रामजन्मभूमि मंदिर के सूत्रधार आडवाणी, जिन्होंने जीते-जी अपने आंदोलन को सफल होते हुए देखा, आरोपों से मुक्त भी हुए
जहां तक मुझे लगता है कि भारत में तीन ही राष्ट्रीय स्तर के नेता हुए, जिन्होंने बाद में अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहचान बनाई, जिन्होंने स्वयं ही आंदोलन छेड़ा और अपने जीते जी उस आंदोलन को सफल होते हुए भी देखा, जिनमें प्रथम महात्मा गांधी थे, जिनके नेतृत्व में भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ, दूसरे लोकनायक जयप्रकाश नारायण हुए, जिन्होंने 1975 में इन्दिरा गांधी द्वारा शुरु किये गये आपात काल की तीखी आलोचना की और संपूर्ण विपक्ष को एक साथ लेकर 1977 में अपने जीते जी इन्दिरा गांधी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया और तीसरे लाल कृष्ण आडवाणी है, जिन्होंने श्रीरामजन्मभूमि को मुक्त कराने का बीड़ा उठाया और वे इस आंदोलन को अब सफल होते हुए देख रहे हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले साल श्रीरामजन्मभूमि मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया, और इस वर्ष यानी 2020 में अयोध्या में भगवान श्रीराम के जन्मस्थल पर श्रीराममंदिर का निर्माण भी शुरु हो गया और आज जो लाल कृष्ण आडवाणी, डा. मुरली मनोहर जोशी समेत 32 लोगों पर बाबरी मस्जिद ढाहने का कलंक लगा था, वह कलंक भी आज धूल गया, जब लखनऊ की विशेष अदालत ने लाल कृष्ण आडवाणी समेत सभी आरोपियों को दोषमुक्त करार दे दिया।
लखनऊ की विशेष अदालत द्वारा आज सुनाये गये फैसले से लालकृष्ण आडवाणी गदगद थे, फैसले आने के पूर्व वे चिन्तित भी थे, उनका पूरा परिवार भी चिन्तित था, और चिन्तित वे भी थे, जो लाल कृष्ण आडवाणी को जानते हैं और बेहद सम्मान करते हैं। फैसला आने के बाद, लाल कृष्ण आडवाणी का मीडिया के लोगों के बीच आकर जयश्रीराम का नारा लगाना तथा यह कहना कि राम जन्मभूमि आंदोलन को लेकर उनकी निजी और भाजपा की प्रतिबद्धता को साबित करता है, बताता है कि वे रामजन्मभूमि मंदिर आंदोलन को लेकर शुरु से ही कितने आशावान रहे हैं।
जिन्होंने उनके सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक की रामरथ यात्रा को देखा हैं, वे यह भी जानते हैं कि भारत के इतिहास में ऐसी रामरथ यात्रा कभी नहीं देखने को मिली। एक पंक्ति में कहूं तो – न भूतो न भविष्यति। संयोग से जब लालकृष्ण आडवाणी अपनी रामरथ यात्रा के क्रम में पटना पहुंचे थे, तब उस वक्त मैं पटना में ही था, जो सभा उनकी पटना के गांधी मैदान में चार बजे होनी थी, वो सभा रात्रि के करीब दस बजे हुई थी, और उस वक्त भी पटना का गांधी मैदान खचाखच भरा था, जो दूसरे दिन राजधानी पटना से प्रकाशित सभी अखबारों को सूर्खियां बनी।
यही नहीं पटना के अधिकतर अखबारों ने रामरथ पर विशेष पेज भी निकाला। हमें याद है कि लालकृष्ण आडवाणी ने पटना की सभा में उस वक्त कहा था कि “जैसी स्वागत उन्हें बिहार में देखने को मिली हैं, वैसा स्वागत कही नहीं देखने को मिला, खासकर पटना में तो सड़क के दोनों किनारे जिस प्रकार से लोग उमड़-उमड़ कर राम रथ और आडवाणी को देखने आ रहे थे, ऐसा लग रहा था कि आज पटना के घरों में कोई नहीं होगा, सभी सड़कों पर थे, और ये सच्चाई भी थी।”
जो लालू प्रसाद, दिल्ली जाकर लाल कृष्ण आडवाणी को बिहार में रामरथ यात्रा नहीं शुरु करने की अपील कर रहे थे, आडवाणी ने लालू प्रसाद की विनती ठुकरा दी और उनकी बिहार में धनबाद से यात्रा प्रारम्भ हुई, बिहार में पहली यात्रा तीन किलोमीटर लंबी थी। लालू प्रसाद और लालू के अनुयायियों को लगता था कि उस वक्त का दक्षिण बिहार का इलाका संघ और भाजपा प्रभावित है, इसलिए वहां अधिक भीड़ हैं, पर जैसे-जैसे ये मध्य बिहार और उत्तर बिहार की ओर से गुजरेगा, आडवाणी की यह यात्रा मद्धिम पड़ जायेगी, पर यहां हो रहा था, ठीक उलटा।
जैसे-जैसे आडवाणी बिहार के अंदरुनी इलाकों में प्रवेश कर रहे थे, ठीक वैसे-वैसे भीड़ बढ़ती जा रही थी। कई इलाकों में ऐसा भी देखने को मिला कि लोग आडवाणी की इस रथयात्रा को एक बार स्पर्श करना चाह रहे थे, जैसे लगता हो कि इसको स्पर्श कर लेने मात्र से ही उनके कष्ट दूर हो जायेंगे, क्योंकि बात राम से जुड़ी थी।
ये रामरथ का ही कमाल था कि लालू प्रसाद का धैर्य टूटा। उन्होंने आडवाणी को देर रात जब बिहार की जनता सो रही थी, स्वयं कई पत्रकार जो आडवाणी के साथ-साथ चल रहे थे, उन्हें पता ही नहीं लगा और आडवाणी समस्तीपुर में गिरफ्तार हो गये। उन्हें देखते ही देखते दुमका के मसानजोर में शिफ्ट कर दिया गया। इधर लालू की पार्टी की दिल्ली में सत्ता भी चली गई। शायद यही कारण रहा कि जब दूसरी बार लाल कृष्ण आडवाणी की पटना में सभा हुई, तब उन्होंने जोर देकर कहा था कि “लालू प्रसाद ने उन्हें मसानजोर भेजा और अपने नेता को …. भेज दिया।” इसे सुनकर पटना के गांधी मैदान में जोर के ठहाके भी लगे थे।
सच पूछिये तो लालू प्रसाद ने लाल कृष्ण आडवाणी को अचानक महानायक बनाकर रख दिया था, अगर लालू प्रसाद बिहार में आडवाणी की गिरफ्तारी नहीं करते और लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा उत्तर प्रदेश में प्रवेश कर जाती तो ये स्थिति नहीं होती, राजनीति करवट ले चुकी थी, अचानक भाजपा एक महाशक्ति के रुप में उभरती चली गई, शायद रामकृपा हो चली थी, वीपी सिंह जैसे राजनीतिज्ञों का सितारा डूबता चला जा रहा था। आज भले ही लालकृष्ण आडवाणी राजनीति में नहीं हैं, पर भाजपा के मार्गदर्शक मंडल में हैं, उनका सम्मान आज भी उसी तरह है, जैसे पूर्व में था।
लेकिन उन्हें जेल भेजनेवाले आज खुद रांची जेल में हैं, पर लालकृष्ण आडवाणी का चेहरा खिला हुआ है। उनको अवश्य इस बात का गर्व होगा कि उन्होंने जिस आंदोलन को शुरु किया, वह आंदोलन परवान चढ़ा, उनके जीते जी सफल हुआ, इससे बड़ी उपलब्धि और कोई दूसरी हो भी नहीं सकती। ये लालकृष्ण आडवाणी का ही कमाल था कि भारत में वंदे मातरम् के बाद अगर कोई नारा लोगों के जुबां पर आया तो वो था – “जयश्रीराम।” आज के दिन लालकृष्ण आडवाणी को विद्रोही24 की ओर से बधाई। इधर जैसे ही लाल कृष्ण आडवाणी, डा. मुरली मनोहर जोशी, साध्वी ऋतंभरा, उमा भारती, विनय कटियार आदि 32 लोगों को आरोपों से मुक्त होने की खबर आई। रांची में कई स्थानों पर लालकृष्ण आडवाणी के चाहनेवालों ने मिठाइयां बांटी, खुशियां मनाई, दिये जलाएं।