भारतीय प्रधानमंत्री, सेना और देश की जनता ने चीन को सिखाया सबक, चीनी सेना पीछे हटी, पूरे विश्व के सामने चीन हुआ बेइज्जत
भारतीयों की चट्टानी एकता, पूरे देश में चीनी सामानों के बहिष्कार, विभिन्न योजनाओं से चीनी कंपनियों को मिल रहे झटके, 59 चीनी एप्स की पूरे भारत में प्रतिबंध, लगातार भारत को मिल रही वैश्विक सहयोग, पीएम मोदी और भारतीय सेना द्वारा चीन को लगातार दी जा रही हर स्तर पर चोट आखिर रंग लाया, चीन अपने सैनिकों को गलवान घाटी से हटाने को मजबूर हुआ।
आज उसके सैनिक गलवान घाटी से करीब दो किलोमीटर दूर चले गये, तथा स्वयं के द्वारा बनाये गये अस्थायी टेंट को भी हटा लिया। शायद, इसीलिये किसी ने कहा है कि झूकती है दुनिया, झूकानेवाला चाहिए, हालांकि चीन एक ऐसा घटियास्तर का देश हैं, जिस पर आप सहज विश्वास नहीं कर सकते, इसलिए भारतीय सेना को चीनी सैनिकों पर, तथा पीएम मोदी को अपने समकक्ष शी जिनपिंग पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए।
दरअसल चीन को मालूम हो चुका था कि अगर अब भारत से वह ज्यादा तनाव रखता है, तो उसकी हालत धीरे-धीरे और पस्त होगी, क्योंकि पूरे विश्व में कोरोना को लेकर चीन की थू-थू हो रही है। भारत और अपने पड़ोसियों के साथ कटुतापूर्ण व्यवहार से भी विश्व के कई देश चीन से नाराज है। इधर भारत ने आर्थिक चोट क्या पहुंचाई, चीन को समझ में आ गया कि उसकी भी स्थिति भिखमंगे की होने में अब देर नहीं, क्योंकि कोरोना के बाद से चीन से कई देशों ने अपनी दूरियां बनाई और चीन को झटके पर झटके देते चले गये।
इधर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा दो दिन पूर्व लद्दाख पहुंचकर बिना चीन का नाम लिए, जो उन्होंने उसका नाम विस्तारवादी रखा, उससे चीन का तिलमिलाना स्वाभाविक था, शायद यही कारण था कि उसकी सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। इधर भारत और चीन के सैन्य अधिकारियों के द्वारा चल रहे वार्ताओं पर भी जिस प्रकार भारत ने अपना पक्ष कड़ाई से रखा, चीन को समझ में आ गया कि इस बार उसकी दाल गलनेवाली नहीं, इसलिए पीछे हटने में ही भलाई है।
आज चीन की स्थिति इतनी खराब है कि गलवान घाटी से पीछे हटने के बाद भी भारत और चीन के संबंध पूर्व की तरह जल्द होनेवाले नहीं हैं, क्योंकि भारतवासियों के दिलों में चीन और चीन की सरकार के प्रति इतनी घृणा भर गई है, कि उस घृणा से इतनी जल्दी मुक्ति चीन को मिलनेवाली नहीं और न केन्द्र सरकार या राज्य सरकार की हिम्मत है कि चीन के साथ पूर्व की तरह रिश्ते कायम कर सकें, क्योंकि अब स्थिति बहुत बिगड़ चुकी है।
ऐसे भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लद्दाख जाकर जिस मजबूती से अपनी बात विश्व के मानस पटल पर रखी और अपनी सेनाओं के मनोबल को बढ़ाया, उससे चीन की धड़कन बढ़नी स्वाभाविक थी। आश्चर्य तो पाकिस्तान और नेपाल को हो रहा हैं, इन दोनों देशों और यहां के मीडिया को लग रहा था, कि चीन भारत पर आक्रमण करेगा और भारत की स्थिति डांवाडोल हो जायेगी, उसके बाद वे अपने मनमुताबिक काम भारत से करवायेंगे, पर वे भूल गये कि आज देश में एक मजबूत सरकार है और उसे भारत की जनता का अप्रत्याशित आशीर्वाद प्राप्त है। आज चीनी सेना के सीमा से पीछे हटने की खबर से निश्चय ही उन्हें हैरानी हुई होगी, वे पागल हो गये होंगे, कि ये क्या हो गया? लेकिन इनकी कितनी औकात है, उन्हें भी पता है।
इधर विश्व के कई देशों ने चीन के प्रति कड़े रुख अपनाने के लिए भारत के स्टैंड को समर्थन कर दिया, शायद चीन को इसी बात का अंदाजा नहीं था कि ऐसा भी हो सकता है। अमरीका, रुस, फ्रांस, ब्रिटेन समेत कई देशों के भारत के रुख का समर्थन करने से चीन की जो फजीहत हुई हैं, वो लगता है कि आनेवाले समय में कई सालों तक इस फजीहत को चीन याद रखेगा।