राजनीति

झारखण्ड में चक्का जाम कराने उतरे कृषि मंत्री, वामदलों ने भी दिखाई धमक, तीन घंटे के चक्का जाम से खुद किसानों ने बनाई दूरियां

संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर हुए देशव्यापी चक्का जाम से झारखण्ड अछूता रहे, यह कैसे हो सकता है? वह भी तब जब किसानों के इस आंदोलन को कांग्रेस के लोग ही हवा दे रहे हैं और यहां हेमन्त की सरकार में खुद कांग्रेस एक बहुत बड़ी साझेदार है। वामदलों का क्या है? जो भाजपा का विरोध करेगा, वे उसके साथ हो लेंगे, और जब कांग्रेस और भाजपा में किसी एक को चुनना हो, तो वे कांग्रेस को ही अपना बेहतर साझेदार मानेंगे।

आज के झारखण्ड में चक्का जाम का हाल यह रहा कि इस बंद पर राज्य सरकार का पूरा प्रभाव दिखा। झारखण्ड मुक्ति मोर्चा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, विभिन्न वामपंथी संगठनों ने अपने-अपने ढंग से विभिन्न सड़कों पर धरने दिये। जिस कारण कई इलाकों में डेढ़ से दो घंटे तक जाम की स्थिति दिखाई पड़ी, पर आश्चर्य यह भी रहा कि इन चक्का जाम करा रहे लोगों में कांग्रेस, झामुमो के लोग व नेता तो दिखे, पर कही किसान नहीं दिखा।

अगर किसान दिख जाता तो समझ लीजिये, स्थिति दूसरी होती, क्योंकि इस राज्य में किसानों की संख्या कोई कम नहीं हैं, जिन सड़कों से गुजरेंगे, उन हर सड़कों पर किसान आपको बैठे मिल जायेंगे, पर किसी किसान ने इस चक्का जाम में बैठने की जहमत नहीं उठाई। सच्चाई यह है कि अगर किसानों का समर्थन मिल जाता तो हर जगह ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती कि सड़कों पर गाड़िया ससर नहीं पाती, लेकिन यहां ठीक उलटा दिखा। हर जगहों पर सिर्फ राजनीतिक दल के कार्यकर्ता व नेता ही दिखे। धनबाद-जमशेदपुर जैसे झारखण्ड के प्रमुख इलाकों में चक्का जाम का कोई प्रभाव नहीं दिखा।

लेकिन रांची के कुछ इलाकों में चक्का जाम का प्रभाव दिखता नजर आया। खासकर तब जब झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के नेताओं का समूह, कांग्रेस कोटे से बने कृषि मंत्री बादल पत्रलेख के नेतृत्व में चक्का जाम में कूद पड़े। कृषि मंत्री बादल पत्रलेख तो इस मामले को लेकर रांची से दिल्ली तक की यात्रा कर चुके है, वे किसान नेता राकेश टिकैत से मिलकर उन्हें अपना समर्थन भी दे चुके हैं।

गिरिडीह व रांची में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी-लेनिनवादी के कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने नेताओं के नेतृत्व में अपने स्वाभावानुसार प्रदर्शन किया और केन्द्र सरकार द्वारा लागू किये गये कृषि कानूनों की कड़ी आलोचना की। भाकपा माले कार्यकर्ता चाहे वह गिरिडीह में रहे या रांची में जहां भी इन्होंने चक्का जाम किया, उसका असर देखनेलायक रहा।