अपनी बात

अवधेश कुमार पांडेय ने किया अवकाश ग्रहण, सभी ने उनकी सेवाओं को यादकर उन्हें सलाम ठोका

बात उन दिनों की है, जब मैं पटना से प्रकाशित हिन्दी दैनिक आर्यावर्त के लिए काम करता था। उस वक्त मैं आर्यावर्त में दानापुर से अनुमंडलीय संवाददाता था और इसी दरम्यान दानापुर अनुमंडल में वीरेन्द्र कुमार शुक्ल अनुमंडलीय जनसम्पर्क पदाधिकारी के रुप में नये-नये नियुक्त हुए थे। यह समय था – लालू प्रसाद यादव का। दानापुर का इलाका यादवों का गढ़ है और यहां लालू यादव की उस वक्त तूती बोलती थी। ऐसे भी उस वक्त लालू प्रसाद का आना-जाना यहां बराबर लगा रहता था।

दानापुर का दियारा हो या पूरा अनुमंडल, मैं उस वक्त सायकिल से ही पूरा अनुमंडल छान मारता था। उसी दौरान दानापुर में पीपा-पुल का उद्घाटन होनेवाला था, पटना का जनसम्पर्क विभाग दानापुर घाट पर बहुत ही सुंदर आयोजन कर रखा था। लिजिये लालू आ गये। भारी भीड़ इक्ट्ठी हो गई। सभी लालू की ओर दौड़ने लगे।

इधर कार्यक्रम खत्म हुआ और मैं समाचार संकलन के दौरान भीड़ में फंस गया, अचानक वीरेन्द्र कुमार शुक्ल की हमारी ओर नजर गई, उन्होंने अपने सीनियर उस वक्त के तत्कालीन जिला जनसम्पर्क पदाधिकारी अवधेश कुमार पांडेय से कहा, मिश्रा जी भीड़ में फंस गये, उनको निकालिये, फिर क्या था – अवधेश कुमार पांडेय ने खुद ही अपना हाथ बढ़ा दिया और मैं भीड़ से निकल गया। यह हमारी पहली मुलाकात थी – अवधेश कुमार पांडेय से।

दुसरी मुलाकात पटना कार्यालय में तब हुई, जब मैं अपना आईकार्ड बनवाने के लिए गया था, और तीसरी मुलाकात रांची के सूचना भवन में हुई, उसके बाद तो मुलाकात का सिलसिला निकल गया। प्रेम इस प्रकार बढ़ा कि मैं उनके दिल्ली आवास तक गया हूं। उनके परिवार के लोग भी हमें बड़ा आदर देते हैं। मैं तो उनके घर पर कई बार सत्यनारायण की कथा भी करा चुका हूं। उनके बच्चे भी आज्ञाकारी है, पोते-पोतियों से भरा घर है। कर्म का सुन्दर फल उन्हें मिला है, आनन्द ही आनन्द है।

अवधेश कुमार पांडेय के साथ कई यादें हमारी जुड़ी है। एक यादें तो वह हैं, जिसे कभी तत्कालीन मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव संजय कुमार भूल ही नहीं सकते। जब मैं आइपीआरडी में कार्यरत था, तो कई काम किये, फिल्म नीति बनाई, कई विज्ञापन से संबंधित फिल्म बनाए, पुस्तकें लिखी तथा जो आदेश मिला वो मैं करता चला गया।

लेकिन जैसे ही तत्कालीन मुख्यमंत्री के कनफूंकवों ने रघुवर दास का कान भर-भरकर, उन्हें सूचना भवन से बाहर का रास्ता दिखाया, मैं समझ गया कि अब यहां कुछ भी अच्छा नहीं होनेवाला, लूट-खसोट की खेती होगी, भ्रष्टाचार का बोलबाला बढ़ेगा, अपना नाम तथा अपनी झूठी यश-कीर्ति फैलाने के लिए गलत का सहारा लिया जायेगा। मैंने अवधेश कुमार पांडेय के रांची छोड़ने के पहले ही सूचना जनसम्पर्क विभाग रांची को अलविदा कह दिया।

हालांकि तत्कालीन मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव तथा अन्य लोगों ने कई बार कहा कि अरे पांडेय जी न जा रहे हैं, आप क्यों उनके लिए अपनी नौकरी छोड़ रहे हैं। मैंने स्पष्ट कहा कि बात नौकरी की नहीं, बात सम्मान की है, बात इसकी भी है कि मेरा जो तेवर है, उसे कौन संभालेगा, किसकी हिम्मत है, कि मेरे द्वारा बोले गये सत्य को सत्य कहकर सम्मानित करेगा। मेरे इस बात को सुनकर लोग अचंभित हो जाते। हुआ भी यही, अच्छा हुआ कि मैं खुद ही सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग छोड़ दिया, नहीं तो मेरा भी वहीं होता, जो अन्य लोगों का हुआ, जो पांडेय जी के समय में कार्यरत थे, जिन्हें एक-एक कर बाहर का रास्ता दिखाया गया। जिसका में प्रत्यक्षदर्शी हूं।

मैं दावे के साथ कहता हूं कि अवधेश कुमार पांडेय जैसा सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग का निदेशक कभी नहीं मिल पायेगा, न भूतो न भविष्यति। वहां कार्यरत किसी अधिकारी या कर्मचारी या अवकाश प्राप्त किसी अधिकारी/कर्मचारी की हिम्मत नहीं कि उनमें कोई दोष निकाल दें या भ्रष्टाचार/रिश्वत लेने का आरोप लगा दें, उन्होंने बड़ी ही ईमानदारी से अपना काम किया। चाहे सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के अधिकारी अमित खरे हो मस्त राम मीणा या सुखदेव सिंह, सभी ने इनके कार्यों को अपने-अपने समय में सराहा है।

आप इनके कार्यों को इसी से समझ लीजिये कि जब मुख्यमंत्री या प्रधान सचिव को किसी खास समय पर किसी काम की जरुरत होती थी और जब ये लोग अवधेश कुमार पांडेय को ये कहां करते थे कि आप ये काम कर दीजिये, पांडेय जी का उत्तर होता था – सर, तैयार है। अभी ला दूं। अधिकारी चकरा जाते, क्योंकि जो वे समय आने पर सोचते थे, उसे महीनों पहले ही तैयार कर लेते थे, उसका उदाहरण तो मैं ही हूं, पांडेय जी ने हमसे ऐसे कई काम कराये हैं।

मैंने तो सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग में आंखों से देखा कि कौन कितने पानी में हैं, कौन कितना भ्रष्ट है, लेकिन यहां कार्यरत कुछ भ्रष्ट अधिकारियों की हिम्मत नहीं थी कि पांडेय जी के आंखों में आंखे डालकर बात कर सकें, क्योंकि भ्रष्टाचारी भला क्या जानेगा कि सेवा कैसे की जाती है?

हमें लगा था कि रघुवर सरकार के जाने के बाद, हेमन्त सरकार अवधेश कुमार पांडेय जी का सम्मान करेगी, उनसे झारखण्ड हित में काम लेगी, पर जैसे ही निदेशक के पद पर राजीव लोचन बख्शी का नाम आया। मैं समझ गया। यहां कुछ नहीं होनेवाला, पूर्व की तरह सब काम चलेगा। फिलहाल राजीव लोचन बख्शी को हटा दिया गया है। अब कौन सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग का निदेशक बनेगा, इसके लिए दिमाग लगाई जा रही है, इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से खोज की जा रही है, आगे कौन होगा, इस पद पर भगवान जाने।

पर अंत में ये जरुर कहूंगा कि जब अवधेश कुमार पांडेय सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के निदेशक थे, तब तक सूचना भवन लगता था कि सूचना भवन है, अब तो श्मशान जैसा दिखता हैं, अब वहां अधिकारी है, पर उनके चेहरे पर मायूसी है, एक भ्रष्ट अधिकारी को लाने के लिए पूर्व के एक निदेशक ने फाइलें बढ़ा दी थी, वो तो भला हो राज्य के मुख्य सचिव का, कि उन्होंने ना कह दिया, नहीं तो क्या हाल होता विभाग का भगवान ही मालिक है।

आश्चर्य है कि ऐसे अधिकारी की पूर्व के निदेशक खुलकर सराहना भी करते थे। चलिए, अवधेश कुमार पांडेय, 28 फरवरी को अवकाश प्राप्त कर लिये। विद्रोही24 की ओर से पांडेय जी को बहुत-बहुत बधाई। आशा ही नहीं, बल्कि पूर्ण विश्वास है कि गीता में लिखी कर्मफल के सिद्धांत के अनुसार उनका आगे का जीवन आनन्दमय और सुखमय होगा।