रांची प्रेस क्लब कोर कमेटी के सदस्यों द्वारा लिये जा रहे निर्णयों से स्थानीय पत्रकारों में आक्रोश
बलबीर दत्त जी, आप अपने सम्मान की रक्षा भले ही न करें, पर कम से कम आपको राष्ट्रपति ने पद्मश्री की जो उपाधि दी हैं, कम से कम उसके सम्मान की रक्षा तो अवश्य करिये। यह मैं इसलिए लिख रहा हूं कि आप अभी रांची प्रेस क्लब का अध्यक्ष बन कर जो निर्णय ले रहे हैं, वह किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं हैं। आपसे रांची के पत्रकारों का एक बहुत बड़ा वर्ग जो आर्थिक रुप से बेहद कमजोर हैं, पर नैतिक रुप से यहां कार्यरत धूर्त संपादकों व अखबारों के मालिकों से कुछ ज्यादा ही नैतिकवान है, ऐसे पत्रकारों के समूहों में आप स्वयं द्वारा ले रहे निर्णयों के कारण अलोकप्रिय हो रहे हैं।
ताजा मामला 8 अक्टूबर का है। जिस बैठक में आपका हस्ताक्षर भी है। ऐसे तो हस्ताक्षर कई लोगों का है, पर आपसे लोगों को आशाएं रहती है कि भाई जो व्यक्ति इतने सालों से पत्रकारिता में रहा हैं, पद्मश्री प्राप्त है, वो भला अनैतिक कैसे हो सकता है? पर इस बैठक के बाद जो कुछ भी हुआ, अखबार में आया। उससे उन पत्रकारों को घोर निराशा हुई है, जो आपसे कम से कम नैतिकता की आशा रखते थे।
जरा देखिये आपने क्या किया है? 8 अक्टूबर को आपकी ही अध्यक्षता में प्रेस क्लब की बैठक होती है। बैठक में सदस्यता अभियान पर चर्चा होती है। बैठक में जो घटनाएं घटी है, उसका रजिस्टर में लिखित प्रमाण है। रजिस्टर में लिखा है “सदस्यता शुल्क को 2100 रुपये से कम करने पर साथियों ने जोर दिया। तय किया गया कि अभी 1100 रुपये लेकर सदस्यता दी जाय, शेष 1000 रुपये चुनी गई कमेटी के लिए छोड़ा जाय, जो इस पर उचित निर्णय लें। मौजूद पत्रकार साथियों ने जोर-शोर से सदस्यता अभियान चलाने पर अपनी सहमति दी। प्रेस क्लब की अगली बैठक अगले रविवार को 12 बजे से होगी। बैठक में मौजूद सदस्य –” और उसके बाद पहला हस्ताक्षर “बलबीर दत्त” का है और उसके बाद रांची से ही प्रकाशित एक स्थानीय अखबार के संपादक “अमर कांत”, और अन्य लोगों के हस्ताक्षर है।
पर आज रांची से प्रकाशित एक अखबार में जो समाचार छपा है, वह ठीक इसके उलट है, यानी प्रेस क्लब में लिये गये निर्णयों को पूरी तरह से उलट दिया गया है। अखबार में क्या समाचार हैं? उसकी कटिंग, मैं इसमें पेस्ट कर दिया हूं, आप स्वयं पढ़ ले। जिसमें कहा गया है कि जिन्हें 2100 रुपये देने में दिक्कत हो, वे किश्तों में राशि का भुगतान करें। पहली किश्त 1100 रुपये और दूसरी किश्त 1000 रुपये, 30 अक्टूबर तक जमा करा दें।
यानी रांची प्रेस क्लब की बैठक जो 8 अक्टूबर को हुई थी, उसे 10 अक्टूबर की बैठक में निरस्त कर दिया गया और कोर कमेटी के निर्णय को यहां के सारे पत्रकारों को मानने को बाध्य कर दिया गया। अब सवाल उठता है कि जब कोर कमेटी ही सब कुछ तय करेगी और उसका ही फैसला सबको शिरोधार्य है, तो फिर 8 अक्टूबर की बैठक का क्या औचित्य था? इसे किसने और क्यों बुलाया। आखिर पद्मश्री पदक प्राप्त और रांची प्रेस क्लब के अध्यक्ष बलबीर दत्त ने उक्त रजिस्टर में हस्ताक्षर क्यों किये? जब उस मीटिंग की बात माननी ही न थी।
इधर आज के समाचार पत्र में प्रकाशित खबर पर वरिष्ठ पत्रकार गिरिजा शंकर ओझा ने कड़ी टिप्पणी की है। उन्होंने कहा है कि इसमें नया कुछ भी नहीं है। इनका दोहरा चरित्र उजागर हो रहा है। पूर्व में भी बहुत से वादे करके मुकर गये। इस बार तो सार्वजनिक रुप से किये गये लिखित फैसले से पलट गये। अभी और गिरेंगे ये। गिरने दीजिये।