अपनी बात

आपके बेटे का राज है, थानेदार, बीडीओ, सीओ अगर आपकी बात नहीं सुने तो जुता-चप्पल चलाइये – वसन्त

मिलिये झामुमो के “रघुवर दास” यानी वसन्त सोरेन से… यह मैं इसलिए लिख रहा हूं कि गत् 25 जनवरी को दुमका के दुमका क्लब में आयोजित झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की प्रमंडलीय बैठक में झामुमो विधायक वसन्त सोरेन (राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के छोटे भाई) जिस प्रकार से अपने झामुमो कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे थे। वो लग ही नहीं रह था कि दिशोम गुरु शिबू सोरेन के परिवार का एक सदस्य बोल रहा है।

उनके तेवर झारखण्ड के दुर्भाग्य की कहानी लिखने की ओर इशारा कर रहे थे। वे ऐसी-ऐसी बातें बोल रहे थे और वह भी राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन (हेमन्त सोरेन खुद वसन्त सोरेन के बड़े भाई हैं) के सामने जिसकी परिकल्पना नहीं की जा सकती। वे आग उगल रहे थे, जिसकी जितनी भी भर्त्सना की जाय कम है। कमाल है, वो कह क्या रहे थे, पहले जरा इसको सुनिये। वे कह रहे थे – 

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“थानेदार तुम्हारी बात नहीं सुनता है तो जूता से मारो, कभी सुना था मैंने और आज आपका राज है, आज आपकी सरकार है और
आज आप ये कहते है तो दुर्भाग्य है, दुर्भाग्य है ये। ये आज आपकी सरकार है। जब संघर्ष के समय में, जब हमलोग झारखण्ड राज की लड़ाई लड़ रहे थे तो आपके नेता शिबू सोरेन ये कहते थे, उनका ये वर्ड-उनका शब्द होता था। आज तो आपकी सरकार है, आज तो आपका बेटा है, और आज आप ये कहते है कि बीडीओ-सीओ मेरी बात नहीं सुनता है, तो अफसोस है। अगर आज भी हमारी आवाजें इसी तरह दबी रहेंगी, हमारा बीडीओ-सीओ नहीं सुनेगा और जूता चप्पल नहीं चलाने पा रहे हैं, तो अफसोस है।”

अब सीधा सवाल अचानक राज्य के बहुत बड़े नेता बन चुके वसन्त सोरेन से। मैंने बड़ा नेता इसलिए कहा, क्योंकि इस प्रकार की भाषा बड़े लोग ही किया करते हैं, सामान्य लोग नहीं किया करते। जूता-चप्पल चलाना कोई सामान्य बात थोड़े ही हैं, और जूते-चप्पल चलाने का आह्वान करना, ये भी कोई सामान्य बात नहीं है, लेकिन एक बात जो हमारे मन में घर कर रहा है, कि भाई आपको जूते-चप्पल चलाने का आह्वान करना क्यों पड़ रहा हैं, वह भी तब, जबकि आपके पिता यानी शिबू सोरेन सांसद है।

आपके बड़े भाई मुख्यमंत्री है। आपकी भाभी विधायक है। आप खुद विधायक है। यानी एक ही घर में इतने बड़े-बड़े लोग बैठे है, सत्ता में हैं, उसके बाद भी आप अपने लोगों को जूते-चप्पल चलाने को कह रहे हैं तो आपको सत्ता में रहने का औचित्य क्या है? आप सभी इस्तीफा दीजिये और जूता-चप्पल चलाने का ही आह्वान करने का कारोबार शुरु कीजिये, क्योंकि ये शराफत की भाषा तो हैं नहीं।

कही ऐसा तो नहीं कि आप ऐसा इसलिए बोल रहे है कि सत्ता आपके घर पर आकर ठुमके लगा रही है, ठीक आप उसी प्रकार की हरकतें कर रहे हैं, जैसा कि कभी रघुवर दास किया करते थे, जैसे सत्ता मिलने पर उनको कुछ नहीं दिखता था, और वे अनाप-शनाप बका करते थे, विधानसभा में प्रतिपक्ष को गालियों से नवाजा करते थे, आपने भी वहीं किया है, जरा चिन्तन करियेगा तो सब पता चल जायेगा कि आपने क्या किया है? चिन्तन तो आप समझते ही होंगे।

कमाल है जिस राज्य में सुखदेव सिंह जैसा ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ मुख्य सचिव बैठा है, जहां एमवी राव जैसा पुलिस महानिदेशक बैठा है और इन दोनों को बैठाने में आपके ही भाई मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की बहुत बड़ी भूमिका है, और ऐसे लोगों के रहने पर भी प्रशासनिक व्यवस्था व पुलिस व्यवस्था पर आपको भरोसा नहीं, तो फिर आम जनता को कैसे भरोसा रहेगा?  अरे आपको तो पता ही नहीं कि राज्य के मुख्यमंत्री के सामने आपने क्या कह दिया?

चूंकि राज्य में जो विपक्ष हैं तो वैसे ही खत्म है, अगर सही मायनों में विपक्ष होता तो आपको कब का कटघरे में ले चुका होता, लेकिन मौज मनाइये, आप भी वहीं कर रहे हैं, जो कल रघुवर के शासनकाल में होता था। मैं तो कहूंगा कि आपने जो 25 जनवरी को अपने कार्यकर्ताओं को जो रास्ता दिखाया है, अगर यही आपका दिखाया रास्ता  आपके कार्यकर्ताओं को भा गया तो समझ लीजिये, आज बीडीओ-सीओ हैं, कल एमएलए भी उनके रडार पर आ सकते हैं, और उस रडार के सामने कौन होगा, ये हम कैसे बता सकते हैं, ये तो आप ही समझ सकते हैं।

एक बात और, आपने 25 जनवरी को इतनी बड़ी बात कह दी, पर राज्य के अखबारों में ये सुर्खियां नहीं बन सकी। इसका मतलब है कि राज्य के सभी तथाकथित प्रतिष्ठित अखबारों ने “विज्ञापन शरणं गच्छामि” का मूलमंत्र हृदय में धारण कर लिया है, तभी तो आपके ये गौरवपूर्ण बयान किसी अखबारों में नहीं है, शायद उन अखबारों ने सोचा होगा कि कही विज्ञापन न बंद हो जाये, पर मैं क्या करुं, मैं तो आदत से लाचार हूं, रास्ता दिखा रहा हूं, संभलना हैं, संभलिये, नहीं तो 25 जनवरी को आपका दिया गया ये बयान, राज्य की जनता को भा गया तो समझ लीजिये, अगली सरकार आपकी तो कम से कम नहीं ही होगी।