दिल्ली में तथाकथित किसानों द्वारा की गई हिंसा व गुंडागर्दी की सर्वत्र आलोचना, लालकिले की घटना पर पूरे देश में आक्रोश
जी हां, ये किसान नहीं हो सकते। अव्वल दर्जें के गुंडे हैं और जो दल या संगठन या मीडिया से जुड़े लोग इनका समर्थन कर रहे हैं, केन्द्र सरकार को चाहिए कि ऐसे लोगों पर राष्ट्र द्रोह का मुकदमा करें, क्योंकि राष्ट्रीय गणतंत्र दिवस के दिन लाल किले पर जो गुंडई इन्होंने दिखाई है, उसे किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि लाल किला हमारे देश की शान है और उस पर किसी भी धार्मिक झंडे का फहराया जाना, हमारे संविधान व देश को दी जानेवाली गंभीर चुनौती हैं, जिसे हम सामान्य घटना कहकर भुला नहीं सकते।
ज्ञातव्य है कि किसान आंदोलन के नाम पर ट्रैक्टर रैली निकालने को लेकर न तो केन्द्र सरकार को ऐतराज था और न ही देशवासियों को। देश भी देखना चाहता था कि उसके देश के किसान किस प्रकार अपनी नाराजगी को देश की सरकार के सामने पेश करते हैं, पर जिस प्रकार की गुंडागर्दी इन तथाकथित किसानों ने दिखाई, वो बता दिया कि कृषि कानून के एजेंडे के पीछे इनका कोई दुसरा एजेंडा चल रहा हैं, जो लाल किले पर इनकी गुंडागर्दी के साथ दिख भी गया। तथाकथित किसानों की इस गुंडागर्दी पर पूरे देश में आक्रोश है, तथा सभी एक स्वर से आंदोलन में शामिल तथाकथित किसानों द्वारा किये गये उपद्रव व हिंसा की कड़ी आलोचना कर रहे हैं।
कुछ वामी दल या कांग्रेस के लोग सोच रहे हैं कि तथाकथित किसानों ने ऐसा करके केन्द्र सरकार को अपनी ताकत दिखा दी, तो वे भूल रहे हैं कि वे भस्मासुरों को पैदा कर रहे हैं और यही भस्मासुर उन्हें भी एक दिन निगल जायेंगे, साथ ही देश का नुकसान करेंगे सो अलग।
राष्ट्रीय गणतंत्र दिवस के दिन आज जिस प्रकार की हरकत कांग्रेस व वामदलों के इशारों पर कांग्रेस शासित प्रदेशों राजस्थान व पंजाब एवं भाजपा शासित हरियाणा तथा यूपी के तथाकथित किसानों ने की, वो शर्मनाक है। इनलोगों ने दिल्ली में तलवारें भांजी, लाठियां बरसाई, पुलिसकर्मियों पर ट्रैक्टर चलाए, बैरिकेडिंग को तोड़ा, दिल्ली पुलिस से किये गये वायदों की धज्जियां उड़ाई। जिससे साफ लगता है कि इनके इरादे नेक नहीं थे।
जो तथाकथित चिरकूट टाइप के पत्रकार व किसान नेताओं का समूह जो कल चिल्ला-चिल्लाकर शांति पूर्ण प्रदर्शन की बात कर रहे थे, आज वो बोलने की स्थिति में नहीं है। कभी चुनाव विश्लेषक बन जानेवाले, कभी आम आदमी पार्टी के नेता बन जानेवाले, कभी समाजवादी चिन्तक बन जानेवाले, कभी किसानों के हमदर्द बनने का ढोंग रचनेवाले योगेन्द्र यादव को बताना चाहिए कि दिल्ली के लाल किले पर तिरंगे की जगह खालसा पंथ का झंडा कैसे लहराने की कोशिश की गई? कांग्रेस के राहुल गांधी ही बताएं कि क्या इसी आंदोलन की रुपरेखा उनके किसानों ने तय की थी, या राहुल गांधी को पता भी है कि तिरंगा क्या होता है और उसे लाल किले पर क्यों फहराया जाता है?
मैं दावे के साथ कह सकता हूं, देश का किसान कभी तिरंगे का अपमान नहीं कर सकता, अपने दिये हुए वचन से मुकर नहीं सकता, वो किसी बेगुनाह पर तलवार या ट्रेक्टर नहीं चला सकता और जो ऐसा कर सकता है, वो निःसंदेह किसान नहीं हैं, वो गुंडा है, वो अपराधी है। हम ऐसे किसानों, ऐसे आंदोलनों और उनके समर्थकों की कड़ी भर्त्सना करते है।
इन बदमाशों ने तिरंगा ही नहीं, पूरे विश्व में भारतीय गणतंत्र की धज्जियां उड़ाई और ये सब हुआ अपने को सेक्यूलर बतानेवाले, अपने को ज्यादा काबिल कहनेवाले कांग्रेसियों, वामदलों व जनसंगठनों के इशारों पर। ऐसे भी इन सारी पार्टियों के लिए देश बाद में और अपना भंडार भरना पहले हैं, इसके लिए ये देश को भी दांव पर लगा सकते हैं, तो किसान क्या चीज है?
ध्यान दीजियेगा पूरे देश में किसानों का आंदोलन केवल दिल्ली में चल रहा है, जिसमें ज्यादातर पंजाब, हरियाणा और दिल्ली से सटे कुछ यूपी के किसानों का समूह ही भाग ले रहा हैं, जबकि भारत के अन्य राज्यों में कृषि कानूनों को लेकर कोई आंदोलन नहीं चल रहा, लेकिन उन राज्यों में भी इन कांग्रेसियों व वामसंगठनों ने आज जमकर उत्पात मचाने की कोशिश की थी, पर सच्चाई यह है कि इन्हें पंजाब, हरियाणा, यूपी और राजस्थान छोड़कर कही से समर्थन ही नहीं मिला।
इधर समाचार यह है कि पंजाब के लुधियाना से कांग्रेसी सांसद रवनीत सिंह बिट्टू ने दिल्ली हिंसा के पीछे “सिक्ख फॉर जस्टिस” नामक संगठन को जिम्मेदार बताया है, उनका कहना है कि इसी संगठन ने साजिश रची, जो खालिस्तान मूवमेंट से जुड़ा है। आज के किसानों के आंदोलन की गुंडागर्दी का आलम यह रहा कि दिल्ली में ट्रेक्टर पलटने से एक की मौत हो गई, जबकि अमृतसर में दो महिलाओं की मौत हो गई, पांच घायल हो गये।