दल में रहकर भी दलीय राजनीति से उपर उठकर सेवा करनेवाले ओपी लाल ने सभी को रुलाया
धनबाद के प्रियदर्शनी पथ कतरास में रहनेवाले, तीन-तीन बार बाघमारा विधानसभा का नेतृत्व करनेवाले, एकीकृत बिहार में खनन एवं भूतत्व मंत्रालय (स्वतंत्र प्रभार) का पद संभाल चुके ओपी लाल अब इस दुनिया में नहीं हैं। उन्होंने गत् रविवार यानी 22 नवम्बर को रांची के रिम्स में अन्तिम सांस ली।
लोग बताते है, कि उन्हें जब सांस लेने में तकलीफ हुई तो उन्हें रांची के मेदांता में भर्ती कराया गया, बाद में वहां कोरोना पॉजिटिव होने की सूचना मिली तो उन्हें रांची के रिम्स में भर्ती कराया गया हुआ था, जहां वे कोरोना निगेटिव भी हो गये, पर सांस लेने की तकलीफ से उबर नहीं पाये और उनकी मृत्यु हो गई।
जैसे ही ओपी लाल के निधन की खबर धनबाद तक पहुंची, तो उनके चाहनेवालों में शोक की लहर दौड़ गई। क्या कांग्रेस, क्या भाजपा और क्या वामदल सभी ने उनके द्वारा किये गये कार्यों और सेवाओं को याद कर, उन्हें एक बेहतरीन राजनीतिज्ञ के रुप में याद किया। सभी राजनीतिक दलों व विभिन्न सामाजिक संगठनों के नेताओं ने एक स्वर से यह कहा कि ओपी लाल के पास जो भी गया, चाहे वह किसी भी राजनीतिक दल अथवा किसी भी सामाजिक संगठन का क्यों न हो, उन्होंने खुलकर मदद की, कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया कि जो उनके पास आया है, वो उनके दल का हैं या नहीं।
वे हमेशा कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ें, कांग्रेसी रहे, पर अन्य राजनीतिक दलों के राजनीतिज्ञों से भी उनका प्रेम वैसा ही बना रहा, उनकी सादगी की आज भी लोग चर्चा करने से नहीं चूक रहे। हमें याद है कि जब मैं दैनिक जागरण धनबाद में कार्यरत था, तब उनसे हमारी पहली मुलाकात बाघमारा में समाचार संकलन के क्रम में हुई थी, उसके बाद से लेकर आज तक हमनें उनमें कोई बदलाव ही नहीं देखा, यानी वे पद पर रहे या पद पर नहीं रहे, कोई मलाल उन्हें नहीं था।
उन्हें इस बात की खुशी थी कि वे लोगों की सेवा में अब भी लगे हैं। जो भी लोग आज राजनीति में हैं, कम से कम दिवंगत ओ पी लाल के इन विशिष्ट गुणों का तो उन्हें अवश्य अनुकरण करना चाहिए, हम दावे के साथ कह सकते है कि ओपी लाल ने अपने विधायक काल में कभी बाघमारा के दामन पर दाग लगने नहीं दिया, और जब दाग लगने नहीं दिया, तो यह भी सच्चाई सामने है कि लोग उन्हें आज भी उसी श्रद्धा के साथ याद रख रहे हैं, जैसा कि वे पूर्व में थे।