सुप्रीम कोर्ट ने एमवी राव से संबंधित याचिका क्या खारिज की, भाजपा नेता और एक अखबार की सिट्ठी-पिट्ठी गुम हो गई
आज भाजपा के बड़े-बड़े नेताओं की ही नहीं, बल्कि झारखण्ड के वर्तमान डीजीपी एमवी राव से खार खाये कट्टर भाजपा समर्थक एक अखबार व अन्य पत्रकारों की भी नजर दिल्ली स्थित सर्वोच्च न्यायालय पर थी, क्योंकि आज एमवी राव से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई थी। सभी को भरोसा था कि हेमन्त सरकार के निर्णय के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आयेगा।
क्योंकि हेमन्त सरकार और एमवी राव के खिलाफ पिछले कई दिनों से एक अखबार रायता फैलाये जा रहा था, जिस रायता के आधार पर भाजपा का एक बड़ा नेता खुब अपने सोशल साइट पर दिये जा रहा था, पर ये क्या? यहां तो सब कुछ उलटा हो गया। सर्वोच्च न्यायालय ने तो याचिका ही खारिज कर दी, और जो सबके मन में लड्डू फूट रहे थे, वो लड्डू ही विषाक्त हो गया।
आश्चर्य की बात है, अब ऐसी-ऐसी बातों पर भी लोग सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा रहे हैं, जिसे सुनकर कई लोग आश्चर्यचकित थे। राजनीतिक पंडितों की मानें, तो ये पूरा मामला हेमन्त सरकार के कार्याधीन था, कौन राज्य में डीजीपी होगा और कौन वहां नहीं होगा, इसका निर्णय पूर्णतः सरकार को लेना है, और रही बात जनहित याचिका किसके लिए? जनहित याचिका उसके लिए जिससे जनहित जुड़ा हो।
जिस याचिका से किसी व्यक्ति विशेष का हित जुड़ा हो, भला वो जनहित याचिका कैसे हो सकता है? सर्वोच्च न्यायालय ने इस याचिका को खारिज कर, मामले को निष्पादित घोषित कर पूर्व डीजीपी कमल नयन चौबे, भाजपा नेता निशिकांत दूबे और एक अखबार की एक तरह से घिग्घी ही बंद कर दी।
जरा देखिये, भाजपा का होनहार, तेज-तर्रार व चटक सांसद निशिकांत दूबे एक अखबार की कटिंग सोशल साइट पर डालकर क्या लिख रहा है – “अगर प्रदेश के डीजीपी को ही कानून की रक्षा के लिए कोर्ट जाना पड़े तो आम जनता की भला कौन पूछनेवाला है। झारखण्ड सरकार ने नियम कायदे को ताक पर रखकर डीजीपी को हटाकर मनमानी करने पर उतारु है। क्योंकि सरकार तो कानून से उपर है?” अब चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय दे दिया तो भाजपा का यह सांसद निशिकांत खुद बता दें कि सरकार कानून से ऊपर है या वे खुद ही स्वयं को सबसे उपर समझ रहे हैं?
निशिकांत का दूसरा पोस्ट देखिये, जो 25 जुलाई को उन्होंने फेसबुक पर पोस्ट किया – डीजीपी साहब मेरे पुराने मित्र (अब जानकर) हैं। मैं इन्हें 1990 से जानता हूं, जब यह भागलपुर में प्रस्थापित थे। रघुवर दासजी की सरकार में भी मैं ही इनका मददगार था। मुख्यमंत्री जी इनको लटका के क्यों रखे हैं, आपको भी पता है कि कानूनन इनको आप स्थाई डीजीपी बनाने की स्थिति में नहीं हैं।
यानी इनके दिमाग में कितनी घृणा एक वरीय पुलिस अधिकारी एमवी राव के प्रति है, और वे किस प्रकार कमल नयन चौबे को पुनः डीजीपी पद पर आरुढ़ होता हुआ देखना चाहते है, समझा जा सकता है। और जिस अखबार की ये कटिंग बार-बार डाल रहे हैं, अगर अखबारों के प्रिंटिंग देखकर पकड़ सकते हैं तो पकड़ियें कि यह अखबार कौन सा है, हम आपको बता दें कि यह अखबार भारतीय जनता पार्टी के प्रति पूर्णतः समर्पण की भावना रखता है।
अब चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने याचिका रद्द कर दी, तो जिनको जो फजीहत होना था हो ही गया, अब तो स्थिति इनकी ऐसी है कि ये विधवा प्रलाप भी नहीं कर सकते, शायद यही कारण है कि जनाब के नये पोस्ट इस संबंध में अब तक नहीं आये हैं, क्योंकि अब वे अच्छी तरह जानते है कि सर्वोच्च न्यायालय के बाद, अब कोई ऐसी जगह नहीं, जहां इनकी अब सुनवाई हो और इन्हें राहत मिल सकें, फिलहाल हेमन्त सरकार और एमवी राव को बधाई, क्योंकि उन्हें वो चीज प्राप्त हुआ, जिसकी आवश्यकता थी, जनता ने भी राहत की सांस ली, उन्हें बेहतर प्रशासन देखने को मिलता रहेगा।