भारतीयों द्वारा चीनी वस्तुओं के बहिष्कार से पस्त हुआ चीन, ग्लोबल टाइम्स ने अपने संपादकीय में शुरु किया रोना
भारत में चीन की गुंडागर्दी के खिलाफ एक स्वर से आवाज क्या उठी, कल तक भारत के खिलाफ हर जगह आग उगलनेवाले, भारत समेत कई देशों को आंख दिखानेवाले चीन की घिग्घी ही बंद होने लगी। अब उसके “ग्लोबल टाइम्स” भारतीय क्रिकेटर हरभजन सिंह, सोनम वांगचुक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, स्वदेशी जागरण मंच, तथा ऐसे ही सैकड़ों संगठन और लोगों के बयानों पर संपादकीय लिखने लगा है।
इस ग्लोबल टाइम्स को अब भारतीय संस्कृति का ध्यान आ रहा है, वो अपने संपादकीय में लिख रहा है कि भारत की संस्कृति कभी विरोध की नहीं रही, पर ये नहीं लिख रहा कि चीन की गुंडागर्दी की संस्कृति जो पिछले कई सालों से चली आ रही हैं, उस गुंडागर्दी की संस्कृति को चीन ने उतारकर फेंकने की कभी ईमानदार कोशिश नहीं की।
उसकी विस्तारवादी साम्राज्यवादी सोच पर विराम नहीं लगा, बल्कि जैसे-जैसे समय बीतता गया, वो बढ़ता ही चला गया। ग्लोबल टाइम्स का संपादक दुखी नजर आ रहा है, वो अपने संपादकीय में लिख रहा है कि चीन से भारत को जानेवाली वस्तुएं काफी अच्छी और सस्ती होती हैं, जो पश्चिम से आने पर भारतीयों को बहुत ही महंगी पड़ेगी। अरे भाई, हम भारतीयों को वो चीजें महंगी पड़े या सस्ती, तुम्हें इससे क्या मतलब?
लगातार भारत को धमकी देनेवाला चीन का ग्लोबल टाइम्स को आज इस बात का भी दुख है कि चीन से संबंधित घृणास्पद बातें इन दिनों भारत के सोशल साइट पर खुब लिखे जा रहे हैं, उसने भारतीयों के लिखे संवाद को अपनी संपादकीय में जगह दी हैं, पर वो अपनी गुंडागर्दी, भारत की जमीन को हड़पने की नापाक कोशिश, भारत के पड़ोसियों को कर्ज देकर भारत के खिलाफ भड़काने की साजिश पर लिखने से बच रहा है, जैसे लगता है कि भारतीयों को नहीं पता कि ग्लोबल टाइम्स कितना दुध का धुला है।
वह अपने संपादकीय में क्रिकेटर हरभजन सिंह और सोनम वांगचुक का भी जिक्र कर रहा है कि कैसे इन दो नामी-गिरामी भारतीयों ने चीन के खिलाफ लोगों को भड़काया और चीनी सामग्रियों के बहिष्कार करने की बात कही। ग्लोबल टाइम्स को इतना आघात लगा है कि वह चाइनीज एसोसिएशन फोर साउथ एशियन स्टडीज से जुड़े वांग देहुआ के बयान को उद्धृत करते हुए लिखा है कि वांग को इस बात का आश्चर्य हो रहा है कि भारत में कोविड 19 से हालत खराब है, उसके बावजूद चाइनीज प्रोड्क्टस के बायकाट की बात भारत में हो रही है, जो उसके पल्ले नहीं पड़ रही।
ये तो रही चीन के अंदर हो रही हलचल, पर यहां कुछ भारतीय क्या कर रहे हैं, जब पीएम नरेन्द्र मोदी ने चीन के खिलाफ आंख तरेरी तो एक स्वयं को लेखक व साहित्यकार बोलनेवाला रांची का एक व्यक्ति प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को “ललबबुआ” कह रहा हैं, यानी भारत में रहकर अपने ही प्रधानमंत्री के खिलाफ उसके मन में कितनी घृणा भरी पड़ी हैं, इसका अंदाजा लगाइये, जबकि सच्चाई यही है कि किसी भी देश में जब विपत्ति आती हैं तो कम से कम बुद्धिजीवी ऐसे समय पर शब्दों पर नियंत्रण रखते हैं तथा लोगों को भी धैर्य रखने तथा एकता के सूत्र में बंधकर देश के प्रधानमंत्री का साथ देते है, जैसा कि आज पीएम मोदी द्वारा सर्वदलीय बैठक के दौरान दिखा, देश की सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने भारत सरकार को इस मुद्दे पर समर्थन किया।
अब जरा एक और महिला पत्रकार व लेखिका को देखिये, वो क्या लिख रही है – “गर चाइना को पता चले कि भारत में इतने पुलते जलाए जा रहे हैं तो वो शी जिनपिंग के सुंदर-सुंदर पुतले बनाकर बेचना चालू कर देंगे।” पर आलोका कुजूर ने यह नहीं बताया कि जब भारत में चाइनीज वस्तुओं का बहिष्कार का दौर चल रहा हैं तो उसके इस सामान को बेचेगा कौन? कही वहीं या उनके जैसे और लोग इस काम के लिए कुछ सोच तो नहीं रहे। जरा सोचिये, आखिर हम कितना गिरेंगे? अरे भाई मोदी से घृणा करते-करते देश से कब से घृणा करने लगे, अगर बर्दाश्त नहीं हो रहा, तो थोड़ा शांत बैठ जाइये। कम से कम देश को मजाक तो मत बनाइये। देश के सैनिकों के सम्मान के साथ तो मत खेलिये।