छठ को लेकर हेमन्त सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन्स को डाक्टरों ने सराहा, भाजपा ने शुरु की धरने की राजनीति, जनता को इस बात का मलाल सरकार अन्य मुद्दों पर भी सख्त गाइडलाइन्स क्यों नहीं जारी करती
छठ को लेकर हेमन्त सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन्स को झारखण्ड ही नहीं, अन्य राज्यों के चिकित्सकों ने भी सराहा है। डाक्टरों का कहना है कि झारखण्ड सरकार द्वारा लिया गया यह फैसला कि लोग घाटों पर जाकर भगवान भास्कर को अर्घ्य न दें, पूजन न करें, ये सारे कार्य अपने घरों में ही संपन्न करें। ये छठव्रतियों व उनके परिवारों के ही हित में हैं, क्योंकि कोरोना अभी देश से गया नहीं हैं, बल्कि अभी भी हैं, कई राज्यों में इसका पुनः प्रसार हो रहा है।
जिससे वहां की राज्य सरकारें ही नहीं, केन्द्र सरकार भी सकते में हैं, उसका सबसे बड़ा प्रमाण दिल्ली है, जहां से कोरोना करीब-करीब गायब हो चला था, लेकिन आज वहां फिर से प्रभाव दिखाने लगा है, जिसको लेकर केन्द्र व राज्य सरकार के हाथ-पांव फूल रहे हैं। स्थिति ऐसी है कि केन्द्र सरकार इस बार शीतकालीन सत्र को लेकर फैसले नहीं कर पा रही हैं। इसलिए कोरोना की भयावहता को समझना बहुत ही जरुरी है।
खुशी इस बात की है कि कोरोना पर विजय पाने के लिए उसके वैक्सीन तैयार करने में कई देशों के वैज्ञानिक जुटे हैं, उसमें भारत भी शामिल है, पर जब तक पूर्णरुपेण यह वैक्सीन हमारे सामने नहीं आ जाता, इससे बचना ही ठीक रहेगा। डाक्टरों ने यह भी कहा कि झारखण्ड में ही कई मंत्री व अन्य दलों के विधायक कोरोना की चपेट में आये और अभी भी उससे लड़ रहे हैं, इसलिए इसे समझने की जरुरत है, न कि सरकार से उलझने की जरुरत।
ऐसा भी नहीं, कि अगर आप छठ घाटों पर पूजा संपन्न नहीं करेंगे, तो आपकी पूजा भगवान भास्कर स्वीकार नहीं करेंगे, भगवान तो भाव के भूखे होते हैं, हमनें कई बार घाटों पर पूजा संपन्न किये, इस साल घर पर ही संपन्न कर लेंगे तो ऐसा नहीं कि भूचाल आ जायेगा। पूर्व में भी कई घरों में छठ संपन्न होते रहे हैं, जिन घरों के लोगों को लगता है कि तालाबों या नदियों का जल प्रदूषित हो चुका है, वे अपने घरों पर ही छठ संपन्न करते हैं। वहां ऐसा कोई संकट नहीं होता, पर चूंकि सरकार ने गाइडलाइन्स जारी कर दिये, इसलिए इसका विरोध करना हैं, तो यह गलत होगा।
डाक्टरों का कहना है कि आज भी सर्वसंपन्न देश कोरोना से लड़ रहे हैं, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली आदि देशों में तो हालत अभी भी खराब है। हम सबने केन्द्र व राज्य सरकार व स्वास्थ्य सेवाओं के साथ मिलकर बहुत हद तक कोरोना पर काबू पाया है, ऐसे में हमें नहीं चाहिए कि इतना सुंदर वातावरण हाथ से निकल जाये। डाक्टरों का कहना है कि वे राजनीतिज्ञ नहीं हैं, और न राजनीति की भाषा जानते हैं, हम तो सिर्फ यह जानते है कि स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से क्या बेहतर हो सकता है।
देश की आर्थिक व्यवस्था को ठीक करने के लिए सरकार ने हो सकता है, कुछ निर्णय लिये हो, जिसमें सोशल डिस्टेंसिंग न दिखता हो, या कोरोना के नियमों का उल्लंघन होता दिखता हो, पर ऐसे में इसे ही ध्यान में रखकर हम कोरोना को लेकर जारी गाइडलाइन्स की अवहेलना के लिए सड़कों पर उतर जाये अथवा हम सरकार द्वारा बताये गये नियमों की अवहेलना करें, तो इसका खामियाजा सरकार को कम, जनता को ही ज्यादा उठाना पड़ेगा। क्योंकि इसमें फिलहाल सावधानी जरुरी है।
सुप्रसिद्ध चिकित्सक डा. राघवेन्द्र नारायण शर्मा ने साफ कहा कि कोरोना को लेकर सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन्स का वे सहर्ष समर्थन करते हैं, क्योंकि लोगों को अभी जान बचाना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए, जिसको लेकर सरकार ने ये गाइडलाइन्स जारी किया। लोगों को चाहिए कि सरकार का सहयोग करें, क्योंकि इसमें अपना ही सहयोग है, क्योंकि ये आम लोगों के स्वास्थ्य से जुड़ा हैं, थोड़ा भी कही संकट आयेगा तो ये कितनों को प्रभावित करेगा, लोग समझ नहीं पा रहे।
बिहार के सुप्रसिद्ध चिकित्सक डा. राम नरेश सिन्हा ने विद्रोही24.कॉम से बातचीत में कहा कि अभी जो मौसम हैं, वो कोरोना के फैलने का मौसम है, ऐसे में हम इससे तभी बचेंगे, जब हम नियमों का पालन करेंगे। नियम है, सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन करना, मास्क लगाना, ज्यादा से ज्यादा घरों में रहना, लेकिन छठ जैसे माहौल में जहां भीड़ और मेला प्रासंगिक हो जाती है, वहां सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन करना नामुमकिन हो जाता है, ऐसे में जिस सरकार ने भी ऐसे नियम जारी किये हैं या गाइडलाइन्स जारी किये हैं, उसकी प्रशंसा करनी होगी, क्योंकि मामला स्वास्थ्य से जुड़ा हैं।
इधर डाक्टरों ने हेमन्त सरकार के निर्णयों पर मुहर लगा दी, उधर भाजपा का हंगामा जारी है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश हो या पुर्व नगर विकास मंत्री सीपी सिंह इस मामले पर मुखर हैं, और सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। वहीं कई ऐसे भी लोग हैं, जिनको किसी भी नेता या पार्टी या डाक्टरों के विचारों से लेना-देना नहीं हैं, वे अभी भी चाहते है कि सरकार गाइडलाइन्स पर पुनर्विचार करें, तथा छठ को घाटों पर ही संपन्न करने की अनुमति जारी करें, जबकि कई लोगों ऐसे भी हैं, जो कह रहे है कि हरदम तो घाट पर जाते ही हैं, इस बार घर पर ही करके देखते हैं, इसका क्या आनन्द मिलता है?