ए यार, मुझे ये बता कि मैं कहां जाकर रोऊं, फरियाद करुं, अपना दुखड़ा सुनाऊं
तुमने तो हर जगह पर कब्जा जमा लिया। हमने तो ये समझा कि नई सरकार आयेगी, तो हमारे जख्मों को भरेगी, पर ये क्या अब तो नये जख्म देने की तैयारी होने लगी। अधिकारियों और कुछ खास लोगों को हमारी दर्द भरी आवाजें भी अच्छी नहीं लग रही। वे स्थान ढूंढ रहे है कि उन्हें हमारा रुदन कहां और किस स्थान से सुनना ज्यादा पसन्द आयेगा। अरे वाह री सरकार और वाह री सरकार के लिए काम करनेवालों कारिन्दों, क्या समझते हो कि उपरवाले ने तुम्हें ही ज्यादा दिमाग दिया है?
अरे तुम ये ही बताओ न, क्या तुमने कभी धरना दिया है, प्रदर्शन किया है, किसी चीज के लिए दर्द झेला है, उत्तर होगा – नहीं, तो फिर धरना स्थल के लिए तुम दिमाग लगाओगे कि कौन सा स्थान अच्छा रहेगा या हम जिन्हें पता है कि कौन सी जगह पर धरना देने से तुम टेकूए की तरह सीधे हो जाते हो। कमाल है, अरे रांची में धरना-प्रदर्शन होता कहां है?
या तो राजभवन, या मोराबादी या बिरसा चौक या अलबर्ट एक्का चौक? यही चार स्थान है न, तो तुम्हें इन्ही चार स्थानों में से किसी को चुनने में कौन सी दिक्कत आ रही है? हमें तो लगता है कि तुमने ऐसी जगह दिमाग लगा रखी है, जिससे धरना-प्रदर्शन कोई भी करें, उससे तुम्हारी नींदों में कोई खलल नहीं डाल सकें, पर याद रखो जो तुम दिमाग लगा रहे हो, उस दिमाग की बत्ती बुझाने भी हम आंदोलनकारियों को खुब आती है, तभी तो हम इस मुद्दे को लेकर विचार-विमर्श की भी तैयारी कर रहे हैं।
समाजसेवी नदीम खान कहते हैं कि रांची में धरना/प्रदर्शन स्थल हटाकर कहीं और चिन्हित करने के नाम पर माहौल तो ऐसा बनाया जा रहा है जैसे सौतन आ गई हो, साथ ही दूरदराज या किसी कोने में हो जहां “अंदर से बाहर न आ सके” और न ही “बाहर से अंदर जा सके”! वे ज़्यादा माहौल ख़राब कर रहें है जिन्हें सिर्फ़ आपने धंधे से मतलब है, “चेंबर” ऐसे भी आईएएस भोर सिंह यादव (एसडीओ,रांची) याद ही होंगे जो हरामखोरी-घूसखोरी पर घूसा बरसा रहे थे। चेंबर ने हटवा दिया। दूसरा नाम है प्रिंट “कुंडित कथित सूर्य उदय” मीडिया दुःखद और निंदनीय है।
ख़ैर धरना-प्रदर्शन-आंदोलन किसी अधिकारी के तय कर देने से नही तय होना चाहिए, जबतक कि सामूहिक बैठक कर राजनैतिक दल-सरकार- आंदोलनकारी-सामाजिक संगठनों व्यक्तियों को लेकर एक सहमति न हो। ऐसे भी सरकार बदल चुकी है, पर लक्षण पुरानी सरकार के फ़ैसले जैसा क्यों हो रहा है? समझ से परे है। माननीयों को इस पर विचार करना चाहिए। “वरना होगा इंक़लाब-ज़िंदाबाद”।
नदीम खान सुझाव देते हुए कहते है कि धरना स्थल राजभवन, पुरानी विधानसभा तो रहे ही और कुछ नाम तय कर दीजिए कुछ सुधारों के साथ। साथ ही वे गुस्से में यह भी कहने से नहीं चूकते –“अरे माहौल बनाने वाले साहब, तुम्हें उसी आंदोलन के नाम पर आठ घण्टे नौकरी, प्रमोशन, रिज़र्वेशन, सामाजिक न्याय, मेडिकल एव अन्य सुविधा, बोनस, छुट्टी, पीएफ़ आदि दिया और तुम उसी पर चल दिये हथौड़ा चलाने। आक थू।”