का डीके पांडे बाबा पूर्व डीजीपी झारखण्ड, आप ये भी सब काम करते थे?
आज सुबह से ही अखबारों को देखने के बाद, झारखण्ड में हर चौक-चौराहों पर एक बात की चर्चा है, कि क्या झारखण्ड के पूर्व डीजीपी डीके पांडे, ये भी सब काम करते थे, जैसा कि उनके बारे में आज के अखबारों ने छापकर, उनका चरित्र चित्रण कर दिया। दरअसल, रांची से प्रकाशित आज सभी अखबारों ने पूर्व डीजीपी डीके पांडे के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को प्रमुखता से प्रकाशित किया है, पर दैनिक भास्कर ने थोड़ा इसमें जबर्दस्त रुचि दिखाई और पूर्व डीजीपी डीके पांडे को ले बैठा।
मतलब इस प्रकार से समाचार की हेडिंग लगाई, और उनकी बहू रेखा मिश्रा के आरोप को इस तरह से पेश किया, कि एक्स डीजीपी डीके पांडे की इज्जत की फलुदा निकल गई। अब प्राथमिकी दर्ज होने के बाद, उनके खिलाफ क्या एक्शन लिया जाता है, ये तो बाद की बात है, पर सबके जुबान पर एक ही बात है कि पूर्व डीजीपी डीके पांडे पर जो रेखा मिश्रा ने आरोप लगाया है, क्या वह सही हैं?
दैनिक भास्कर ने दावा किया है कि पूरी एफआइआर सिर्फ भास्कर के पास है। जैसा बहु रेखा मिश्रा ने एफआईआर में बताया, उसी के आधार पर उसने समाचार प्रकाशित किया है। हेडिंग है – “पति समलैंगिक… पूर्व डीजीपी ससुर ने दूसरों से संबंध बनाने को कहा, खुद भी संबंध बनाना चाहा” दूसरी सब हेडिंग है – “ससुर के रवैया से इतनी आहत हो गई थी कि आत्महत्या की सोचने लगी…”
अगर वह सही सिद्ध हो जाता हैं तो फिर जनाब जो डीजीपी रहते हुए महिला सशक्तिकरण की बात करते थे, उसका क्या हुआ होगा? अब तो चूंकि जनाब भाजपा की शरण में हैं, विधानसभा चुनाव के दौरान तो भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने के मूड में भी थे, पर हुआ ठीक उसके उलट, जिनको वे प्रिय मानते थे, वे ही इन्हें टिकट नहीं दिला सकें। अब तो भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं को भी जवाब देना होगा कि क्या उनकी पार्टी में ऐसी सोच वाले नेता रहते हैं, क्या इससे भाजपा का सम्मान बढ़ेगा?
आश्चर्य तो इस बात की है कि रेखा मिश्रा जो आरोप लगाई है, वो खुद भाजपा के कद्दावर नेता माने-जानेवाले गणेश मिश्रा की बेटी हैं, जो पूर्व में भाजपा के टिकट पर निरसा विधानसभा से चुनाव भी लड़ चुके हैं। रेखा मिश्रा खुद पत्रकार भी है, पत्रकारिता की डिग्री भी ली है और पत्रकारिता के संग-संग एक एनजीओ भी चलाती है।
ऐसे तो विवादों से डीके पांडे का हमेशा से नाता रहा हैं, कभी सांप को गले में लिपटा लेना, कभी अपनी पत्नी के नाम पर इक्यावन डिसिमल गैरमजरुआ जमीन लिखवा लेना, उस पर घर बना देना, कभी पद पर रहते हुए भाजपा के प्रवक्ता की तरह स्वयं को प्रस्तुत करते हुए प्रेस कांफ्रेस करना इनके कामों में शुमार था, पर जैसे लगता है कि फिलहाल बुरे ग्रहों की महादशा एक साथ इन पर चल पड़ी है।
शायद यही कारण है कि वर्तमान में उनकी पार्टी की सरकार भी नहीं है कि जिसका वे फायदा उठा सकें। वर्तमान में भाजपा की सरकार रहती भी तो फायदा वे उठा पाते, इसकी संभावना भी कम थी, क्योंकि एक्स डीजीपी हो जाने के बाद, उन्हें पूर्व की तरह कानूनी फायदा उठाने का मौका मिलता, इसकी संभावना कम ही थी, और वर्तमान में विशुद्ध हेमन्त सरकार चल रही हैं, जिसकी कार्यपद्धति पर आप अंगूली नहीं उठा सकते, अगर हेमन्त सरकार ने रेखा मिश्रा के आरोपों की सही जांच कर दर्ज प्राथमिकी के अनुसार कार्रवाई की खुली छूट दे दी, तो बेचारे डीके पांडे कही के नहीं रहेंगे।
लगता है कि इस बात की जानकारी आरोप लगानेवाली रेखा मिश्रा और उसके मनोबल को बढ़ानेवाले लोगों को अच्छी तरह पता है, नहीं तो जिस प्रकार के आरोप लगे हैं और जिस प्रकार की स्थितियां-परिस्थितियां जैसा कि रेखा मिश्रा ने अपने प्राथमिकी में बताई है, पूर्व डीजीपी डीके पांडे के खिलाफ तो पूर्व में ही प्राथमिकी दर्ज हो जानी चाहिए थी, पर सभी ने बड़ा ही मौका देखकर, या यो कहें कि सही मौके पर सही वार किया है, ताकि सही में न्याय मिल सकें। बात भी सही है, अगर रघुवर सरकार होती तो आरोप लगानेवाली रेखा मिश्रा को न्याय मिल पाता, इसकी संभावना कम थी, पर हेमन्त की सरकार चल रही हैं, न्याय मिलेगा, सभी के दिमाग में यही बात चल रही हैं।
एक्स डीजीपी डीके पांडे के इस हरकत पर राजनीतिक पंडितों का मानना है कि इससे भाजपा का नुकसान होना तय है, क्योंकि फिलहाल डीके पांडे भाजपा से जुड़े हैं और जो आरोप लगानेवाली है, वो खुद भाजपा नेता की बेटी है, ऐसे में भाजपा के लोग यह कहकर भाग नहीं सकते कि इस प्रकरण से उनका कोई लेना-देना नहीं हैं। फिलहाल प्राथमिकी तो दर्ज हो गई, लेकिन इसका परिणाम क्या निकला? फिलहाल सभी का ध्यान उसी ओर है।
डीके पांडेय जी को नजदीक से जानने वाले बताते हैं कि वे बेहद संजीदा, खुशमिजाज और बहुत हद तक ईमानदार पुलिस अधिकारी रहे हैं। पैसे के लेन-देन के आरोप कभी नहीं लगे। हां संबंध बनाने और निभाने के चक्कर में कई बार गलत काम हो गये उनसे। उसी में एक था भानू प्रताप शाही के वारंट को निरस्त कर गिरफ्तारी से बचाने वाला ऑडर, जिस पर हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया था। मैं खुद थोड़ा बहुत जानता हूं उनको। एक दो बार की मुलाकात-बात भी है। लेकिन इस प्रकरण ने उनकी जीवन भर की कमाई को मिट्टी में मिला दिया। अखबारों ने खबर लिखते समय बाकी पक्षों औऱ तथ्यों को दरकिनार किया। यह अच्छा नहीं है। यदि वाकई पतोहू के सारे आरोप सही हैं तो फिर जो कानूनी कार्रवाई बनती है, वो अवश्य होनी चाहिए। फिलहाल तो एक झटके में ही एक व्यक्ति की सारी इज्जत पर पानी फेर दिया गया है।