अपनी बात

अगर आप राजनीति में रुचि रखते हैं तो ए के राय बनिये, तभी आप झारखण्ड और खुद को बेहतर बना सकते हैं

अगर आप राजनीति में रुचि रखते हैं तो ए के राय बनिये, तभी आप झारखण्ड और खुद को बेहतर बना सकते हैं। आज ए के राय की प्रथम पुण्यतिथि है। आज ही के दिन सुप्रसिद्ध वामपंथी चिन्तक, विचारक, राजनीतिज्ञ एवं एक बेहतर इन्सान ए के राय का धनबाद के केन्द्रीय अस्पताल में निधन हो गया था। आज का दिन, उनके उपर शोध करने तथा उनके विचारों को अपनाने का दिन है, क्योंकि एक अच्छा राजनीतिज्ञ वही हो सकता है, जो एक अच्छा इन्सान हो।

मैं जब धनबाद में दैनिक जागरण के रुप में पहली बार 2000 में जुड़ा तो उनसे हमारी पहली बार भेंट हुई थी, बाद में जब ईटीवी धनबाद से जुड़ा, तो चूंकि पहले से उनसे हमारी मुलाकात थी, बाद में और उनसे घनिष्ठ हो गया। घनिष्ठता का मूल कारण, उनकी सादगी, देशभक्ति, मानवीय मूल्यों और राजनीति में शुचिता के प्रति उनका समर्पण था। मेरा मानना था कि हर व्यक्ति को ए के राय जैसा होना चाहिए। तीन-तीन बार सांसद और तीन-तीन बार विधायक, न वेतन और न ही पेंशन, उसके बावजूद एक छोटे से कमरे में सादगी से जीवन बिता देना, अगर कोई सीखना चाहे तो ए के राय से सीख सकता है।

तीन-तीन बार सांसद व तीन-तीन बार विधायक होने के बावजूद नेता होने का घमंड नहीं, ये भी ए के राय से सीखा जा सकता है, जबकि यहां तो एक बार लोग वह भी किसी की कृपा से राज्यसभा में पहुंच जाते हैं तो देखिये उनका घमंड आठवें आसमान पर हो जाता है। इसी झारखण्ड में, मैंने एक पत्रकार को देखा हैं, जो वर्तमान में राज्यसभा में हैं, अखबार में जब थे तो खुब चरित्र पर लिखा करते थे, पर मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि वे भी ए के राय जैसी जिंदगी नहीं जी सकते, क्योंकि ए के राय बनते नहीं, बल्कि पैदा होते हैं।

एक बार ए के राय साहेब को हमने देखा कि वे रांची से धनबाद लौट रहे थे, सामान्य से डिब्बे में बैठे थे, कोई उन्हें जानता भी नहीं था कि ए के राय है, और वे सादगी के साथ साधारण टिकट पर रांची से धनबाद तक पहुंच गये, उन्हें लेने के लिए एक उनके लोग धनबाद जंक्शन पर पहुंचे और उनके साथ वे पैदल ही अपने कोठरी तक निकल गये। क्या आज के युग में कोई नेता ऐसा करता है?

जरा ए के राय की एक बानगी देखिये, जब हमने पूछा कि दादा आप चुनाव में खड़े हुए और कंट्रोल रुम की सुध नहीं ले रहे,  उनका कहना था कि हमनें चुनाव लड़ा, जनता ने वोट दिया या न दिया, जनता जाने, कंट्रोल रुम की जिम्मेवारी निर्वाचन आयोग की है, वो समझे। हमें अपनी व्यवस्था पर कोई संदेह नहीं, जो परिणाम होगा हमें ग्राह्य होगा।

एक दुसरी बानगी देखिये, एक दिन एक दुकानदार उनके पास आया और कहा कि वो फुटपाथ पर दुकान चलाता है, प्रशासन ने उसके दुकान को खाली करने का आदेश दिया है, आप हमारी मदद करें, उन्होंने उस दुकानदार से साफ कहा कि वो गलत का समर्थन कभी नहीं करेंगे, फुटपाथ लोगों के चलने के लिए होता है, आप को खुद फुटपाथ खाली कर देना चाहिए, ऐसे भी आप इतने सशक्त है कि आप स्वयं बेहतर खुद को बना सकते हैं, आपने फुटपाथ कब्जा कर अपराध किया है, इसलिए माफ करिये, हम आपकी कोई मदद नहीं कर सकते, रही बात वोट देने की, तो आप मत दीजियेगा, हमें कोई मतलब नहीं, ऐसे वोटरों और ऐसे वोटों का।

तीसरी बानगी देखिये, जिला स्कूल में मार्क्सवादी समन्वय समिति की रैली थी, ए के राय को अंतिम में भाषण देना था, कुछ प्रेस के फोटोग्राफर बीच में चिल्लाने लगे कि ए के राय और मासस के अन्य नेता खड़े हो जाये, फोटो लेना है, इधर कुछ फोटोग्राफर यह भी कहने लगे कि सभी नेता हाथ उठाए, फिर क्या था? ए के राय ने प्रेस फोटोग्राफरों को सीधे कहा कि आपको फोटो लेना हैं लो, नहीं तो रास्ता नापो, अब आप हमें कहोगे कि हमें कैसे फोटो खीचानी है? आप डिसाइड करोगे, आप अपना काम करो और हमें अपना काम करने दो।

ऐसे थे राय साहेब यानी खुलकर सच्चाई को अपनाना और उसे जनता के बीच रखना, कोई उनसे सीखे। एक बार जब झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन पर हत्या के आरोप लगे, उन्होंने कहा कि वे कभी मान ही नहीं सकते कि शिबू सोरेन ने ऐसा किया होगा, क्योंकि वे शिबू सोरेन को आज से नहीं, बहुत दिनों से जानते हैं, वो सब कुछ कर सकता है, पर किसी की हत्या नहीं, वो तो क्रांति के पेट से उपजा एक नेता है, हम मासस में हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि हम दूसरे राजनीतिक दलों के नेताओं को बेवजह गलत ठहरा दें।