अपनी बात

हेमन्त का एक क्रांतिकारी फैसला, जिसने झारखण्डियों/आदिवासियों में नये सपनों के बीज बो दिये

जब हेमन्त सोरेन ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में इस बात का जिक्र किया था, तब सभी ने उनका मजाक उड़ाया था, और कहा था कि यह संभव नहीं, पर हेमन्त सोरेन ने जो पिछले दिनों फैसला लिया, उस फैसले ने झारखण्डियों/आदिवासियों में नये सपनों के बीज बो दिये।दरअसल झारखण्ड के निर्माण के बाद या उसके पूर्व तक आदिवासियों व झारखण्डियों के ठेकेदारी वाले कार्यों में वो स्थान प्राप्त नहीं था, जो बाहरियों को आराम से मिल जाया करता था।

आम तौर पर राजनीतिक दलों व आइएएस अधिकारियों से जुड़े बाहुबलियों की ही इसमें चलती थी, जिसमें झारखण्डी न के बराबर थे। हालात तो यह थी कि मिट्टी झारखण्ड का, पैसा झारखण्ड का और बिहार, छत्तीसगढ़ तथा अन्य राज्यों के ठेकेदारों की खुब चलती थी, ये ठेकेदार स्वयं अपने बाहुबल तथा अथाह अकूत संपत्तियों के आधार पर ठेके पर कब्जा कर लेते और अपनी जातियों व अपने जातियों के पत्रकार के साथ घुल-मिलकर अपनी उल्लू सीधा करते।

शायद इसी बात की जानकारी हेमन्त सोरेन के पूर्व में थी, इसलिए उन्होंने फैसला किया कि वे झारखण्डियों को उनका हक दिलवाकर रहेंगे और लीजिये नियमावली में बदलाव किया गया, तथा भवन निर्माण विभाग में 25 करोड़ तक ठेका स्थानीय ठेकेदारों को देने की बात कर दी गई, यही नहीं उसमें भी आरक्षण लागू किया गया, आदिवासियों को प्राथमिकता देने की बात कर दी गई, जो जरुरी भी था।

हालांकि इसको लेकर कुछ लोगों में गुस्सा हैं, ये गुस्से में वे लोग हैं, जिन्होंने जमकर अब तक इसका लुफ्त उठाया है, पर अब वे ऐसा मजा उठा पायेंगे, इसकी संभावना दूर-दूर तक नहीं दिखती। मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने भवन निर्माण विभाग के द्वारा पेश प्रस्ताव को मंजूरी दे दी हैं, अब मामला कैबिनेट में जायेगा और वहां इसे एप्रूव कर दिया जायेगा। इसमें कहा गया है कि निविदा की दर समान होने पर जाति के आधार पर चयन होगा, पहले आदिवासियों को मौका दिया जायेगा। किसी भी निविदाकार को एक वित्तीय वर्ष में एक ही बार निविदा आवंटन में प्राथमिकता मिलेगी।

सरकार ने इसके लिए स्थानीयता की शर्ते पूरी करने को भी कहा है। निविदाकार के प्रोपराइटरशिप फर्म होने की स्थिति में प्रोपराइटर का  स्थायी पता झारखंड का होना चाहिए l निविदाकार के पार्टनरशिप फर्म होने की स्थिति में पार्टनरशिप फर्म का निबंध निबंधित कार्यालय झारखंड राज्य का होना चाहिए l प्राइवेट लिमिटेड कंपनी का निबंधन कार्यालय झारखंड राज्य में होना चाहिए l यदि निविदा में भाग लेने वाली कंपनी किसी अन्य कंपनी की सब्सिडियरी कंपनी है तो होल्डिंग कंपनी का निबंधन भी झारखंड राज्य का होना चाहिए l ज्वाइंट वेंचर द्वारा निविदा में भाग लेने की स्थिति में ज्वाइंट वेंचर के लीड पार्टनर का स्थायी पता झारखंड राज्य का होना चाहिए l 

संवेदको / निविदाकारों को उपरोक्त का लाभ लेने के लिए अपने निबंधन प्रमाण पत्र में पता बदलने की अनुमति नहीं होगी l साथ ही संवेदको / निविदाकारों को  उपायुक्त/अनुमंडल पदाधिकारी/ सक्षम प्राधिकार से निर्गत स्थानीय निवासी प्रमाण पत्र और जाति प्रमाण पत्र अपलोड समर्पित करना अनिवार्य होगा l

यानी इस बार कुल मिलाकर ऐसी स्थिति बना दी गई, कि अब ऐसे लोगों की नहीं चलेगी, जो पहले अपने राजनीतिक आकाओं या आइएएस अधिकारियों की कृपा से अपनी स्थिति मजबूत कर लेते थे, हालांकि आदिवासियों का कहना है कि केवल भवन निर्माण विभाग ही क्यों? ऐसी व्यवस्था हर विभाग में लागू होना चाहिए, जबकि राजनीतिक पंडितों का मानना है कि अभी एक विभाग में शुरुआत हुई हैं, देखियेगा आगे हर विभाग में यह देखने को मिलेगा, क्योंकि पहली बार किसी मुख्यमंत्री ने क्रांतिकारी फैसले लेकर झारखण्डियों को उनका हक देने में पहला कदम बढ़ा दिया है।