अपनी बात

राजदीप ने किया पत्रकारिता को शर्मसार, जिम्मेदार पत्रकारों ने ‘आजतक’ व ‘राजदीप’ को लानत भेजी

ये नये युग की पत्रकारिता है। अब पत्रकार मानवीय मूल्यों की बात नहीं करता। वह यह देखता है कि उसने जो अपनी पत्रकारिता जगत में जगह बनाई है। उस जगह की देश या राज्य की कोई पार्टियां, उसके लिए आर्थिक रुप से क्या मूल्य तय की है? वह यह देखता है कि क्या उसने जो आर्थिक रुप से मूल्य तय की है या कोई पोस्ट निर्धारित किया है, उसके वर्तमान से मेल खाता है या नहीं, और जब मेल खा जाती है तो वह नेताओं के इशारों पर उछलने लगता है, वो दिल्ली से मुंबई तक की दौर लगा देता है, वह रिया जैसी अभिनेत्रियों के चरण कमलों के आगे नतमस्तक हो जाता है और वह सब करता है, जिसके लिए पत्रकारिता में कोई स्थान नहीं हैं।

इस प्रकार की हरकतों में राजदीप सरदेसाई कोई अकेला नहीं, ऐसे लोगों की अब तो जमात खड़ी हो गई हैं, इस जमात के लोग तो आज संसद में भी बैठने लगे हैं और गर्व से स्वयं को पत्रकार और पत्रकारिता से जोड़ने की हिमाकत भी करते हैं, जबकि वर्तमान में ऐसे भी कई पत्रकार हैं, जिन्होंने अनेक यातनाओं को सहा पर उफ्फ तक नहीं की, लड़ते रहे और आज भी शान से अपने जीवन को नई दिशा दे रहे हैं, ऐसे पत्रकारों को मैं आज भी सलाम करता हूं, उन्हें जानता हूं, अभिनन्दन करता हूं।

फिलहाल कल से राजदीप सरदेसाई चर्चा में है। चर्चा इसलिए कि इन्होंने कुछ ही दिन पहले सुशांत सिंह राजपूत को छोटा-मोटा कलाकार कहकर उसको लेकर चल रही न्यूज और सोशल साइट पर चर्चे पर उसने घटिया स्तर के संवाद बोले थे और कल वह वहीं काम कर दिया, जिसको लेकर पूरा देश उसके चेहरे पर आक् … कर रहा हैं, पर उसके बावजूद उसे शर्म आयेगी, हमें नहीं लगता, क्योंकि जो बेशर्म होते हैं, वे बहुत ही ढीठ होते हैं, उनकी चमड़ी मोटी होती है, उनकी त्वचा पर इस प्रकार की आलोचना या अपमान का कोई खास असर नहीं पड़ता।

ऐसे भी राजदीप सरदेसाई की यह कोई पहली बार बेइज्जती नहीं हुई हैं। उसकी बेइज्जती कई बार हुई है। उसे बेइज्जत करनेवालों में अमेरिकन एनआरआई जनता से लेकर भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के राज ठाकरे जैसे लोगों की एक बहुत बड़ी शृंखला है, पर उसे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उसका मानना है कि वो घटिया है, इसलिए घटिया लोगों को सत्य या बेहतर इन्सान तो होना ही नहीं, तो जो हैं, उसी को क्यों न कंटीन्यू करें, इसलिए उसने “आजतक” के मठाधीशों व राजनीतिज्ञों के इशारे पर वह कुकर्म किया, जिसको लेकर पूरा देश अंचभित है।

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेन्द्र नाथ तो इसकी हरकत से इतने क्षुब्ध है कि उन्होंने सोशल साइट पर इस शख्स के लिए बहुत ही कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया है। ज्ञानेन्द्र जी आम तौर पर ऐसे कड़े शब्दों का प्रयोग बहुत ही कम करते हैं, पर जहां तक मैं जानता हूं कि उन्होंने राजदीप के लिए कड़े शब्दों का प्रयोग जो किया, उसके लिए उस शब्द से बेहतर शब्द कोई हो भी नहीं सकता।

ज्ञानेन्द्र जी के बारे में, मैं बता दूं कि उनसे हमारी भेंट उस दौरान हुई, जब मैं ऑल इंडिया रेडियो पटना से जुड़ा था, वे बराबर आकाशवाणी पटना आते थे। खेल पत्रकारिता में तो उनकी कोई सानी ही नहीं, उनके लिए कह सकता हूं भूतो न भविष्यति, उनका आशीर्वाद हमारे उपर सदैव बना रहता है, और उन्होंने कई युवाओं को पत्रकारिता में स्थापित मूल्यों की सीख दी।

वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेन्द्र नाथ जो सोशल साइट पर इन दिनों सक्रिय है, वे फेसबुक पर लिख रहे है कि राजदीप कहता है कि सुशान्त इतना बड़ा एक्टर नहीं कि उसे मीडिया इतना महत्व दे। संजय राऊत के डिक्टेशन और उद्धव ठाकरे की इजाज़त से सांस लेने वाले इस बिकाऊ पत्रकारसे मैं पूछता हूं कि रिया चक्रवर्ती कितनी बड़ी ऐक्ट्रेस है (उसे तो सुशांत की हत्या से पूर्व कोई जानता भी नहीं था) जिसके इंटरव्यू के लिए उसने एक चैनल के मंच को दो घन्टे अपवित्र किया। राजदीप खुद बताए कि कितनी नामचीन हस्तियों का साक्षात्कार उसने इतना लम्बा लिया है?

हम आपको बता दें कि रांची में भी एक अखबार का संपादक है, जिसने एक डाक्टर को पद्मश्री दिलाने के लिए अपने अखबार में दो पेज का इंटरव्यू छाप दिया था, उस डाक्टर के लिए जिसने गरीबों पर कभी दया ही नहीं की, जिसका फीस दो हजार रुपये से अधिक था। इसलिए मैं कह रहा हूं कि राजदीप जैसे लोग हर जगह मौजूद है, बस उसे पहचानने की जरुरत है, और उसके उसी अनुसार ट्रीटमेंन्ट देने की जरुरत है।

ज्ञानेन्द्र नाथ जी फिर लिखते है “भारत की संस्कृति में किसी के मर जाने पर उसके चरित्रहनन की परम्परा नहीं है, जैसा कि सुशांत की मौत के बाद संजय राऊत कर रहा है और राजदीप तथा रिया से करवा रहा है। अगर कुछ कमीनों ने ऐसा किया हो तो मैं उनकी बात नहीं कर रहा हूं। भारत में तो अगर किसी का दुश्मन भी मर गया हो और आप उससे मरने वाले की आलोचना करने को कहेंगे तो वो यही कहेगा —“अब छोड़िए , जो चला गया उसके बारे में क्या बोलना”।

लेकिन सुशान्त को दिलोजान से चाहने वाली रिया चक्रवर्ती अपने परम प्रेमी ( जैसा कि वो दावा कर रही है ) को “मुसीबत में बीमार” छोड़कर चली जाती है। अपने बुड्ढे शुभचिंतक फ़िल्म निर्देशक से कहती है कि, “छुटकारा पा लिया”। अपने “अखंड प्रेमी” ( सुशान्त ) का नम्बर भी ब्लॉक कर देती है। उसके प्रेमी की मौत (बहुत जल्द हत्या तय हो जाएगी ) को 75 दिन गुज़र जाते हैं। वो अपनी “अत्यंत दुखी और निराश प्रेमिका” (हत्यारिन!)के सपने में आता है और कहता है कि “हे प्रिये, तुम एक बिकाऊ पत्रकार को इंटरव्यू दो और उसमें जमकर मेरा चरित्रहनन करो तभी मेरी आत्मा को मुक्ति मिलेगी।”  

दुःख से अधमरी हो चुकी वह प्रेमिका ( रिया ) अपने प्रेमी की आत्मा को मुक्ति दिलाने के लिए एक भड़वे पत्रकार और बिकाऊ चैनल को खोजती है और उस पर इंटरव्यू देकर अपने प्रेमी और उसके पूरे परिवार का जमकर चरित्रहनन करती है। ऐसी प्रेमिका को मैंने तो मुम्बईया फिल्मों में भी नहीं देखा है, जो कि दुःख के सागर में इतना डूबी हो कि अपने मृत प्रेमी का चरित्रहनन खुलकर और जमकर करती हो। आपने देखा है क्या? यहीं पर इंटरवल हो जाता है। आगे की स्क्रिप्ट CBI , ED और नारकोटिक्स ब्यूरो द्वारा लिखी जा रही है। थोड़ा इंतज़ार कीजिये, इस “दुःखी प्रेमिका” के साथ उसके कई “दुःखी प्रेमी” भी तोते की तरह बोलते नज़र आएंगे।

देश के “बड़े, बिके हुए और गिरे हुए पत्रकारों के अगुआ” राजदीप सरदेसाई ने सुशांत सिंह राजपूत की हत्या की मास्टरमाइंड रिया चक्रवर्ती का दो घन्टे का इंटरव्यू अपने चैनल के लिए कर के हर एंगल से उसे निरीह और सताई हुई नारी प्रमाणित करने की “असफल बाज़ीगरी” दिखाई है। जब यह निरीह और बेचारी ऐक्ट्रेस हत्या की मास्टरमाइंड होने के साथ साथ ड्रग पेडलर भी सिद्ध होने जा रही है तो उसके हमदर्द और रिश्तेदार राजदीप को अपने मंच (आजतक) की याद आयी। यानी सुशान्त की हत्या के तक़रीबन ढाई महीने बाद अचानक उसकी ‘बेचारगी’ के सारे सबूत उन्हें मिल गए।

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है, ईडी, सीबीआई और नारकोटिक्स विभाग सबूत जुटाने में लगा है, लेकिन राजदीप ने अपनी अदालत में उसे “बेदाग” साबित कर दिया, ठीक वैसे ही जैसे मुम्बई पुलिस ने दिशा सालियान और सुशान्त सिंह की लाश को देखने के साथ ही बता दिया कि दोनों ने आत्महत्या की। सुशान्त की हत्या को कूपर अस्पताल के “विद्वान डॉक्टरों” ने आत्महत्या बता दिया और ठीक वैसे ही राजदीप ने रिया को “बेचारी, निरीह और लगभग निर्दोष”।

कमाल की समानता है कूपर अस्पताल के भ्रष्ट डॉक्टरों की “विवादित पोस्टमार्टम रिपोर्ट” और राजदीप के “PR Interview” में। वैसे आपको चलते-चलते बता दूं कि राजदीप की पत्नी बंगाली है और रिया चक्रवर्ती उसकी करीबी रिश्तेदार। इस सारे प्रकरण में जो बात मुझे आहत कर गयी वो ये कि आजतक चैनल की शुरूआत देश के एक बेहद ईमानदार पत्रकार एस पी सिंह (सुरेंद्र प्रताप सिंह) ने की थी, और आज उसी चैनल का इस्तेमाल एक “व्यापारी और धंधेबाज” कर रहा है एक हत्यारिन और ड्रग माफ़िया को बचाने के लिए।

वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेन्द्र नाथ लिखते है कि पहले संजय राऊत ने कहा कि सुशान्त सिंह राजपूत गांजा पीता था और उसके संबंध ढेर सारी लड़कियों से थे। अब उद्धव ठाकरे के एक मंत्री ने भी उसी डायलॉग को दोहराया है। मेरा सीधा सवाल है कि मुंबई में गांजा पीने या ढेर सारी गर्लफ्रैंड रखने वाले युवक की हत्या का प्रावधान कब से है और महाराष्ट्र सरकार ने ऐसी हत्या का लाइसेंस कितने लोगों को निर्गत किया है।

अगर गांजा पीने और गर्लफ्रेंड्स रखने वाले युवक को जीने का अधिकार मुम्बई में नहीं है तो आदित्य ठाकरे और उसकी “चरित्रवान मित्रमंडली” अब तक कैसे ज़िंदा है? क्यूंकि आदित्य ठाकरे और उसके मित्र ढेरों गर्लफ्रैंड भी पालते हैं और आये दिन कॉकटेल और रेव पार्टियों का मजा भी लूटते हैं। अब जाहिर है ऐसी पार्टियों में जाकर कोई लस्सी या शिकंजी तो पीता नहीं।

मुम्बई के लाखों युवा ऐसी बिंदास जिंदगी जीते हैं ये बात उद्धव ठाकरे बखूबी जानते हैं। महाराष्ट्र सरकार के मापदंड से तो उन लाखों युवाओं का मर्डर हो जाना जायज़ है। और अब एक सीधा सवाल उद्धव ठाकरे और संजय राऊत से —– भगवान न करे, लेकिन कल को अगर रंगीन ज़िन्दगी जीने वाला आदित्य ठाकरे भी मारा जाता है तो क्या मुम्बई पुलिस और महाराष्ट्र सरकार उसे आत्महत्या बताकर फाइल बन्द करवा देगी?

वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेन्द्र नाथ ने जो राजदीप सरदेसाई और संजय राउत जैसे लोगों पर जो तीखे सवालों की बौछार की है, वे सारे सवालों की बौछार जनता भी कर रही है, पर जनता की आवाज कौन बनेगा? बिका हुआ राजदीप या मूल्यों की पत्रकारिता करनेवाले ज्ञानेन्द्र नाथ जैसे वरिष्ठ पत्रकार? दिमाग पर जोर डालियेगा, क्योंकि समय इससे भी ज्यादा भयंकर आनेवाला है, अब तथाकथित बिकाउ पत्रकारों की टोलियां अपनी विक्रय मूल्य की तख्ती टांगकर खुद ब खुद विभिन्न चैनलों, अखबारों व पोर्टलों के कार्यालयों पर सज-धज कर बैठी है, जाइये अपना मनपसन्द पत्रकार चुनिये और जो मन करें लिखवा लीजिये, चैनल व पोर्टल पर अपनी मार्केटिंग करवा लीजिये, रही बात न्यायालय या अन्य जांच एजेंसियों की, तो जब ये बिकाउ पत्रकार ही आपको सही दिखाने का ठेका ले रखे हैं तो फिर अन्य जांच एजेंसियां क्या आपका बिगाड़ लेंगी?