गलती करे रघुवर और झेले हेमन्त, BJP की गलती भुगते JMM, मात्र तीन साल का अनुबंध और अब सहायक पुलिसकर्मियों को चाहिए स्थायीत्व और सारी सुविधाएं
गलती करें रघुवर और झेले हेमन्त, भाजपा की गलती और भुगते झामुमो, मात्र तीन साल की अनुबंध पर सहायक पुलिसकर्मियों ने नौकरी पाई और अब इन्हें चाहिए स्थायीत्व और सारी सुविधाएं। है न कमाल की बात। जब आपको स्थायीत्व और सारी सुविधाएं चाहिए थी, तब आपने तीन साल का शपथ पत्र क्यों भरा? किसने आपको ऐसा करने पर मजबूर किया? उस वक्त किसकी सरकार थी, जिसने आपको ऐसा झांसा दिया? इसका जवाब सहायक पुलिसकर्मी आंदोलनकारी नहीं देते, बस उनका जवाब भी भाजपा नेताओं की तरह होता है।
ठीक उसी तरह, जैसे पहले प्राप्त करो। फिर शोर मचाओ। शोर मचाने के बाद वर्तमान सरकार को सारी चीजों के लिए दोषी ठहरा दो। अगर ये हालात सहायक पुलिसकर्मियों के आंदोलन के बाद बनती है, तो फिर आनेवाली किसी भी सरकार के लिए सर मुंडाते ओले गिरे वाली कहावत चरितार्थ हो जायेगी, फिर राज्य का विकास भूल जाइये, लटके रहिए इस प्रकार के आंदोलन में, पांच साल बीता दीजिये, इस प्रकार के ढकोसलों में और लीजिये फिर चुनाव, जनता फिर पूछेगी, तथाकथित पत्रकार पूछेंगे कि आपने पांच साल में क्या किया?
जैसे कोविड 19 के इस महामारी में सब कुछ जानते हुए, चालाक लोग पूछ रहे हेमन्त सरकार से कि आपके उन वायदों का क्या हुआ? जो आपने विधानसभा चुनाव के दौरान किया था, इन पूछनेवालों को सब पता है कि राज्य की आर्थिक स्थिति पिछली सरकार ने ऐसी खराब कर दी है कि कोई भी चाहेगा, तब भी वो कुछ नहीं कर सकता और इधर कोविड 19 ने तो इसमें कोढ़ में खाज का काम कर दिया, पर करना क्या है, समस्याएं जो भी हो, मेरा काम है पूछना, जवाब जानने के बावजूद पूछते रहेंगे, सरकार को बेवजह गरियाते रहेंगे।
आम तौर पर जो भी आंदोलन होते है, चाहे वह किसी भी प्रकार के आंदोलन क्यों न हो? अगर आंदोलन से जुड़े आंदोलनकारी किसी कारणवश पुलिस बल के द्वारा लाठी चार्ज के शिकार हो जाते हैं, तो आम जनता की सहानुभूति उन आंदोलनकारियों को प्राप्त हो जाती है, पर रांची के मोराबादी मैदान में सहायक पुलिसकर्मियों के चल रहे आंदोलन को जनता का समर्थन नहीं मिल रहा।
हालांकि भाजपा के लोग इस आंदोलन को लेकर थोड़ा ज्यादा सजग है, उनके नेता सहायक पुलिसकर्मियों के पास जाकर उनसे मिल रहे हैं, उनका हौसला अफजाई कर रहे हैं, और हौसला अफजाई वे भाजपा के नेता भी कर रहे हैं, जो पूर्व में मुख्यमंत्री पद पर विराजमान थे, जिनके फैसले से ही सहायक पुलिसकर्मियों को अनुबंध के आधार पर नौकरी पर रखा गया। वह भी इतने कम मानदेय पर, कि जिसको लेकर कोई भी सवाल खड़े कर सकता है, यानी डेली वेजेज से भी कम पैसे पर, लेकिन जिन्हें नौकरी चाहिए थी, उन्होंने भी इस पर उस वक्त सवाल खड़ा नहीं किया, जब वे सहायक पुलिसकर्मी की नौकरी अनुबंध पर ले रहे थे और न उस वक्त तक सवाल खड़ा किया, जब तक इनकी अनुबंध की नौकरी पर कोई तलवार नहीं लटक रही थी।
अब चूंकि यह सच्चाई है जैसा कि अनुबंध में शामिल है कि सहायक पुलिसकर्मियों की सेवा दो वर्षों के लिए अनुबंध के आधार पर होगी। कार्य संतोषप्रद होने पर SSP/SP की अनुशंसा के आधार पर एक-एक वर्ष के लिए वह भी अधिकतम तीन वर्षों के लिए संबंधित क्षेत्रीय पुलिस उप-महानिरीक्षक के अनुमोदनोपरांत विस्तारित किया जा सकेगा। किसी भी परिस्थिति में कुल अनुबंध सेवा अवधि पांच वर्षो से अधिक नहीं होगी। ऐसे में इन सहायक पुलिसकर्मियों की सेवा को स्थायीत्व कैसे प्रदान किया जा सकता है और किस नियमावली के आधार पर? समझने की जरुरत है।
खुद सहायक पुलिसकर्मियों ने अनुबंध पत्र पर हस्ताक्षर किया है कि सहायक पुलिस के पद पर की गई सेवा मात्र अनुबंध के आधार पर की गई सेवा होगी तथा इसके आधार पर भविष्य में किसी प्रकार की स्थायी नियोजन अथवा अन्य कोई दावा अनुमान्य नहीं होगा। ये सारे अनुबंध और प्लानिंग स्वयं पूर्व की सरकार यानी भाजपा सरकार यानी रघुवर सरकार के कार्यकाल में हुआ।
ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास का सहायक पुलिसकर्मियों के पास जाकर घड़ियाली आंसू बहाना क्या बताता है, साफ है कि ये सहायक पुलिसकर्मियों के आंदोलन पर झूठ फैला रहे हैं, अगर पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास को इतनी ही पीड़ा अब हो रही हैं तो उसी वक्त इन्हें अनुबंध की जगह पर सीधी नियुक्त कर देनी थी, इन्होंने इनको अनुबंध के आधार पर, वह भी दस हजार के मानदेय पर, वह भी मात्र तीन साल के लिए क्यों रखा? इसलिए कि वे जानते थे कि अगली बार तो उन्हें मुख्यमंत्री बनना ही नहीं हैं, इसलिए जो मन करें, कर दो, फैसले ले लो। आनेवाली सरकार होगी, वो झेलेगी, जैसा कि फिलहाल हेमन्त सोरेन झेल रहे हैं।
जानकारों का मानना है कि सहायक पुलिसकर्मियों को अनुबंध के आधार पर रखना ही पूर्व की सरकार की ओर से लिया गया गलत फैसला था, जिसे कभी सही नहीं ठहराया जा सकता। दूसरी ओर इनकी बहाली के लिए जो नियमावली तैयार की गई, वो नियमावली भी गलत थी, जिसके आधार पर सहायक पुलिसकर्मी अभी आंदोलनरत हैं, वे खुद गलत हो जायेंगे, तथा ये कानूनन भी कही नहीं ठहर पायेंगे, इसलिए जो वर्तमान सरकार इनके मामले में जो फैसले ले रही हैं, इन्हें मान लेना चाहिए, नहीं तो बाद में, इनको ही आगे झेलना पड़ेगा, क्योंकि फिर इनका आंदोलन और मांगे अदालत में भी नहीं ठहर पायेंगी।
जानकारों का ये भी कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास और भाजपा के अन्य विधायक जो कह रहे है कि वे इस मामले को विधानसभा के मानसून सत्र में उठायेंगे तो वे खुद ही फसेंगे, फिर झामुमो या सत्तारुढ़ दल के विधायक ही उनके द्वारा लिये गये फैसलों को सदन में रखकर, उन्हें बेनकाब कर देंगे, फिर वे कही मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे, क्योंकि जो आज हो रहा हैं, उस नाटक का मंचन का पूरा स्क्रिप्ट पूर्व में ही इनके पूर्व सीएम रघुवर दास ने तैयार करवा दी थी।
सच्चाई यह है कि यह फैसला अधिसूचना के माध्यम से 27 फरवरी 2017 को झारखण्ड राज्यपाल के आदेश से, सरकार के संयुक्त सचिव कैलाश प्रसाद श्रीवास्तव के हस्ताक्षर से निर्गत हुआ, और इस अधिसूचना को अगर गलत करार दिया जायेगा, तो कौन लोग फंसेंगे, इस पर ज्यादा दिमाग लगाने की जरुरत नहीं, फसेंगे पूर्व सीएम रघुवर दास और भाजपाइयों का वह झुंड जो फिलहाल इस मुद्दे का राजनीतिक लाभ लेने के लिए, अपने पक्ष में इसे भंजाना चाहते है, पर ये भंजा पायेंगे? ऐसा नहीं लगता। उलटे स्वयं इस गड्ढे में जा गिरेंगे, लेकिन तब, जब झामुमो या सीएम हेमन्त सोरेन इस मुद्दे पर कड़े फैसले ले लेंगे और जनता के समक्ष सही-सही बात सदन के माध्यम से रख देंगे। पर क्या ऐसा होगा? जनता जवाब की प्रतीक्षा में हैं?