राजनीति

कमाल है, पहले आवेदन को अमान्य कर दो और फिर पत्रकारों को कहो कि ढुलू का मामला विचाराधीन

आज धनबाद के सभी प्रमुख अखबारों में झारखण्ड विधानसभाध्यक्ष रवीन्द्र नाथ महतो के बयान प्रमुखता से छपे हैं। उस बयान में इस बात का जिक्र है, कि विधानसभाध्यक्ष रवीन्द्र नाथ महतो ने कहा है कि ढुलू महतो की सदस्यता रद्द करने को लेकर एक मामला उनके पास विचाराधीन है। वे इस मामले में हर पहलूओं पर अध्ययन कर रहे हैं, जल्द ही वे इस संबंध में निर्णय ले लेंगे।

रवीन्द्र नाथ महतो के इस बयान से ढुलू समर्थकों में मायूसी छाई हुई है, वहीं ढुलू महतो के कट्टर विरोधियों में खुशी का माहौल है, पर जो लोग इस मामले में पूर्णतः या अंशतः इनवॉल्व हैं, उनका मानना है कि वे झारखण्ड विधानसभाध्यक्ष रवीन्द्र नाथ महतो के इस बयान को कैसे सत्य मान ले कि उनके पास ढुलू महतो की सदस्यता रद्द करने से संबंधित मामला विचाराधीन है, क्योंकि खुद उनकी विधानसभा ने राइट टू इन्फार्मेशन के तहत वरिष्ठ अधिवक्ता सोमनाथ चटर्जी को जो सूचनाएं उपलब्ध कराई है।

उस सूचना में विधानसभा ने साफ कहा है कि इस संबंध में विधिक, विधि विभाग, झारखण्ड से कोई सूचना प्राप्त नहीं की गई है, और इस संबंध में विजय कुमार झा द्वारा दाखिल आवेदन को अमान्य कर दिया गया है। साथ ही इसकी जानकारी पत्र द्वारा आवेदक विजय कुमार झा को भी उपलब्ध करा दी गई है। जब विधानसभा ने इस संबंध में दाखिल आवेदन को ही अमान्य कर दिया, साथ ही इसकी जानकारी आवेदक को भी उपलब्ध करा दी, तो फिर ये मामला झारखण्ड विधानसभाध्यक्ष रवीन्द्र नाथ महतो के पास विचाराधीन कैसे हो गया? लोगों को समझ नहीं आ रहा।

झारखण्ड विधानसभाध्यक्ष रवीन्द्र नाथ महतो को यह क्लियर करना चाहिए कि आखिर उनके पास ढुलू महतो से संबंधित उसकी सदस्यता रद्द करने से संबंधित आवेदन किसने फिर से उपलब्ध करा दी, जिसको लेकर उन्होंने धनबाद में इतना बड़ा बयान दे डाला। आज की अखबारों में पूर्व मंत्री एवं कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता जलेश्वर महतो का भी जिक्र आया है, लेकिन जब विद्रोही 24.कॉम ने जलेश्वर महतो से  इस संबंध में बातचीत की, तब उनका कहना था कि उन्होंने विधानसभाध्यक्ष को कोई आवेदन नहीं दिया। हां, इससे संबंधित प्रमुख बातें, उन्होंने अपने वरीय नेताओं तक पहुंचा दी है, देखिये क्या होता है?

कमाल है, एक ओर आवेदक जिसने मांग की कि विधानसभाध्यक्ष ढुलू महतो की सदस्यता रद्द करें, क्योंकि एक ऐसे ही मामले में सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाई थी, जिसको लेकर केरल के एक विधायक की सदस्यता चली गई थी, क्योंकि किसी भी अपराधी को मिली सजा समग्रता में देखी जानी चाहिए, इसका हवाला भी दिया था, परन्तु विधानसभाध्यक्ष ने आवेदक के आवेदन को ही अमान्य कर दिया और इसकी सूचना भी आवेदक को उपलब्ध करा दी, और आज उनका यह बयान कि यह मामला विचाराधीन है, अपने आप में संदेह को उत्पन्न कर रहा है, हालांकि विद्रोही24.कॉम ने इस संबंध में विधानसभाध्यक्ष से संपर्क कर उनकी राय लेनी चाही, पर संपर्क नहीं हो सका।