वाह री सोच, भाजपावाले किसी पत्रकार को झूठे मुकदमे में फंसाकर उसके सम्मान के साथ खेल जाये तो ठीक और दूसरे दलवाले करें तो गलत
उधर अर्नव की गिरफ्तारी हुई और इधर भाजपा को बेचैनी की बीमारी हो गई। भाजपा अर्नव की गिरफ्तारी को आपातकाल से जोड़ रही है, तथा इसका राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश भी कर रही है, जबकि जिन्हें थोड़ी सी भी राजनीतिक समझ है, वे जानते है कि ये नेता व राजनीतिक दल किसी के नहीं होते, बस वे मौके का लाभ उठाना जानते हैं, चाहे वो कोई भी राजनीतिक दल ही क्यों न हो?
अब चूंकि अर्नव को समर्थन करने से भाजपा को लाभ पहुंचना है, तो भाजपा के लोग दिल्ली से लेकर विभिन्न राज्यों की राजधानी तक सड़कों पर उतर गये और इसमें वे लोग भी शामिल हुए, जो पत्रकारों को अपमानित करने, उन्हें उलटा लटकाने तथा झूठे मुकदमों में फंसाने का षड्यंत्र करने या पत्रकारों के साथ ऐसा होता हुआ देखने में ही ज्यादा समय बिताते हैं, जिसका गवाह रांची का न्यू मार्केट चौक भी बना।
जहां भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ राज्य के पूर्व नगर विकास मंत्री सीपी सिंह व रांची के सांसद संजय सेठ भी कैंडल लेकर अर्नव का समर्थन करने के लिए पहुंच गये और उधर प्रदेश कार्यालय में प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने बयान दे दिया कि राज्य की हेमन्त सरकार में भाजपा के प्रेस कांफ्रेस में जो पत्रकार बंधु आते हैं, उनको भी नोटिस थमा दिया जाता है, और यह ऐसे ही नहीं बल्कि जहां-जहां कांग्रेस की सरकार रहती है, वहां पत्रकार असुरक्षित रहते हैं, यह देश व कांग्रेस का इतिहास बताता है, जो यहां भी दिख रहा है, यानी संगत से गुण होत है और संगत से गुण जात, यह डॉयलॉग राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को समर्पित था।
यानी कमाल है महाराष्ट्र के मुंबई में रहनेवाले अर्नव के लिए भाजपाइयों के मन में इतनी पीड़ा और रांची में ही पिछले बीस सालों से इलेक्ट्रानिक मीडिया में काम कर रहे कृष्ण बिहारी मिश्र के लिए इन भाजपाइयों के मन में तनिक पीड़ा नहीं हुई। अरे इन्हें पीड़ा होगी कैसे? क्योंकि इन्हीं भाजपाइयों में से तो एक ने रांची के धुर्वा थाने में रघुवर सरकार के इशारे पर एक झूठी प्राथमिकी दर्ज करा दी और रहा सहा काम सरकार के इशारे पर काम कर रहे उस वक्त के तत्कालीन एसएसपी व अन्य आइपीएस अधिकारियों ने कर दिया।
कमाल है एक ओर उस वक्त तत्कालीन रांची एसएसपी ने हमें झूठा दिलासा दिलाया, कि मेरे सम्मान के साथ कोई खेल नहीं सकता और हुआ ठीक उसका उलटा। उस वक्त तत्कालीन मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव संजय कुमार ने हमसे बार-बार कहा, कि वे इस मामले को देख रहे हैं, उन्होंने तो हमें यह भी कहा था कि उन्होंने रांची के तत्कालीन एसएसपी को इस मामले में सूचना दे दी है कि वो इस झूठे मुकदमे को खत्म करें, पर हुआ क्या? नये एसएसपी ने झूठे केस को ही ट्रू करार दे दिया।
मामला अदालत में हैं। साढ़े तीन वर्ष गुजर गये। हमारे कितने पैसे बर्बाद हुए। भगवान ही मालिक है, पर यहां सुनता कौन है? यही नहीं इन भाजपाइयों ने ऐसी हालत कर दी कि हम कही काम करने जाते, तो वहां भी इनके दूत मनाही का बोर्ड लगवा देते कि इसे काम नहीं दिया जाये, अंत में मैं इन सारी गतिविधियों को देखता रहा, खून का घूंट पीता रहा।
यानी भाजपावाले किसी पत्रकार के सम्मान के साथ खेल जाये, तो ठीक है, क्योंकि उन्हें यह अधिकार मिला है और अगर दूसरा कोई दल ऐसा करें, तो उसे जनता के बीच कटघरे में खड़े कर दो। अरे मैं तो कहता हूं कि कोई भी दल अगर किसी पत्रकार की आवाज को दबाना चाहता है, तो वे सारे दोषी हैं, ये क्या कि कमल वाले निष्कलंक और तीर-धनुष वाले दोषी। हद हो गई, भाई। थोड़ा अपने गिरेबां में भी झांक कर देखो। थोड़ा अपनी चलनी भी देखो, कि उसमें कितने छेद है।
अरे मैं तो अपने केस के मामले में उस वक्त अपने ही विधायक व राज्य के नगर विकास मंत्री सी पी सिंह से भी मिला था, और उन्होंने कहा था कि वे इस मुद्दे पर लाचार है, उनके शब्दों में – “आप तो जानते है कि मिश्रा जी कि आपके मामले कहां से गाइड हो रहे हैं।” अरे मुझे भी उस वक्त अर्नव की तरह जेल ले जाने की तैयारी हो गई थी, पर ये तो ईश्वर की कृपा है, मेरे उपर, बस मैं इतना ही जानता हूं।
लेकिन, मैं उन सारे सत्यनिष्ठ पत्रकारों को कह देता हूं कि इस भूल में मत रहो कि भाजपा अर्नव के साथ हैं, भाजपा सिर्फ अपनी राजनीतिक दुकान चला रही हैं, मौका उसे मिलेगा तो तुम्हें भी टारगेट कर, अपने हिसाब से राजनीतिक फायदे उठा लेगी, इसलिए थोड़ा संभल के। अगर ज्यादा जानकारी लेनी हो तो थोड़ा उत्तर प्रदेश देख लो या छत्तीसगढ़ के रमन सिंह के कार्यकाल को देख लो, अथवा किसी भी गैर भाजपाई सरकार में जाकर देख लो।
तुम्हें अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी, कोई किसी का मदद नहीं करता, हां तुम्हें मिटाने के लिए ये सारे राजनीतिक दल एक अवश्य हो जायेंगे। ऐसे भी पत्रकार वही हैं, जो लड़े, संघर्ष करें, सत्य के साथ खड़ा रहे, चाहे उसे सूली पर ही क्यों न लटका दिया जाये और जब उसे सूली पर लटकाया जाये तो वह हंसते-हंसते भगत सिंह की तरह सूली पर लटक जाये। कोई मलाल न हो, इसका भी मलाल नहीं कि उसे झूठे मुकदमे में फंसाकर सूली पर लटका दिया गया।