हाथी उड़ानेवाले, मोराबादी मैदान में पारा टीचरों व पत्रकारों को पीटवानेवाले EX-CM रघुवर सहायक पुलिसकर्मियों के लिए करेंगे सांकेतिक आंदोलन
इन्हें तो आप जरुर ही पहचानते होंगे, ये हैं जनाब झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री – रघुवर दास। इन्होंने अपने शासनकाल में क्या नहीं किया। वो हर काम किया जो एक अहंकारी शासक कर सकता है। हाथी उड़ाना। अपने आगे किसी को नहीं समझना। पार्टी के वरीय नेताओं और कार्यकर्ताओं को ठेंगे पर रखना। राज्य के योग्य आइएएस अधिकारियों को सड़ाने का काम करना। भ्रष्ट प्रशासनिक अधिकारियों व पुलिस अधिकारियों को महत्वपूर्ण स्थान दे देना। पत्रकारों को पीटवाना।
सवाल पूछनेवाले पत्रकारों को अपने संवाददाता सम्मेलन से दूर रखने का प्रयास कराना। पारा टीचरों पर अत्याचार करवाना। आंगनवाड़ी महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करना, उनके साथ मार-पीट करना। अखबारों-चैनलों के मालिकों-संपादकों को पैसे के बल पर जो चाहे वो काम करवाना। विपक्षी दलों के नेताओं को विधानसभा में गालियों से नवाजना। अपने दल के दागी विधायकों से अपराधिक मामलों के केस उठवाना, उनको संरक्षण प्रदान कराना, यही तो इनका काम था।
इनके शासनकाल में इन्हीं से पूछ लीजिये, कौन खुश था? ये बतायेंगे – बहुत लोग खुश थे। जैसे उनके मुख्य सचिव, राजनीतिक सलाहकार, प्रेस सलाहकार, जनसंवाद चलानेवाले लोग, व्यापारियों का समूह, आगे-पीछे करनेवाले लोग और दुखी कौन थे – तो राज्य की सारी जनता और वे लोग जो इनके अत्याचार के शिकार थे। आज अचानक इन महाशय को दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हो गई है। वे पहुंचे हैं, रांची के मोराबादी मैदान में।
वे सहायक पुलिसकर्मियों का दर्द सुनने गये हैं। जरा पूछिये कि उसी मोराबादी मैदान में कभी 15 नवम्बर को पारा टीचर अपना दर्द सुनाने के लिए उनसे गये थे, उन पारा टीचरों के साथ इन्होंने क्या किया था, उसी दिन रांची के पत्रकारों के साथ क्या किया था, है कोई जवाब इनके पास। जवाब होगा भी कैसे? नेता है न, इन नेताओं को सत्ता में रहने पर संघर्ष करनेवालों का दर्द दिखाई नहीं पड़ता और न महसूस होता है। देखिये न, अपने फेसबुक में इन महाशय ने क्या लिखा है –
“सहायक पुलिसकर्मियों को आंदोलन करते चार दिन हो गये हैं, लेकिन अब तक न तो कोई मंत्री न ही अधिकारी इनकी समस्या सुनने आया है। उलटे इनपर FIR की जा रही है, इनकी परिवारवालों को डराया-धमकाया जा रहा है। लोकतंत्र में इस प्रकार का दमन बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। जिस पार्टी ने आंदोलनकारी का चोला पहनकर भाजपा सरकार की बदनामी कर सत्ता हासिल की। वही आज मुंह छिपाये घुम रही है। इन सहायक पुलिसकर्मियों के दर्द को दरकिनार कर अपनी जिम्मेवारी से भाग रही है।
ये तपती धुप व कोरोना के बीच अपने घर से दूर छोटे-छोटे बच्चों को लेकर आंदोलन करने को बाध्य हैं। राज्य सरकार एक उच्चस्तरीय कमेटी बनाकर सहायक पुलिसकर्मियों की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करे। जब तक प्रक्रिया चलती है, तब तक इनका अनुबंध विस्तार करे। इनकी मांगे नहीं मानी गयी तो भाजपा आंदोलन करेगी। इनकी जायज मांगों के लिए मैं भी इनके साथ एक दिन का सांकेतिक आंदोलन करूंगा।”
अब सवाल उठता है कि जनाब आठ महीने पहले आप ही तो राज्य में मुख्यमंत्री थे, आप ही जाते-जाते इन सब का भला क्यों नहीं कर गये? आपको क्या दिक्कत थी ऐसा करने में? आज जो आप इनके लिए रोना रो रहे हैं, आपने पारा टीचरों का उस वक्त रोना क्यों नहीं महसूस किया? और आंदोलन भी करेंगे तो एक दिन का, वह भी सांकेतिक।
भाई ये बात कुछ हजम नहीं हुई, थोड़ा दिनों की संख्या बढ़ाइये, अनिश्चितकालीन आमरन अनशन करिये, ताकि सचमुच इन सहायक पुलिसकर्मियों का भला हो और आपका स्वास्थ्य भी ठीक हो। ये क्या आंदोलन भी करेंगे, वह भी सांकेतिक? इससे तो साफ पता चल रहा है कि आप सहायक पुलिसकर्मियों की मदद कम, अपनी राजनीति ज्यादा चमकाने में लगे हैं, पर आपका समय अब लद गया, अब कहां, अब आप आराम कीजिये।