राज्यपाल के समक्ष झारखण्ड के सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने ‘नई शिक्षा नीति’ को सराहा, माना कि इससे विद्यार्थियों और भारत का भविष्य संवरेगा
राज्यपाल-सह-राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि अधिक-से-अधिक लोग उच्च शिक्षा ग्रहण कर सकें, उन्हें गुणात्मक एवं शोधपरक शिक्षा सुलभ हो। इस दृष्टि से नई शिक्षा नीति- 2020 पंचायत से संसद तक विमर्श के उपरांत हमारे समक्ष आई है। इसमें विद्यार्थियों की आवश्यकताओं एवं रूचि का ख्याल रखा गया है। इसमें पढ़ाई, शोध के साथ अन्य गतिविधियों कला, संस्कृति, खेलकूद का भी ध्यान रखा गया है।
इस शिक्षा नीति के माध्यम से सभी वर्गों तक उच्च शिक्षा पहुँचाने का प्रयास किया गया है। इस शिक्षा नीति के माध्यम से व्यवसायिक/रोजगारपरक शिक्षा की दिशा में भी ध्यान दिया गया है। कहा जाय तो इस शिक्षा नीति के माध्यम से शिक्षा जगत में कई व्यापक पहल किये गये हैं, जिसे सकारात्मक मूर्तरूप प्रदान करना हमारे शिक्षण संस्थानों का अहम दायित्व है। हमारे शिक्षण संस्थानों से अपेक्षा है कि विद्यार्थियों से बेहतर संवाद स्थापित कर उन्हें कर्तव्यपथ पर चलने हेतु प्रेरित करें।
राज्यपाल ने दिनांक 7 सितम्बर, 2020 को राष्ट्रपति द्वारा विडियोकॉन्फ्रेसिंग के माध्यम से विभिन्न राज्य/केन्द्र शासित प्रदेशों के राज्यपालों/उप-राज्यपालों/प्रशासकों के साथ ‘‘नई शिक्षा नीति- उच्च शिक्षा में परिवर्तन’’ पर चर्चा से पूर्व आज इस विषय पर राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपतियों/प्रतिकुलपतियों से विडियोकॉन्फ्रेसिंग के माध्यम से राय एवं प्रतिक्रिया ले रही थी। विडियोकॉन्फ्रेसिंग के माध्यम से आहुत इस समीक्षा बैठक में राज्यपाल के प्रधान सचिव-सह-प्रधान सचिव, उच्च एवं तकनीकी शिक्षा शैलेश कुमार सिंह, राँची विश्वविद्यालय, विनोबा भावे विश्वविद्यालय, सिदो कान्हु विश्वविद्यालय, नीलाम्बर-पीताम्बर विश्वविद्यालय, कोल्हान विश्वविद्यालय, विनोद बिहारी महतो कोयलाचंल विश्वविद्यालय के कुलपति एवं प्रतिकुलपति तथा डा0 श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के कुलपति और झारखंड राज्य तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति मौजूद थे।
राज्यपाल ने कहा कि नई शिक्षा नीति में सभी वर्गों, नारी शिक्षा पर बल देने के साथ समावेशी शिक्षा की ओर ध्यान दिया गया है। मातृभाषा का ध्यान रखा गया है। इसके साथ डिजिटल एजूकेशन पर भी बल दिया गया है। हमारे विद्यार्थी इस प्रतिस्पर्धा के युग में विश्व में अपना कैसे अहम स्थान बना पायें, इसका प्रयास किया गया है। भारत को पुनः विश्वगुरू के रूप में स्थापित करना है। यह हम सभी का सपना है।
प्रधानमंत्री ने इस ओर गंभीरता से ध्यान देते हुए ऐसी अनुकूल शिक्षा नीति की पहल की। इसके लिए केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री एवं आयोग के अध्यक्ष श्री कस्तूरीरंगन बधाई के पात्र हैं। इस अवसर पर राँची विश्वविद्यालय के कुलपति ने कहा कि यह शिक्षा नीति 21वीं सदी की प्रथम नीति है जो शिक्षा के क्षेत्र में हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। यह मैकाले के प्रभाव से मुक्त ग्राम पंचायत तक के सुझावों से प्राप्त कर बनाया गया है। नई शिक्षा नीति में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति सहित सभी वर्गों की शिक्षा पर ध्यान दिया गया है। इसमें नवीन अनुसंधान पर बल देने के साथ, सकल घरेलू उत्पाद छः प्रतिशत व्यय करने का लक्ष्य रखा गया है।
यह राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को समृद्ध करने में भी सहायक होगा। ऐसी शिक्षा नीति झारखण्ड की कला-संस्कृति को समृद्ध करेगा। विनोबा भावे विश्वविद्यालय के कुलपति ने कहा कि वर्तमान में हमारी उच्च शिक्षा की गुणवत्ता संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य विकसित देशों जैसी नहीं है। अनुसंधान कार्य उत्तम नहीं है। ऐसे में यह शिक्षा नीति अहम हो सकता है, हमारे उच्च शिक्षण संस्थानों को सकारात्मक कदम उठाने होंगे। विनोद बिहारी महतो कोयलाचंल विश्वविदयालय के कुलपति ने कहा कि नई शिक्षा नीति भारत की मिट्टी से जुड़ा है। नई शिक्षा नीति में महाविद्यालय की ऑटोनोमी पर ध्यान दियागया है। विश्वविद्यालय को भी तीन श्रेणी में विभक्त किया गया है। आई.आई.टी. और आई.आई.एम. जैसे शिक्षण संस्थान और खुलेंगे। मिशन नालंदा और मिशन तक्षशिला की बात कही गई है।
डा0 श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के कुलपति ने कहा कि यह शिक्षा नीति पारंपरिक भारत में शोध पर आधारित है। हमारा देश विविधताओं का देश है। यहाँ भौगोलिक,भाषाई, रीति-रिवाज़ में भिन्नता है। इसके अंतर्गत मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करना सराहनीय है। व्यवसायिक शिक्षा पर भी बल दिया गया है। इस नई शिक्षा नीति के माध्यम से अनुसंधान के द्वारा लोकल से ग्लोबल और लोकल के वोकल पर भी जोर दिया गया है। कोल्हान विश्वविद्यालय के कुलपति ने विभिन्न शिक्षा आयोगों और नीतियों पर चर्चा करते हुए कहा कि इसके अंतर्गत UGC और AICTE को एकीकृत किया गया है।
कौशल विकास पर भी ध्यान दिया गया है। इसमें सभी कलाओं होटल मैनेजमेंट से लेकर ब्यूटी पार्लर तक की कलाओं का ध्यानरखा गया है। चार वर्षीय डिग्री के मध्य बच्चे यदि किसी कारणवश बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं तो उन्हें उनकी अवधि के मुताबिक कोई न कोई डिग्री अवश्य मिलेगी ताकि वे रोजगार हासिल कर सकें। शिक्षण में सिद्धांत और प्रायोगिक पर बल दिया गया है। नीलाम्बर-पीताम्बर विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा कहा गया कि इस शिक्षा नीति में प्राचीन और नवीन शिक्षा पर जोर दिया गया है। नये शिक्षण संस्थान खुलेंगे। ये शिक्षा नीति हमारे राज्य के लिए वरदान होंगे, जहाँ विद्यार्थी मातृभाषा में शोध कर सकेंगे। इस शिक्षा नीति के माध्यम से सभी भारतीय भाषाओं के उत्थान पर बल दिया गया है।
सिदो कान्हु मूर्मू विश्वविद्यालय के कुलपति ने कहा कि यह शिक्षा नीति ससमय है। इसमें उच्च शिक्षा में परिवर्तन और गुणात्मक बनाने की बात कही गई है। इसके अंतर्गत सीखने वाले की इच्छा का भी ध्यान रखा गया है। व्यवसायिक व वाणिज्यिक शिक्षा और बहुआयामी बनेगा। इसके माध्यम से अन्वेषणात्मक विचार एवं शोध को विकसित करने पर बल दिया गया है। सीखने वाले की इच्छा के अनुसार पढ़ाई के अतिरिक्त अन्य गतिविधियों यथा- खेलकूद, कला-संस्कृति आदि की बात कही गई है। विश्वविद्यालय भी सबल बनेगा ताकि इसका कार्यान्वयन किया जा सके।
झारखंड राज्य तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति ने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य अच्छे इंसान बनाना है, जिसके पास नेक सोच हो, सामाजिक, सैद्धांतिक एवं नैतिक मूल्य हो। छात्र-शिक्षक के मध्य संवादहीनता को दूर करना होगा। शिक्षक समाज का निर्माण करता है। वे बच्चों को अच्छी शिक्षा दें तथा समर्पित भाव से पढ़ायें। उन्होंने कहा कि मैकाले की शिक्षा नीति भारत में प्रासंगिक नहीं थी। इस शिक्षा नीति से देश नई ऊँचाइयों को छूएगा। उन्होंने कहा कि हम सभी को आज भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय को अपना आदर्श एवं प्रेरणास्रोत बनाना होगा, जिन्होंने अपनी लगन और निष्ठा से बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय को समर्पित भाव से एक आदर्श विश्वविद्यालय के रूप में खड़ा कर दिया।