीं आई? क्या राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ऐसे आइएएस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करेंगे, जो झारखण्डियों के साथ इस प्रकार का व्यवहार या भाषा प्रयोग करता हो, अगर सचमुच ऐसे लोगों पर ये कार्रवाई करते हैं तो पूरे देश के मजदूरों में एक मैसेज जायेगा कि इसी देश में एक राज्य का ऐसा भी मुख्यमंत्री हैं, जो मजदूरों के अपमान को अपना अपमान समझता है, तथा ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई भी करता हैं, अगर कार्रवाई नहीं होती हैं, तो यह भी मैसेज जायेगा कि सरकार किसी की भी हो, कार्रवाई तो सिर्फ गरीबों, मजलूमों, असहायों के खिलाफ होती है, बड़े लोग तो गरीबों, मजलूमों व असहायों की इज्जत से खेलने के लिए ही पदासीन होते हैं।
अब फैसला राज्य के मुख्यमंत्री को करना है कि वे मजदूरों को सिर्फ भोजन करवायेंगे, या उन्हें सिर्फ झारखण्ड लायेंगे, या उन्हें सम्मान भी दिलायेंगे? फिलहाल सभी का ध्यान इसी ओर है, कि राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन क्या एक्शन लेते हैं? इसी प्रकरण पर राजनीतिक पंडितों का कहना है कि कहां राजा भोज यानी राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन और कहां गंगू तेली यानी राज्य के आइएएस अधिकारी एपी सिंह, भाई सोच में कुछ न कुछ परिवर्तन तो होगा ही, ये तो सोच, सोच की बात है, हर आदमी जैसा दिखनेवाला व्यक्ति आदमी ही हो, हम कैसे समझ लें?