गांठ बांध लीजिये, बिहार की जनता के मन-मस्तिष्क में चल रहे उथल-पुथल को टटोल पाना आसां नहीं, नामुमकिन हैं
बिहार की जनता ने जनादेश दे दिया है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को अगले पांच साल के लिए फिर से सत्ता मिली है, जबकि महागठबंधन को फिर से विपक्ष में रहकर सरकार के काम-काज पर नजर रखने की जिम्मेदारी भी डाल दी गई है, हालांकि महागठबंधन अभी भी इस हार को पचाने को तैयार नहीं है, उसे लगता है कि इवीएम तथा प्रशासनिक अधिकारियों ने महागठबंधन की जीत में खलनायक की भूमिका अदाकर दी है, इधर भाजपा के लोग कुछ ज्यादा ही प्रसन्न है, क्योंकि बिहार में पहली बार भाजपा ने इतनी अधिक सीटें जीती है।
लोकजनशक्ति पार्टी ने तो इस बार कई दलों के नाक में दम कर दिये, किसी को जीताया तो किसी को हार का स्वाद भी चखाया, ये अलग बात है कि उसे एक ही सीट पर इस बार संतोष करना पड़ा, आम तौर पर यह पार्टी हर बार जिस दल या गठबंधन के साथ होती थी, वो सत्ता में होता था, पर इस बार वह स्वतंत्र रुप से लड़ी, लेकिन उसका दिल हमेशा भाजपा के लिए धड़कता रहा, जिसकी चर्चा चिराग पासवान ने हर दम की।
एआइएमआइएम ने बिहार में पांच सीट जीतकर किसी को चौंकाया नहीं, वह सीधा संदेश दे दिया कि धर्मनिरपेक्षता तभी तक जब तक मुस्लिम थोड़े हैं, जिस दिन बराबरी पर आ जायेंगे, धर्मनिरपेक्षता का बखान करनेवाले सबसे पहले तुम ही निशाने पर होगे। आज बिहार में मुस्लिम बहुल सीटों में पांच सीट एआइएमआइएम को देकर बिहार के मुस्लिमों ने बता दिया कि वे भाजपा को हरायेंगे, पर जीतायेंगे उसे ही जो अपना हो।
अगर एआइएमआइएम जैसा संगठन उनके साथ होगा तो उनकी पहली और अंतिम प्राथमिकता ओवैसी जैसे लोग ही होंगे, उनकी पार्टियां होगी और राजद तथा जदयू जैसी स्वयं को सेक्यूलर कहनेवाली पार्टियां रसातल में चली जायेंगी, इसलिए जरा इस ओर भी ध्यान देने की जरुरत है, अगर ध्यान नहीं देंगे तो फिर भाजपा को भी भला-बुरा कहना सदा के लिए छोड़ दीजिये, क्योंकि आप लाख भला-बुरा कहेंगे, भाजपा लोगों की मजबूरी हो जायेगी।
अब इधर चुनाव परिणाम आ गये है। भाजपा फिर से नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने के लिए आतुर है, पर नीतीश ने फिलहाल इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है, वे इस जीत को सामान्य तौर पर ले रहे हैं, क्योंकि उनकी पार्टी ने इस बार खराब प्रदर्शन किया है, उनके सीटों की संख्या घटी भी हैं, जिसका अंदेशा उन्हें भी था। जो लोग बिहार की राजनीति में विश्वास रखते हैं, वे जानते है कि ऐसा कोरोना के कारण हुआ है, क्योंकि जिस प्रकार से बिहार की जनता विभिन्न प्रदेशों से लौटकर बिहार आई और उन्हें बेरोजगारी के दंश झेलने पड़ें, उसका कोपभाजन नीतीश को आज न कल बनना ही था, इसलिए इसमें कोई किन्तु-परन्तु की बात नहीं कि जदयू को इतनी सीटें कम क्यों आई?
दूसरी ओर वे पत्रकार जो पत्रकारिता कम, विभिन्न दलों की चाटुकारिता ज्यादा करते हैं अथवा जिन्होंने दिल खोलकर इस बार तेजस्वी के चरणकमलों में लोटते नजर आये, जिन्होंने तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने तथा महागठबंधन को सत्ता में लाने के लिए दिन-रात एक कर दिया था, महागठबंधन की हार के बाद, उनकी नींद उड़ गई हैं, तथा अब वे नई जुगाड़ में लग गये हैं, फिलहाल वे चाहते है कि नीतीश एक बार फिर पलटू राम बन जाये और राजद के साथ गठबंधन कर, फिर से सेक्यूलर नेता बन जाये और सत्ता संभाले।
पर जो राजनीतिक पंडित हैं, वे मानते है कि इस बार अगर नीतीश ने ऐसा किया तो जो भी बचा-खुचा बिहार की जनता के बीच उनका सम्मान हैं, वह भी सदा के लिए चला जायेगा, फिर कोई उन्हें वो सम्मान नहीं देगा, जो एक सामान्य व्यक्ति की भी चाहत होती है, ऐसे हर राजनीतिक व्यक्ति को अपने कैरियर बनाने या उसे ढहाने की पूरी स्वतंत्रता है।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि भाजपा ऐसे भी नीतीश के लिए खलनायक के रुप में कभी पेश नहीं आयेगी, क्योंकि वह नीतीश को उस वक्त से मुख्यमंत्री के रुप में स्वीकार कर रही है, जब नीतीश के पास बिहार की सत्ता तक पहुंचने के लिए उतनी सीटें भी नही थी। नीतीश को चाहिए कि अब वे बिना देर किये, बिहार की सत्ता संभाले और ईमानदारी से पांच वर्षों तक शासन करने के क्रम में एक जिम्मेदार उत्तराधिकारी भी पार्टी की ओर से बिहार की जनता को दे दें।
इस जनादेश के माध्यम से बिहार की जनता ने एक्जिट पोल प्रस्तुत करनेवाली संस्थानों को एक तरह से बैंड ही बजा दिया। 2015 के बाद 2020 के विधानसभा चुनाव में भी सारे चैनल बिहार की जनता के बीच पानी भरते नजर आये, अपना चेहरा छुपाते नजर आये। बिहार की जनता ने बता दिया कि वे चैनलों और एक्जिट पोल करनेवालों को अपने पॉकेट में लेकर चलते हैं, उनके लिए एक्जिट पोल वगैरह कुछ नहीं, यानी बिहार की जनता के मन को टटोलना चिरकुट टाइप के संस्थानों/चैनलों के वश की बात नहीं।
रही बात महागठबंधन क्यों हारा? उसके एक नहीं अनेक कारण है और जब तक इन कारणों पर महागठबंधन ध्यान नहीं देगा, वो हारता रहेगा, सत्ता तक पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देगा। पहला कारण – महागठबंधन को जिन लोगों ने वोट दिया, वे पूर्व में भी देते थे, देते रहेंगे, अगर कोई महागठबंधन में शामिल वामदल या अन्य पार्टियां जैसे कांग्रेस यह कहती है कि उसके कारण महागठबंधन को या राजद को सर्वाधिक सीट मिली तो ये मूर्खता है।
जैसे अगर कांग्रेस कहे कि बिहार में उसका एक अलग जनाधार है, तो यह सबसे बड़ा सफेद झूठ है, क्योंकि कांग्रेस के मतदाता पूर्व में सवर्ण, मुस्लिम व दलित रहे हैं, जो कब के इनसे बिदक चुके हैं। ये कांग्रेस को वोट नहीं देते, ऐसे में कांग्रेस को जो भी सीटें आई, वो राजद की वजह से आई, न कि राहुल गांधी या सोनिया गांधी की लोकप्रियता के कारण। वामदल का भी यही हाल है, वामदल जो भी सीटें लाया है, वो लालू प्रसाद व तेजस्वी के कारण, नहीं तो पूछ लीजिये, अगर ये इतने ही ताकतवर थे तो फिर लोकसभा में इनकी जमानत क्यों जब्त हो गई, या 2015 विधानसभा चुनाव में इनकी क्या स्थिति थी?
दूसरा कारण – स्थितियां हमेशा एक जैसी नहीं रहती, बदलती रहती है, आप जीतते-जीतते हारे हैं, ये जान लीजिये। अरे भाई आपको जो वोट देता हैं, वो तो देगा ही, जो वोट नहीं दे रहा हैं, उससे वोट लीजिये न, पर आपने क्या कह दिया कि गरीब लोग बाबू साहेब के सामने सीना तानकर लालू यादव के समय रहा करता था, हो सकता है कि ऐसी घटना एक दो जगह पर हुई हो, पर आज ऐसी स्थिति नहीं है, ये स्वीकार करना होगा। लंठई भाषा अब नहीं चलेगी, ये महागठबंधन को जान लेना चाहिए। उसका उदाहरण है – झारखण्ड। जहां दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए, भाजपा नेताओं ने यहां के विपक्षी नेताओं को चोट्टा कह डाला और लीजिये तस्वीर बदल गई। दोनों सीटों पर सत्तारुढ़ दल जीत गई।
तीसरा कारण – मत भूलिए। आप पर जंगल राज का ऐसा दाग लगा हुआ है कि उसे छुड़ाने में कितने साल लगेंगे, कहा नहीं जा सकता, हमें लग रहा था कि नीतीश सरकार के पन्द्रह साल शासन के बाद हो रहे चुनाव में ये दाग धुल गया होगा, पर हमें नहीं लगता कि ये दाग इतने जल्दी धूलेंगे, क्योंकि स्थितियां आपने खुद खराब की है, बोलने का तरीका सीखिये, थोड़ा बॉडी लेंग्वेज सुधारिये, बिहार का तस्वीर ठीक ढंग से पेश करिये, पर आप लोगों ने खुद की ऐसी स्थिति बना ली है कि बिहार की तस्वीर आज भी मसखरे की है।
चौथा कारण – नीतीश-मोदी लाख गलत है, पर उन्होंने अपने परिवार को राजनीति में आगे नहीं किया, पर आपके यहां तो पिता, माता, बेटे, बेटियां, बहुएं सभी राजनीति में हैं, यानी आपसे बचेगा तब किसी और को मिलेगा, ऐसे में तो जनता आप पर विश्वास कैसे करें? आपने दस लाख की नौकरी देने की बात की थी, आपने तो विधानसभा पहुंचकर अपनी नौकरी पक्की कर ली, नहीं भी विधायक रहियेगा तो पेंशन इतना मिलेगा कि उसी से आप बम-बम हो जायेंगे, आम आदमी तो मेहनत की चक्की में पीसकर जीवन ही समाप्त कर ले रहा हैं, इसलिए पांच साल हैं जरा सोचियेगा कि आप सत्ता में आने से वंचित क्यों रह गये? सुधरियेगा तो सत्ता मिलेगा, नहीं तो जो हैं, सो है ही। ऐसे भी हमको आपसे क्या मतलब? या आपको हमसे क्या मतलब?
सम निरपेक्ष
सार संगत
True introspection reqd.